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भारत में फिर आई बाघों पर आफत

ओंकार सिंह जनौटी
२७ जनवरी २०१७

भारत के बाघों के लिए 2016 बेहद जानलेवा साल साबित हुआ. इस दौरान देश भर में 120 बाघ मारे गए. देश भर में सबसे खराब रिकॉर्ड मध्य प्रदेश का रहा.

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Indien Kaziranga-Nationalpark Indischer Bengalischer Tiger
तस्वीर: Getty Images/AFP/STR

एक दशक के बाद यह पहला मौका है जब साल भर के भीतर इतने ज्यादा बाघ मारे गए हों. 2016 में रिकॉर्ड 120 बाघों की मौत हुई. 2015 के मुकाबले 50 फीसदी ज्यादा. 2017 के पहले महीने में भी एक मौत का मामला सामने आ चुका है.

दुनिया भर में इस वक्त कुल 3,890 बाघ हैं. इनमें से 2,226 भारत में रहते हैं. हाल के बरसों में भारत में बाघों की संख्या बढ़ी है, लेकिन ऐसा लगता है कि इस दौरान बाघों पर होने वाले इंसानी हमले भी बढ़े हैं. बीते साल बाघ की 22 खालें बरामद हुईं. कुछ बाघों की मौत प्राकृतिक रूप से हुई. वहीं कुछ को जहर देकर मारा गया. कुछ रेल और गाड़ियों के नीचे आकर मारे गए. दो बाघों को आदमखोर होने की वजह से मारा गया.

बाघों की मौत के मामले में एक बार फिर मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड सबसे खराब रहा. राज्य में 32 बाघ मारे गए. वहीं कर्नाटक में 17 और महाराष्ट्र में 16 बाघों की मौत हुई. 2016 के शुरुआती सात महीनों में 73 बाघ मारे गए. इस दौरान मछली और जय नाम के सबसे चर्चित बाघ भी चल बसे. 19 साल की बाघिन मछली की प्राकृतिक मौत हुई. वहीं जय अप्रैल 2016 के बाद नजर नहीं आया.

बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है. उसे बचाने के लिए 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत हुई थी. इसके तहत देश भर में 50 टाइगर रिजर्व हैं. 2014 में देश में पहली बार बाघों की संख्या में 30 फीसदी का रिकॉर्ड इजाफा हुआ. लेकिन 2016 के आंकड़े अब फिर से शंका पैदा कर रहे हैं.

भारतीय इतिहासकार महेश रंगराजन के मुताबिक 1875 से 1925 के बीच राजाओं, लॉर्ड्स, जनरलों और महाराजों ने 80,000 बाघ मारे. 1947 के बाद हजारों बाघ जंगल उजड़ने से मारे गए. घटते जंगलों के कारण बाघों और इंसानों में टकराव बढ़ा और इसकी कीमत भी बाघों ने ही ज्यादा चुकाई. टाइगर रिजर्व बनाकर सरकार ने इस समस्या को हल करने में काफी हद तक सफलता पाई. इस वक्त भारत के 2.02 फीसदी इलाके में ऐसे रिजर्व हैं. लेकिन अब चीन के बाजार ने बाघों को मुसीबत में डाल रखा है. चीन की पारंपरिक दवाओं में बाघ के करीब हर अंग का इस्तेमाल होता है.