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भारत के चावल व्यापारियों को ईरान का भुगतान रुका

८ फ़रवरी २०१२

यूरोपीय संघ और अमेरिका द्वारा ईरान पर उसके विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम के कारण लगाए गए ताजा आर्थिक प्रतिबंधों का असर नजर आने लगा है. ईरानी व्यापारियों ने भारतीय व्यापारियों को 2 लाख टन चावल का भुगतान नहीं किया है.

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तस्वीर: Eky Chan/Fotolia

इसे दोनों देशों के बीच साझा व्यापार पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए ताजा प्रतिबंधों के दबाव के रूप में देखा जा रहा है. ताजा हालात से चिंतित होकर चावल निर्यातकों के संघ ने अपने सदस्यों से कहा है कि वे ईरान को क्रेडिट पर चावल न बेचें.

भारत ईरान को सबसे अधिक चावल आपूर्ति करने वाला देश है. ईरान की 10 से 12 लाख टन सालाना जरूरत में से 70 प्रतिशत चावल भारत से जाता है. इसमें प्रमुख रूप से सुगंधित बासमती चावल होता है. भारतीय सूत्रों का कहना है कि ईरान ने अक्टूबर और नवम्बर में भेजी गई 14.4 करोड़ डॉलर की चावल की खेप का भुगतान नहीं किया है. भारतीय व्यापारी भुगतान के लिए 90 दिन का समय देते हैं.

ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेटिया ने कहा, "यह बेहद गंभीर मुद्दा है और हमने सरकार से उचित कदम उठाने की मांग की है. " सेटिया का कहना है कि भारत को अब ईरान को चावल का निर्यात नहीं करना चाहिए. थाइलैंड, वियतनाम और पाकिस्तान के निर्यातकों ने पहले ही ईरानी व्यापारियों को चावल बेचना रोक दिया है.

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चावल के लालेतस्वीर: Tatyana Nyshko/Fotolia

अमेरिका ने इस साल की शुरुआत में ही ईरान पर ताजा आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. जिन संस्थानों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं उनमें तेहरान का केंद्रीय बैंक भी शामिल है. इसका उद्देश्य ईरान पर अपने परमाणु कार्यक्रम को बंद करने के लिए दबाव बनाना है. यूरोपीय संघ ने भी ईरान से तेल की खरीद रोक दी है. उन्हें उम्मीद है कि प्रतिबंधों का असर 6 माह में दिखने लगेगा.

चावल का भुगतान संकट इन प्रतिबंधों का ही असर है. इससे तेहरान को भविष्य में विदेशों से अनाज का इंतजाम करने में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. ईरानी चावल आयातकों को भी इस परिस्थिति में भुगतान करने में काफी मुसीबत होगी. प्रतिबंधों के बाद ईरानी मुद्रा रियाल की तेजी से घटती कीमत ने ईरानी व्यापारियों की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है. इसने अंतरराष्ट्रीय बाजार में मालों की खरीद को तो महंगा बना ही दिया है, दुबई के बिचौलियों जैसे अनौपचारिक स्रोतों से भुगतान को भी मुश्किल बना दिया है.

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प्रतिबंधों की मारतस्वीर: picture-alliance/dpa

भुगतान की दिक्कत के कारण अनाज के जहाज ईरानी बंदरगाहों पर रुके हुए हैं. व्यापारी नए कार्गो की बुकिंग नहीं कर रहे हैं. प्रतिबंधों के कारण ईरान तेल की बिक्री से अर्जित विदेशी मुद्रा खाद्य पदार्थों की खरीद के लिए नहीं भेज पा रहा है. भारत ईरान के कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीददार है. अमेरिकी दबाव में लंबे समय से चली आ रही व्यवस्था को 2010 में खत्म करने के बाद उसे सालाना 11 अरब डालर के भुगतान में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

भारत सरकार इस समय तेल के भुगतान के लिए तुर्की के एक बैंक का सहारा लेती है जबकि भारतीय चावल निर्यातक दुबई के बिचौलियों का इस्तेमाल करते हैं. बिचौलिए ईरानी व्यापारियों से चावल की कीमत रियाल में लेते हैं और भारतीय व्यापारियों को डॉलर में भुगतान करते हैं. चावल की खेप को सीधे भारत से ईरान भेजी जाती है. भारतीय व्यापारियों के अनुसार पिछले माह ईरान की 20 कंपनियां बकाया राशि का भुगतान करने में असफल रही हैं.

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अहमदीनेजाद और मनमोहन सिंहतस्वीर: AP

भारत की बड़ी चावल मिल केआरबीएल लिमिटेड के चेयरमेन अनिल मित्तल के अनुसार "यह दोनों देशों के व्यापार को खतरे में डाल देगा". ईरान पर प्रतिबंधों की वजह से बैंकों ने भुगतान के मामले से खुद को दूर कर लिया है. यदि ईरानी कंपनियां चावल के लिए भुगतान नहीं कर पाती हैं तो ईरान को भारत से तेल की बकाया राशि लेने में भी परेशानी आएगी.

ईरान के साथ निर्यात बढ़ाने की संभावना पर चर्चा के लिए नई दिल्ली इसी महीने एक प्रतिनिधिमंडल भी तेहरान भेज रहा है. दोनों देशों ने 11 अरब डॉलर के तेल के बिल के 45 प्रतिशत का भुगतान भारतीय मुद्रा रुपए के जरिए करना तय किया है.

रिपोर्ट: रॉयटर्स/जितेन्द्र व्यास

संपादन: महेश झा

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