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ममता राज में खतरे में है प्रेस की आजादी?

प्रभाकर मणि तिवारी
२ जून २०२०

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के राज में क्या प्रेस यानी मीडिया घरानों की आजादी सचमुच खतरे में है? कोरोना महामारी के बीच जारी लॉकडाउन के दौरान घटी कुछ घटनाओं के बाद यह मुद्दा जोर पकड़ने लगा है.

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Indien Kalkutta Lockdown Zeitungen
तस्वीर: DW/P. M. Tiwari

राज्यपाल जगदीप धनखड़ के अलावा विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी इस मुद्दे पर सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. राज्यपाल ने तो इस मुद्दे पर कोलकाता प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के साथ बैठक भी की है.

दरअसल, पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े बांग्ला दैनिक आनंद बाजार पत्रिका के संपादक के खिलाफ एक खबर के मामले में दर्ज एफआईआर और घंटों पूछताछ के बाद उनके इस्तीफे से यह मामला तूल पकड़ने लगा है.

वैसे, दिल्ली की मीडिया पर जिस तरह केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की शरण में जाने के आरोप लगते हैं कुछ वैसी ही स्थिति पश्चिम बंगाल में भी बन रही है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कई मामलों में गलत सूचनाएं और अफवाहें फैलाने के लिए मीडिया को कठघरे में खड़ा करती रही हैं.

ममता से पुरानी दुश्मनी

देश के प्रमुख मीडिया घरानों में शुमार आनंदबाजार समूह से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की दुश्मनी पुरानी है. इसकी वजह यह धारणा है कि समूह ने अपने अखबारों के जरिए वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में ममता और उनकी पार्टी के खिलाफ कथित अभियान चलाया था. इसके बावजूद ममता के भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटने के बाद समूह के प्रमुख अवीक सरकार को निदेशक मंडल के प्रमुख के साथ ही संपादक का पद भी छोड़ना पड़ा था.

ताजा मामले में कोलकाता पुलिस की ओर से आनंद बाजार पत्रिका अखबार के संपादक अनिर्वाण चौधरी को एक खबर के सिलसिले में पूछताछ और उसके बाद उनके संपादक पद से इस्तीफे से प्रेस की आजादी के मुद्दे पर बहस छिड़ गई है.

ममता बनर्जी
विपक्षी दल ममता बनर्जी पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाते हैंतस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari

राज्यपाल जगदीप धनखड़ और सीपीएम के प्रदेश सचिव सूर्यकांत मिश्र ने पुलिस के समन और संपादक से पूछताछ को प्रेस की आजादी का गला घोंटने का प्रयास करार दिया है. राज्यपाल ने अपने एक ट्वीट में कहा है, "प्रेस की आजादी पर कोई समझौता नहीं हो सकता. यह लोकतंत्र की रीढ़ है और इसे संवैधानिक गारंटी मिली हुई है.” उन्होंने गृह सचिव आलापन बनर्जी से इस बारे में विस्तृत जानकारी मांगी है.

दिलचस्प बात यह है कि राज्यपाल ने जहां इस मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया है वहीं सीपीएम के सचिव सूर्यकांत मिश्र चटर्जी के साथ घटी घटना के लिए केंद्र की मोदी सरकार को जिम्मेदार मानते हैं. मिश्र सवाल करते हैं, "क्या कुछ फर्जी आरोपों के तहत अनिर्वाण चटर्जी को गिरफ्तार करने की तैयारी चल रही है? क्या मोदी सरकार इसके जरिए बदला निकालने का प्रयास कर रही है?” यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि समूह का अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ लगातार मोदी सरकार और उसके कामकाज के खिलाफ आवाज उठाता रहा है.

क्यों हुई एफआईआर

आखिर संपादक के खिलाफ एफआईआर क्यों दर्ज कराई गई थी? जानकार सूत्रों का कहना है कि अखबार ने हाल में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 अस्पतालों में निजी सुरक्षा उपकरण यानी पीपीई की सप्लाई जरूरत के मुकाबले बहुत कम है. स्वास्थ्य विभाग ने इस रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए गृह मंत्रालय से शिकायत की. उसी के बाद कोलकाता के हेयर स्ट्रीट थाने में एफआईआर दर्ज की गई.

