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बेल्जियम में बनेगा संकट का वर्ल्ड रिकॉर्ड

१७ फ़रवरी २०११

वर्ल्ड रिकॉर्ड बनने पर हर किसी को खुशी होती है लेकिन बेल्जियम में जो रिकॉर्ड बनने जा रहा है, उस पर शायद ही कोई खुश हो. वहां चुनाव के 249 दिन बाद भी सरकार नहीं बनी है. आने वाले कुछ दिनों में भी ऐसे आसार भी नहीं दिखते.

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भाषा के आधार पर बंटवारा !तस्वीर: AP Graphics Bank/Wolf Broszies

सरकार के लिए अब तक सबसे लंबी सौदेबाजी का रिकॉर्ड इराक के नाम था. 2010 में वहां चुनावों के बाद शिया और सुन्नी पार्टियों के बीच गठबंधन पर सहमति बनने में 249 दिन लग गए. बेल्जियम में भी गुरुवार को बिना सरकार बने 249 दिन हो गए हैं और आने वाले दिनों ऐसे आसार भी नहीं दिखते हैं कि सरकार बन पाएगी. ऐसे में नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बेल्जियम के नाम ही होगा.

बेल्जियम में पिछले साल जून में चुनाव हुए, लेकिन भाषा के आधार पर दो हिस्सों में बंटे देश में गठबंधन कायम करना टेढी़ खीर साबित हो रहा है. डच भाषी समृद्ध उत्तरी इलाके फ्लांडर्स और फ्रेंच भाषी गरीब वेलोनी इलाके के लोगों में पारंपरिक रूप से तनातनी रही है. फ्लांडर्स इलाके की सबसे बड़ी पार्टी एन-वीए ने तो धीरे धीरे बेल्जियम राष्ट्र को भंग करने की भी मांग कर डाली जिसके बाद दोनों इलाकों को देश के तौर पर स्थापित किया जा सके.

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बेल्जियम को तोड़ने की भी मांग उठ रही हैतस्वीर: AP

अभी बेल्जियम के राजनेता प्रशासनिक सीमाओं और द्विभाषी राजधानी ब्रसेल्स के लिए कोष की व्यवस्था पर बहस कर रहे हैं. ब्रसेल्स पड़ता तो फ्लांडर्स इलाके में है लेकिन वहां बसने वाले ज्यादातर लोगों की भाषा फ्रेंच है. राजनेता दोनों इलाकों को अधिक अधिकार देने के बारे में भी सोच रहे हैं.

जानकारों का कहना है कि एन-वीए के कट्टरपंथी नेता बार्ट डे वेवर समझौता करने के मूड में नहीं हैं क्योंकि देश में जारी गतिरोध से इस दलील को मजबूत मिल रही है कि एकीकृत बेल्जियम का कोई मतलब नहीं है. पिछले महीने तक दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता करने वाले मिशन की अध्यक्षता करने वाले फ्लेमिश योहान वांडे लानोते ने फ्लांडर्स के वीआरटी चैनल के साथ बातचीत में माना कि अब तक फ्रेंच भाषी लोगों ने जो रियायतें दी हैं, वे डच भाषी लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं.

अब देश के कार्यवाहक वित्त मंत्री डिडीयर रेंडर्स दोनों पक्षों के बीच समझौते की छठी कोशिश में जुटे हैं. बुधवार को उन्हें देश के नरेश ने दो और हफ्ते का समय दिया, लेकिन किसी को भी इस दौरान बड़ी कामयाबी की उम्मीद नहीं है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एस गौड़

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