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बॉर्डर बाजार से शांति की उम्मीद

२५ अगस्त २०११

दो देशों की सीमा पर रहना आसान नहीं होता. किसी भी देश के लोगों के लिए. किसी राजनीतिक रेखा के खींच देने से जिंदगियों को, संस्कृतियों, रोजी रोटी को नहीं बांटा जा सकता. भारत बांग्लादेश की सीमा पर यही दिख रहा था.

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शांति की उम्मीदतस्वीर: DW

जब भारत बांग्लादेश सीमा पर साझा साप्ताहिक बाजार शुरू हुआ, तो लोगों को एक हो जाने जैसी खुशी मिली. बेशक इसी खुशी से शांति और रोजी रोटी का रास्ता निकलता है.

भारत और बांग्लादेश के बीच संबंध हमेशा खट्टे मीठे से रहे हैं. पिछले एक दशक में ही सीमा पर होने वाले विवादों में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी हैं. इस तनाव को कम करने के लिए साप्ताहिक बाजार जैसे कदम उठाए जा रहे हैं.

इन बाजारों को बॉर्डर हाट भी कहा जाता है. इनकी शुरुआत बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्री मोहम्मद फारुक खान और भारतीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने की. 23 जुलाई को शुरू हुए इस बाजार से दोनों मुल्कों में शांति स्थापित होने की उम्मीद है. 

Soldat an der Grenze zwischen Indien und Bangladesh
भारत बांग्लादेश की सीमा पर तनावतस्वीर: DW

जनसंपर्क बढ़ेगा

ढाका यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर अकमल हुसैन इसे एक सकारात्मक फैसला मानते हैं. वह कहते हैं कि यह बाजार सही दिशा में उठाया गया कदम है क्योंकि इससे लोगों के बीच ताल्लुकात बढ़ेंगे.

बांग्लादेश का भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता है. इस समझौते पर पिछले साल जनवरी में दस्तखत हुए थे. इसके तहत बांग्लादेश भारत से सालाना तीन अरब डॉलर का सामान आयात कर सकता है. बदले में भारत 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सामान आयात करेगा. लेकिन इस समझौते में ये नए बॉर्डर हाट शामिल नहीं हैं.

गाय गलियारे से आगे बढ़ना जरूरी

दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले डॉ. नवनीत बेहरा कहते हैं कि इस बॉर्डर हाट में चीजों की ज्यादा विविधता उपलब्ध नहीं है. वह कहते हैं, “भारत बांग्लादेश सीमा गाय गलियारे के नाम से मशहूर है. भारत में धार्मिक कारणों से गाय को मारना अच्छा नहीं माना जाता. उधर बांग्लादेश में गोमांस का बड़ा बाजार है. इसलिए भारत के लोग अपनी गायों को सीमा पार करा देते हैं.”

Indien - Rajasthan: Heilige Kühe
तस्वीर: dpa

वैसे इन बाजारों में गन्ना, कपड़े, फल और सब्जियों के अलावा बर्तन भी मिल रहे हैं. यहां दुकानदारों को मशीनें, लग्जरी आइटम या मांस बेचने की इजाजत नहीं है.

सुधार की उम्मीद

दोनों देश आशा कर रहे हैं कि इन बाजारों का आपसी रिश्तों पर अच्छा असर पड़ेगा. प्रोफेसर हुसैन कहते हैं, “अगर हम लोगों के बीच इस तरह के संबंध बढ़ा सकें तो एक वक्त ऐसा आएगा जब लोग अपनी अपनी सरकारों को प्रभावित कर सकेंगे. तब हम एक दूसरे के बारे में बेहतर समझ पैदा कर पाएंगे.”

हालांकि बेहरा इन बाजारों को लेकर ज्यादा आशावादी नहीं दिखते. वह कहते हैं, “सवाल यह है कि ये व्यापारी सरकारों पर कितना दबाव बना सकते हैं. जब फैसले सत्ता में बैठे बड़े लोग करते हैं, तो ये छोटे व्यापारी कितना प्रभाव डाल पाएंगे?”

रिपोर्टः मरीना जोआरदार/वी कुमार

संपादनः आभा एम

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