उसके बाद पुलिस ने संपादक को पूछताछ के लिए समन भेजा. उन्होंने पहले तो कोरोना संक्रमण और अपनी उम्र (62) का हवाला देते हुए थाने जाने से मना कर दिया था. लेकिन बाद में पता चला कि उनसे लगभग छह घंटे तक पूछताछ की गई थी. उसके अगले दिन ही उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. अब उनकी जगह ईशानी दत्त राय को नया संपादक बनाया गया है. दूसरी ओर, खुद अनिर्वाण या पत्रिका समूह ने इस मामले पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है. समूह के एक अधिकारी दावा करते हैं कि चार साल से काम करने वाले अनिर्वाण ने निजी वजहों से इस्तीफा दिया है.

प्रेस की आजादी

दूसरी ओर, राज्यपाल समेत तमाम विपक्षी दलों ने प्रेस की आजादी को मुद्दा बनाते हुए ममता बनर्जी सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है. राज्यपाल आरोप लगाते हैं, "राज्य सरकार फर्जी मामले दायर कर पत्रकारों के परेशान करने और प्रेस की आजादी का गला घोंटने का प्रयास कर रही है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी के अलावा कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान और सीपीएम व बीजेपी के नेताओं ने भी मुझसे इस बात की शिकायत करते हुए इस प्रवृत्ति पर चिंता जताई है.”

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उनका कहना है कि अगर आनंद बाजार पत्रिका जैसे बड़े अखबार के संपादक को पुलिस की ओर से पूछताछ के लिए बुलाया जाता है तो यह राज्यपाल के लिए चिंता का विषय है. पत्रकारों को फर्जी मामलों में फंसाना भी चिंता की बात है.

इससे पहले सोमवार को राज्यपाल ने प्रेस की आजादी का गला घोंटने के कथित प्रयासों पर कोलकाता प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के साथ भी बैठक की थी. राज्यपाल बताते हैं, "मैंने बैठक के दौरान कहा है कि अभियव्यक्ति की आजादी महत्वपूर्ण है, लेकिन बोलने की आजादी ज्यादा महत्वपूर्ण है. यह सही नहीं है कि सरकार के खिलाफ कुछ लिखने पर पुलिस आपके दरवाजे पर हाजिर हो जाए.” राज्यपाल का आरोप है कि कुछ जिलों में प्रशासन लोकल चैनलों के प्रसारण पर भी रोक लगा रहा है.

राजनीति

राज्यपाल ने रविवार को ही अपने एक ट्वीट में कहा था कि प्रेस क्लब की कार्यकारिणी समिति के साथ सोमवार को होने वाली बैठक में ममता सरकार की ओर से कई परेशान करने वाली कार्रवाइयों, मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामलों आदि पर चर्चा की जाएगी. यह पहला मौका है जब किसी राज्यपाल ने प्रेस की आजादी के मुद्दे पर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के साथ बैठक की है. कोलकाता प्रेस क्लब के एक पदाधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "राज्यपाल की बैठक की मांग अप्रत्याशित थी. प्रोटोकॉल के लिहाज से हमने इसके लिए हामी भरी थी.”

भारतीय अखबार
दुनिया भर में अखबारों पर दबाव बढ़ रहा हैतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/J. McConnico

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने इस बैठक पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है. पार्टी के एक नेता कहते हैं, "कोई भी किसी के साथ बैठक के लिए स्वतंत्र है. जब तक यह मामला हमारे समक्ष नहीं आता, हम कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.” दूसरी ओर, बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा ने धनखड़ के कदम को सही ठहराया है. वह आरोप लगाते हैं, "राज्य सरकार पत्रकारों और मीडिया घरानों को बंदूक की नोक पर रखने की कोशिश कर रही है. कई पत्रकारों और संपादकों से पूछताछ की गई है. बंगाल में प्रेस को घेरा गया है.” सिन्हा ने कहा कि राज्यपाल ने एक सराहनीय कदम उठाया है.

सीपीएम के पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम कहते हैं, "सत्तारूढ़ पार्टी में निरंकुश प्रवृत्ति बढ़ने की स्थिति में सबसे पहले विपक्ष का गला घोंटने का प्रयास किया जाता है और उसके बाद संचार माध्यमों का. सरकारी चाहती है कि मीडिया सिर्फ उसकी बातों का ही प्रचार-प्रसार करे, विपक्ष की बातों का नहीं. यह किसी लिहाज से उचित नहीं है.”

वरिष्ठ पत्रकार तापस मुखर्जी कहते हैं, "लेफ्ट के शासनकाल के दौरान भी खबरों से नाराज होने पर कुछ अखबारों और चैनलों का विज्ञापन बंद कर दिया जाता था. वह परंपरा अब भी जस की तस है. ममता सरकार भी अपने खिलाफ छपने वाली खबरों से नाराज होकर कई अखबारों और चैनलों के विज्ञापन बंद कर चुकी है.”

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