बिहार प्रशासन में आरक्षण से सशक्त हुई महिलाएं
२३ जून २०२१बिहार में 2005 में सत्ता संभालने के बाद नीतीश कुमार ने महिलाओं को मुख्य धारा में लाने के कई निर्णय लिए. नारी सशक्तिकरण की दिशा में लिए गए इन फैसलों ने प्रदेश के शैक्षिक,आर्थिक-सामाजिक व सांस्कृतिक ढांचे को भी काफी प्रभावित किया. हालांकि इसके साथ ही नीतीश कुमार के लिए एक खासा वोट बैंक भी तैयार हुआ, जिसकी फसल वे आज तक काटते रहे हैं. सत्रहवीं बिहार विधानसभा की बात करें तो करीब 11 प्रतिशत अर्थात 28 महिलाएं चुनाव जीत कर आईं हैं. इनमें सात दलित व एक अनुसूचित जाति की हैं.
नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार पहला ऐसा राज्य बना, जिसने 2006 में पंचायत व शहरी निकायों में महिलाओं के लिए 50 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की. इस फैसले ने प्रदेश में पंचायती राज की तस्वीर ही बदल दी. 2007 में माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक कक्षा की बालिकाओं के लिए शुरू की गई मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना तथा मुख्यमंत्री बालिका प्रोत्साहन योजना से स्कूलों में लड़कियों के नामांकन में भारी इजाफा हुआ. प्रदेश के इतिहास में उस साल पहली बार कक्षा नौ में एक साल पहले की तुलना में पांच गुणा अधिक लड़कियों ने दाखिला लिया. लड़कियों को स्कॉलरशिप व पोशाक भी दी गई.
विकास के लिए महिलाओं को प्रोत्साहन
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दलील ये थी कि अगर सभी लड़कियां कम से कम इंटरमीडिएट तक शिक्षित हो जाएं तो न केवल जन्मदर में कमी आ जाएगी, बल्कि आत्मविश्वास आएगा और वे स्वावलंबी बन सकेंगी. बिहार आर्थिक सर्वे, 2021 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार की जन्मदर में खासी कमी देखी गई है. 2001 में यह 4.4 थी, जो 2021 में 2.5 होगी और यही गति जारी रही तो यह गिरकर 2031 में 2 पर पहुंच जाएगी.
पोस्ट ग्रेजुएशन तक राज्य में सभी लड़कियों के लिए सरकार ने निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की है और इसी कड़ी में अब बीते माह प्रदेश के सभी सरकारी इंजीनियरिंग व मेडिकल कालेजों तथा प्रस्तावित स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के लिए नामांकन में एक तिहाई अर्थात 33 प्रतिशत सीटें लड़कियों के लिए आरक्षित कर दी गई. बिहार ऐसी व्यवस्था करने वाला देश का पहला राज्य है. राज्य के 38 सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में 9275 तथा दस सरकारी मेडिकल कालेजों में 1125 सीटें हैं
ताकि महिलाओं को मिले पहचान
2008 में मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना लागू की गई, जिसका मकसद आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक सशक्तिकरण के रूप में महिलाओं को पहचान दिलाना था. इस योजना के जरिए महिलाओं के व्यक्त्वि विकास के साथ ही उनकी प्रतिभा के बहुआयामी विकास पर जोर दिया गया, ताकि वे स्वावलंबी बन सकें. इसके अलावा मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, कन्या उत्थान योजना तथा कन्या सुरक्षा योजना के जरिए क्रमश: बाल विवाह को रोकने तथा कन्या के जन्म को प्रोत्साहित करने की कोशिश की गई.
इसी तरह 2016 में राज्य की सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत तथा शिक्षा विभाग की नौकरियों में 50 फीसद आरक्षण का प्रावधान किया गया. बिहार सरकार ने बीते फरवरी में पेश किए गए अपने बजट में उच्च शिक्षा के लिए अविवाहित महिलाओं को 25 हजार रुपये तथा ग्रेजुएशन करने पर 50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता का भी प्रावधान किया.
पुलिस में एक चौथाई महिलाएं
जनवरी, 2020 में प्रकाशित ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार पुलिस में 25.33 प्रतिशत महिलाएं थीं. पुलिस बल की कुल संख्या करीब 92,000 है जिसमें 23,245 महिलाएं थीं. किसी भी राज्य में यह सर्वाधिक संख्या है और यह राष्ट्रीय औसत 10.3 फीसद से लगभग दोगुनी है. 2015 तक यह आंकड़ा महज 3.3 प्रतिशत ही था. अफसरों के स्तर पर 1220 पुलिस इंस्पेक्टरों में 32 और 10039 सब-इंस्पेक्टरों में 920 महिलाएं हैं. ये सभी कानून-व्यवस्था संभालने में महती भूमिका निभा रहीं हैं. यह स्थिति तब है जब 27 फीसद महिला कास्टेबलों की नियुक्ति अभी बाकी है.
