'भोपाल गैस कांड मुकदमा फिर शुरू नहीं होगा'
११ मई २०११सीबीआई ने मांग की थी कि दोषियों को गैर इरादतन हत्या की धारा में सजा सुनाई जाए जिससे उन्हें कम से कम 10 साल की कैद मिल सके. याचिका ने सुप्रीम कोर्ट के ही 14 साल पुराने एक फैसले को चुनौती दी थी. इस फैसले के कारण आरोपियों पर लगे आरोप हल्के हो गए. इन आरोपियों पर सिर्फ निग्लिजेंस यानी लापरवाही का ही मुकदमा चला.
सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने इस याचिका को 'गलत और भ्रम से भरी' बताया है. और कहा है कि इसमें कोई 'संतोषप्रद सफाई' नहीं दी गई है.
चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया के नेतृत्व वाली बेंच ने मामले में 27 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस बेंच में जस्टिस अल्तमास कबीर, जस्टिस आरवी रवीन्द्रन, जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस आफताब आलम शामिल हैं.
भोपाल गैस कांड को दुनिया की सबसे भयानक दुर्घटना माना जाता है. भोपाल में हुए जहरीली गैस के रिसाव के कारण 15 हजार लोग मारे गए और अनगिनत लोग विकलांग हो गए.
31 अगस्त 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था कि वह सात दोषियों को दो साल कैद की हल्की सजा के अपने ही फैसले पर फिर से विचार करेगी.
यूनियन कार्बाइड इंडिया के चेयरमैन केसुब महिन्द्रा, यूसीआईएल के प्रबंध निदेशक विजय गोखले, उस समय उपाध्यक्ष रहे किशोर कामदार, जेएन मुकुन्द वर्क्स मैनेजर, प्रोडक्शन मैनेजर केवी शेट्टी, प्लांट सुप्रीटेंडेंट एसआई कुरैशी, को भोपाल में 7 जून 2010 को दो साल की सजा सुनाई गई थी. देश भर में इस फैसले का व्यापक विरोध हुआ था क्योंकि लोगों के मुताबिक यह सजा अपराध की तुलना में बहुत कम थी.
सीबीआई के वकील एटॉर्नी जनरल गुलाम ई वहनावती ने कहा कि जांच एजेंसी ने फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला तथ्यों के आधार पर लिया है. न्याय करना हमारा कर्तव्य है और इसे जनहित में होना चाहिए. इस मामले के साथ बहुत सारे मूल्य जुड़े हुए हैं. यह एक असाधारण स्थिति थी.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम
संपादनः उभ