1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

भाजपा के राम, तो क्या कांग्रेस के शिव?

२१ जुलाई २०२०

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की सरकार राम वन गमन पथ कार्यक्रम के साथ पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है. सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि शिव की परंपरा इलाके में समरसता लाने में मददगार हो सकती है.

https://p.dw.com/p/3feQ6
India Chhattisgarh
जंगलों से होकर गुजरता है राम वन गमन पथतस्वीर: Imago/Hindustan Times

कोरोना काल में छत्तीसगढ़ से कोरोना के सिवाय सिर्फ एक और खबर प्रमुखता से आई. अखबार में छप रही खबरों के अनुसार कोरोना महामारी की दिक्कतों के बीच में भी छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार राम वन गमन पथ कार्यक्रम को जोर शोर से आगे बढ़ा रही है, जिनमें उन जगहों को धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का कार्यक्रम है जहां अपने 14 वर्ष के वनवास के समय राम कथित रूप से रुके थे. कहते हैं कि उन्होंने अयोध्या से श्रीलंका जाते हुए अपने वनवास के चौदह सालों में दस साल छत्तीसगढ़ के इलाकों में गुजारे. जाहिर है सभी को अगले चुनाव की भी चिंता है. पर आदिवासी समाज में इसका विरोध भी शुरू हुआ है. कोरोना काल में भी राज्य के मुख्य सचिव राम वन गमन पथ कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए राज्य का दौरा करते नजर आए हैं.

मध्य भारत के जंगल को दण्डकारण्य भी कहते हैं. राम यदि वास्तव के एक मनुष्य थे और अयोध्या से किसी लंका गए थे तो वह इसी दण्डकारण्य में ही कहीं होना चाहिए, ऐसा लगता है. आदिवासी मानते हैं कि रावण आदिवासी मरकाम कुल के राजा थे जिनकी मध्य भारत में काफी जगह आज भी पूजा होती है, आदिवासी मेघनाथ, कुम्भकर्ण आदि की भी पूजा करते हैं. राम रावण युद्ध यदि हुआ तो ऐसा लगता है कि दो भिन्न जीवन पद्धतियों का युद्ध था जिसे छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार भाजपा विरोध और सॉफ्ट हिंदुत्व के नाम पर ऐसा लग रहा है कि एक बार फिर सुलगा सकती है. आदिवासियों का पुनर्जागरण पुराना नहीं पर आज एक सच्चाई है और उसकी उपेक्षा करना घातक हो सकता है.

शांत राज्य है छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ एक सामाजिक समरसता का राज्य है, जहां जाति या धर्म के नाम पर कोई दंगे नहीं होते पर कांग्रेस सरकार का राम वन गमन पथ कार्यक्रम अनावश्यक राज्य को उस हिंसा की ओर धकेल सकता है. छत्तीसगढ़ में 32 प्रतिशत लोग जनजाति समुदाय से हैं जिनमें से अधिकतर गोंड समुदाय के हैं जो स्वयं को राजा रावण का वंशज मानते हैं. इस समाज के पुनर्जागरण का काम हाल में शुरू हुआ है. यद्यपि इस समाज को अपना कांशीराम मिलना अभी शेष है पर राम वन गमन पथ कार्यक्रम उसका ईंधन जुगाड़ सकता है. आदिवासी समाज इसे बिलकुल पसंद नहीं कर रहा और अपने पर हमले की तरह मान रहा है. राम ने उनके राजा रावण की ह्त्या की थी और उन्हें दस्यु और विलेन बनाया गया यह पौराणिक सच अब राजनैतिक रूप लेता जा रहा है.

इससे बचने का एक तरीका हो सकता है. राम अगर मनुष्य थे तो भगवान शिव भी संभवत: जनजाति समुदाय से थे. वे जंगल पहाड़ में रहते थे. शेर की छाल पहनते थे. सांप उनके गले में हमेशा रहता था, वे जंगली थे. उनकी जो प्रागैतिहासिक मूर्तियां खुदाई में मिल रही हैं उनमें शिव अक्सर निर्वस्त्र हैं, शिव की बारात जंगलियों की बारात को कहते है. रावण की तरह मध्य भारत का गोंड आदिवासी समाज जिनकी पूजा करते हैं उनको वे बड़ादेव या बूढ़ादेव या शंभूशेक कहते हैं. वे कोई और नहीं बल्कि शिव हैं ऐसा लगता है. महाराष्ट्र में शिव (संभवतः) की एक प्रागैतिहासिक मूर्ति मिली है उसमें शिव घोड़ा गाड़ी की सवारी कर रहे हैं जो इन दोनों सभ्यताओं के एक दूसरे से सीखने और पास आने की कहानी हो सकती है. उस प्रतिमा में भी शिव बिलकुल निर्वस्त्र हैं पर आर्यों के घोड़े गाड़ी का उपयोग कर रहे हैं.

