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'भारतीय प्रधानमंत्री नए संकट में'

२५ मार्च २०११

जर्मन मीडिया में इस सप्ताह चर्चा में रही परमाणु चिंताएं इसके अलावा अब भारत भी विकीलीक्स कांड की तपिश झेल रहा है. आतंकवाद पर भारत और अमेरिका के बीच विवाद हो या परमाणु समझौते पर रस्साकशी हो, कोई मुद्दा छूटा नहीं है.

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तस्वीर: AP Photo

ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग का कहना है कि खास हंगामा परमाणु समझौते के दस्तावेजों पर हो रहा है.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कांग्रेस पार्टी रिपोर्टों की वजह से दबाव में आ रही है. 2008 में प्रधानमंत्री ने परमाणु संधि के विरोध में एक छोटी पार्टी के गठबंधन छोड़ने के बाद संसद में विश्वासमत का प्रस्ताव रखा था. राजनयिक रिपोर्ट के अनुसार एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के सहायक नचिकेता कपूर ने अमेरिकी राजनयिकों से कहा था कि मतदान के लिए घूस देने के लिए काफी पैसा तैयार है. हर सांसद पर 10 करोड़ रुपये (17 लाख यूरो). प्रधानमंत्री सिंह गठबंधन के दूसरे रिश्वत कांडों के कारण चोट खाए हैं. अनियमितताओं की वजह से बदनाम कॉमनवेल्थ गेम्स और अब जेल में बंद केंद्रीय मंत्री ए राजा कांड के कारण लंबे समय तक साफ सुथरे समझे जाने वाले प्रधानमंत्री नए संकट में फंस गए हैं.

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जापान में परमाणु दुर्घटना के तुरंत बाद भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के सभी परमाणु संयंत्रों की जांच के आदेश दिए. आर्थिक सत्ता बनने के लिए प्रयासरत भारत में इस समय छह कारखानों में 20 रिएक्टर काम कर रहे हैं, जो 4800 मेगावाट बिजली पैदा करते हैं. ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग का कहना है कि भारत जापान की घटनाओं पर ध्यान से निगाह डाले हुए है.

भारतीय उप महाद्वीप पर कोई व्यापक परमाणु विरोधी आंदोलन नहीं है. जापान में दुर्घटना की शुरुआत के बाद आलोचना की आवाज बढ़ रही है, जो परमाणु ऊर्जा के खतरों की ओर ध्यान दिला रहे हैं. परमाणु भौतिकशास्त्री सुव्रत राजू का कहना है कि बड़े संयंत्रों में पूरी सुरक्षा नहीं दी जा सकती. उसके अलावा गंभीर स्थितियों में भारतीय संकट प्रबंधन की समस्याएं अलग से हैं. वे कहते हैं, "हमारी समस्या है कि हम सुरक्षा कदमों के बारे में कम जानते हैं और हमारे यहां कोई स्वतंत्र निगरानी एजेंसी नहीं है." हालांकि भारतीय परमाणु विरोधी कार्यकर्ता नए परमाणु कारखाने की योजना छोड़ने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार इसका कोई कारण नहीं देखती. अगले सालों में परमाणु ऊर्जा का हिस्सा दोगुना करने का इरादा है.

एशिया के कुछ देशों में परमाणु संयंत्रों के विस्तार के खिलाफ विरोध के धीमी आवाजें उठ रही हैं, लेकिन फ्रैंकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है कि कुल मिलाकर एशिया और परमाणु ऊर्जा के संबंध जस के तस हैं. पाकिस्तान भी विस्तार करना चाहता है.

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अब तक दो परमाणु संयंत्र काम कर रहे हैं. तीन और बनाने की योजना है. दूसरी जगहों से कहीं ज्यादा परमाणु ऊर्जा पाकिस्तान सिर्फ फायदे का मुद्दा नहीं है बल्कि राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का. इसलिए सरकार ने जापान के साथ एकजुटता संदेश पर ही छोड़ दिया, घर की ओर नजर नहीं डाली. इससे कामरान शफी जैसे पत्रकार चिंतित हैं. उन्हों द डॉन में लिखा है, "इस सोच से रूह कांप जाती है कि सूनामी जैसा कुछ हुआ तो कराची में हॉक्स बे के निकट कनुप्प रिएक्टर का क्या होगा." वे आगे लिखते हैं,"यदि निपुण और तकनीकी रूप से सम्पन्न जापान में रिएक्टर प्रभावित हो सकते हैं तो ऐसे देश में क्यों नहीं हर पुर्जे का विस्फोट हो जाएगा जो कुशल बस परिवहन का आयोजन भी नहीं कर सकता."

परमाणु मुद्दे के बाद अब एक नजर तिब्बत के निर्वासन सरकार के मुख्यालय धर्मशाला की ओर. रविवार को विश्व भर में निर्वासन में रहने वाले 85,000 तिब्बतियों ने नए सरकार प्रमुख का चुनाव किया. बर्लिन के दैनिक टागेसश्पीगेल का कहना है कि 43 वर्षीय वकील लोबसांग सांगाय को तीन उम्मीदवारों में प्रमुख दावेदार माना जा रहा है.

दलाई लामा के इस्तीफे से एक नई संसद और नए निर्वासन प्रधानमंत्री के चुनाव को, जिसके नतीजों की घोषणा अप्रैल के अंत में होगी, नया वजन मिला है. अब तक प्रधानमंत्री पूरी तरह धर्मगुरु के साए में रहता था. अब सरकार प्रमुख को राजनीतिक नेतृत्व देना होगा. इस काम में दलाई लामा सलाहकार के रूप में उनका साथ देंगे. सांगाय ने टागेसश्पीगेल के साथ एक बातचीत में कहा, "वे हमेशा मेरे सर्वोच्च नेता रहेंगे. वे विलक्षण नेता हैं, जो समय से आगे चलता है." दूरगामी रूप से राजनीतिक सत्ता निर्वाचित सरकार को सौंपने का दलाई लामा का फैसला तिब्बतियों और उनकी मांगों के लिए फायदेमंद होगा. लेकिन भावनात्मक रूप से बहुत से लोग अभी भी उन्हें जाने देने को तैयार नहीं हैं.

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बर्लिन के ही वामपंथी दैनिक टात्स की राय है कि तिब्बत की सरकार के सामने कठिन समय आ रहा है

भावी प्रधानमंत्री सरकार के संकट में उलझ जाएंगे. वर्तमान प्रधानमंत्री सामधोंग रिनपोचे को वैधता के संकट की आशंका है. साथ ही तिब्बत में तिब्बतियों की खराब हालत के कारण युवा तिब्बतियों में अधीरता बढ़ रही है. वे दलाई लामा की तरह स्वायत्तता का सपना नहीं देखते, जो कुछ युवा बौद्ध भिक्षुओं के अनुसार अभी भी नहीं चल रहा है. वे तिब्बत की आजादी का सपना देख रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों का नया नेतृत्व चीन के प्रति जोशीले कदम उठाएगा. अपने इस्तीफे के साथ धर्मगुरु अपने असली लक्ष्य के बहुत नजदीक पहुंच गए हैं. वे अपने लोगों को राजनीतिक रूप से झकझोरना चाहते थे. और ये सफल रहा है.

संकलन: अना लेमन/महेश झा

संपादन: ए जमाल

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