टाटा ट्रस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में पुरुष पुलिसकर्मियों की तुलना में महिला पुलिसकर्मियों की सबसे ज्यादा संख्या बिहार में है. अब नीतीश सरकार अपनी महत्वाकांक्षी योजना सात निश्चय पार्ट-2 के तहत "सशक्त महिला, सक्षम महिला योजना" को धरातल पर उतारने के लिए सरकारी दफ्तरों में 35 प्रतिशत सीटों पर महिलाओं को तैनात करेगी. इसके तहत अब थाना, प्रखंड, अंचल, अनुमंडल व जिला स्तरीय कार्यालयों में बतौर कार्यालय प्रधान अनुमंडल पदाधिकारी (एसडीएम), अंचलाधिकारी (सीओ), प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) व एसएचओ के पदों पर महिलाएं दिखेंगी. दरअसल, सरकार का मानना है कि ऐसा किए बिना महिला आरक्षण के प्रावधानों का मौलिक उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकता है.
आर्थिक मोर्चे पर भी सहायता की कोशिश
राज्य में स्वयं सहायता समूह जीविका के जरिए महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का भी प्रयास चल रहा है. देश में सर्वाधिक संख्या में महिलाएं बिहार में किसी भी ऐसे समूह से जुड़ीं हैं. बिहार सरकार की इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस (आईसीडीएस) की वेबसाइट पर जारी सूचनाओं के अनुसार प्रदेश के 27 जिलों में 34260 स्वयं सहायता समूह (एसएचजी)का गठन किया गया है जिनसे गरीब परिवार की 4.30 लाख महिलाएं लाभान्वित हो रहीं हैं. वहीं अपनी छोटी बचत के जरिए एसएचजी की महिलाओं ने करीब 4 करोड़ रुपये जमा किए हैं.
ऐसे ही प्रयासों से पटना जिले के फुलवारीशरीफ की महिलाएं भारती ब्रांड से सैनिटरी नैपकिन यूनिट चला रहीं हैं. पटना के ही मनेर ब्लॉक की महादलित महिलाएं मसाला यूनिट का संचालन कर रहीं हैं. जीविका दीदियों ने करोड़ों की संख्या में कोरोना काल में मास्क बनाकर अर्थोपार्जन किया. और अब सरकार मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना के तहत सभी वर्गों की महिलाओं को उद्योग लगाने के लिए दस लाख रुपये तक की मदद देगी. इसमें पांच लाख की राशि अनुदान के रूप में होगी जबकि पांच लाख की ब्याज मुक्त राशि उन्हें वापस करनी होगी. भारत सरकार के उद्यम रजिस्ट्रेशन पोर्टल के अनुसार बिहार में सूक्ष्म, लघु व मध्यम स्तर के कुल 37973 यूनिट हैं, जिनमें 7860 का संचालन महिलाएं करतीं हैं.
अशिक्षा, पुरुषवादी मानसिकता बड़ी बाधा
बिहार सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए जो योजनाएं शुरू की है उनका खासा फायदा भी हुआ, किंतु अशिक्षा, गरीबी व सामाजिक कुप्रथाएं आज भी इनके विकास में बाधक बनी हुई है. पत्रकार काजल शर्मा का मानना है, "राज्य में महिलाओं के सशक्तिकरण से इनकार नहीं किया जा सकता है. सरकारी योजनाओं का खासा प्रभाव पड़ा है, किंतु असली परिणाम आने में अभी वक्त लगेगा. अशिक्षा, सामाजिक असमानता व पुरुषवादी मानसिकता भी आधी आबादी के सशक्तिकरण में बड़ी बाधा है."
यही वजह है कि स्कूलों में जिन महिलाओं की शिक्षक के पदों पर नियुक्ति की गई है, उनमें कई की योग्यता आए दिन समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रहतीं हैं. तभी तो सामाजिक कार्यकर्ता पद्म श्री सुधा वर्गीज कहतीं हैं, "राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक स्तर पर कम्पोजिट स्कीम के जरिए महिलाओं के सशक्तिकरण की जरूरत है. पंचायतों में आज भी महिलाएं पति द्वारा बताए गए जगह पर केवल हस्ताक्षर करतीं हैं. बदलाव वास्तविक होने चाहिए, तभी इसका असर दिखेगा."