Indien Maoisten
माओवादियों का गढ़ माना जाता है छत्तीसगढ़तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M Quraishi

मिसाल है शिव पार्वती विवाह

शिव ने पार्वती के साथ भी विवाह किया. वह एक राजनैतिक विवाह था. पार्वती या गौरा गौर वर्ण की थी. वे उस समाज की थी जो शिव के समाज से भिन्न था. वे यूरोप से आए या नहीं उस विवाद पर गए बगैर यह लगता है कि इन दोनों भिन्न समुदायों को साथ लाने के लिए शिव ने गौरा से विवाह किया था. उनका वह प्रयास असफल रहा क्योंकि पुराणों के अनुसार पार्वती के परिवार में उनके पति को वह सम्मान नहीं मिला जिसके लिए उन्होंने इस विवाह से प्रयास किया था और उससे परेशान होकर उन्होंने आत्महत्या कर ली थी. पार्वती ने दुखी होकर अपने पिता दक्ष के यज्ञवेदी में कूदकर आत्महत्या कर ली. इससे दुखी शिव ने तांडव नृत्य किया और किंवदंती है कि पार्वती के शव के टुकड़े विभिन्न स्थानों पर गिरे, जहां आज शक्तिपीठ हैं. कांग्रेस भी राम वन गमन पथ के 52 सेंटर तैयार करना चाहती है. शिव ने अपने समुदाय की महिला काली से भी विवाह किया था.

शिव ने हिन्दू धर्म को बहुत कुछ दिया, हिन्दू धर्म ने संभवत: शिव को अपनाया, अपना बना लिया, वह एक अच्छी परम्परा है जहां स्थानीय टैलेंट का सम्मान किया जाए. आदिवासी भी कहते हैं कि उनके लिंगो देव संगीत को दुनिया में लाए, नृत्य की स्थापना की. हिन्दू धर्म भी शिव के कॉस्मिक डांस की चर्चा करता है जो परमाणु के अंदर के अंशों का नृत्य भी है जो इस सृष्टि का आधार है. वो चाहे तंत्र विद्या हो या शिव पुराण, शिव ने हिन्दू धर्म को बहुत कुछ दिया. बौद्ध परम्परा में भी तंत्र की साधना का बहुत प्रभाव है. रावण शिव उपासक थे जिनको राम ने मारा. आदिवासी समाज धीरे धीरे इस सच्चाई की ओर जाग रहा है कि दशहरा और दीवाली जैसे उत्सव उनके आराध्य के वध का उत्सव है.

India Chhattisgarh
बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर रतनपुर का महामाया मंदिर शक्तिपीठों में से एक हैतस्वीर: Imago/Indiapicture

इस विषय पर लिखी पुस्तकों को बैन करके हम अधिक आगे नहीं बढ़ सकते हैं. भाजपा ने जिस तरह अपने राजनैतिक फायदे के लिए उत्तर भारत में राम का उपयोग किया कांग्रेस यदि शिव को टटोले तो सामाजिक समरसता की मिसाल कायम हो सकती है. शिव ने अपने विवाह से आदिवासी और गैर आदिवासी समाजों को पास लाने का जो प्रयास किया था उस अधूरे काम को पूरा करने का प्रयास होना चाहिए. राम उत्तरप्रदेश में उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन मध्य भारत में शिव पर शोध होना चाहिए. हिन्दू समाज को शिव से या आदिवासी समाज से क्या क्या मिला उसकी समझ बढ़नी चाहिए और अगर यह सच है तो उसके प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करना चाहिए.

इतिहास से ले सकते हैं सीख

बौद्ध धर्म जब जापान पहुंचा तो वहां के प्रचलित शिंटो धर्मों से उसका विरोध शुरू हुआ जो वहां के मूल निवासियों का धर्म था. पर शोटोकू ताइसी जैसे लोगों ने दोनों धर्मों को करीब लाने का काम किया जिसे होंजी सुइजाकू सिद्धांत के रूप में जाना जाता है. मध्य भारत में मूलवासियों के धर्म और हिन्दू धर्म को करीब लाने के प्रयास होने चाहिए. शिव पर अध्ययन उस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है जिस पर छत्तीसगढ़ की वर्त्तमान कांग्रेस सरकार को सोचना चाहिए. गाय और गोबर मध्य छत्तीसगढ़ के लिए क्रांतिकारी कदम हैं, शिव आदिवासी इलाकों में समरसता बनाए रखने में वैसे ही मदद कर सकते हैं.

अंगरेज बाहर से आए, लूटकर चले गए. मुस्लिम बाहर से आए और भारत में ही रच बस गए. आर्य बाहर से आए या नहीं पता नहीं, पर मध्य भारत के दण्डकारण्य जैसे जंगलों में बहुत से लोग उत्तर और दक्षिण से आए और बस गए. राजनीति में धर्म का उपयोग होना चाहिए या नहीं वह अलग विवाद का विषय है पर (विधर्मी) धर्म न मानने वाले माओवादियों से अलग और रामपंथी भाजपाइयों से भिन्न छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार अगर मूलवासी समुदाय के साथ समरसता के सूत्र टटोलती है तो  वह मध्य भारत में शांति का रास्ता भी दिखा सकता है.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore