बिहार में चुनावी मुद्दों पर लग रहे हैं कयास
१८ सितम्बर २०२०एनडीए इस बार नीतीश कुमार की जगह पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में है तो प्रमुख विपक्षी दल राजद लालू यादव के साए से निकलने की जद्दोजहद कर रहा है. विकास, रोजगार, कानून-व्यवस्था व मूलभूत सुविधाओं पर दावे-प्रतिदावे जारी हैं. राजनीति के चाल-चरित्र के अनुरूप भावनात्मक मुद्दों को भी उभारने की कोशिश की जा रही है.
सत्तारूढ़ जनता दल यू एससी-एसटी को लेकर खेले गए दलित कार्ड को उभारने की कोशिश कर रहा है तो उसकी सहयोगी भाजपा सुशांत व फिर उसके बाद कंगना प्रकरण को लपकने की फिराक में नजर आती है. जबकि इनसे इतर राजद इस बार उन मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहा है जो कहीं न कहीं किसी सरकार के लिए एंटी इंकम्बैंसी के फैक्टर बनते हैं.
नीतीश की लोकप्रियता में कमी
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य सरकार के कामकाज को लेकर पार्टी के ही लोगों द्वारा मंडल स्तर पर एक आंतरिक सर्वे कराया है. सर्वे की रिपोर्ट ने भाजपा को रणनीति बदलने को विवश कर दिया है. रिपोर्ट के अनुसार नीतीश कुमार की विश्वसनीयता लोगों के बीच घटी है. ऐसा उनके द्वारा एनडीए छोड़ कर लालू के साथ जाने और फिर महागठबंधन छोड़ कर एनडीए के साथ आने के कारण हुआ है. एनडीए के वोटरों को लग रहा है कि लालू प्रसाद के साथ कहीं न कहीं नीतीश कुमार हमदर्दी रखते हैं. वे लालू के खिलाफ उस अंदाज में कभी हमलावर नहीं होते जिस तेवर में भाजपा के नेता उन पर निशाना साधते हैं. हालांकि बिहार सरकार के मंत्री महेश्वर हजारी इससे इत्तफाक नहीं रखते और कहते हैं, "नीतीश कुमार आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं. उनके चेहरे पर ही इस बार भी बिहार में सरकार बनेगी."
राजद के भाई वीरेंद्र तंज कसते हुए कहते हैं, "अब तो नीतीश कुमार के सहयोगी भी समझ चुके हैं कि उनकी जमीन खिसक चुकी है." रिपोर्ट के मुताबिक पंद्रह साल से शासन कर रहे नीतीश के कामकाज के प्रति भी लोगों में नाराजगी है यानि इस बार के चुनाव में यहां एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर भी अपनी भूमिका निभाएगी. भाजपा के लिए वाकई यह चिंता का सबब है. शायद इसी वजह से पार्टी ने पीएम नरेंद्र मोदी की छवि को भुनाने का निश्चय किया है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी बिहार के लिए खजाना खोल दिया है. करीब सोलह हजार करोड़ रुपये से अधिक की योजनाओं के जरिए एनडीए बिहार विधानसभा चुनाव की राह आसान करने की कवायद में जुट गया है.
आचार संहिता लागू होने से पहले मोदी ने राज्य में शिलान्यास, उद्घाटन व लोकार्पण की झड़ी लगा दी है. इतना ही नहीं मोदी केंद्रीय योजनाओं के उन लाभार्थियों से सीधा संवाद भी कर रहे हैं. बिहार की राजनीति में यह एक नया संकेत है. वे साथ ही यह बताने से भी नहीं चूक रहे कि इन योजनाओं से कितना रोजगार सृजित हुआ और आने वाले दिनों में आत्मनिर्भरता कितनी बढ़ सकेगी. शायद यही वजह है कि भाजपा इस बार आत्मनिर्भर बिहार का नारा दे रही है. इन सबसे इतर बिहार में लड़ाई का एकमात्र मुद्दा कांग्रेस-राजद के 45 साल बनाम एनडीए के 15 साल के शासन को बताते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं, "एनडीए की सरकार ने पंद्रह साल के शासन काल में जिस तरीके से सभी चुनौतियों को अवसर में बदला और समस्याओं का समाधान किया है, उससे बिहार में आज कानून व्यवस्था, बिजली,पानी, सडक़, बाढ़ व प्रवासी मजदूरों का कोई मुद्दा नहीं रह गया है."
सुशांत प्रकरण को मुद्दा बनाने की कोशिश
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उनके परिजनों को न्याय दिलाने नाम पर हुई राजनीति में भाजपा सबसे आगे दिखी. प्रदेश भाजपा के कला व संस्कृति प्रकोष्ठ ने तो बकायदा सुशांत की एक मुस्कुराती हुई तस्वीर और ‘न भूले हैं और न भूलने देंगे' के स्लोगन के साथ तीस-तीस हजार स्टीकर व मास्क जारी कर क्रमश: उसे जगह-जगह चिपकाया और वितरित किया. प्रकोष्ठ के राज्य संयोजक वरुण सिंह कहते हैं, "सुशांत के परिजन को न्याय दिलाने के हमारे अभियान का यह एक हिस्सा है. कलाकार होने के नाते सुशांत से भावनात्मक लगाव है. वे हमारे राज्य के ही निवासी थे. उनके निधन के दो दिन बाद ही हमलोगों ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी."
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी इस प्रकोष्ठ ने राजीव नगर चौक व नालंदा की प्रस्तावित फिल्म सिटी का नामकरण उनके नाम पर करने की मांग की थी. जाहिर है भाजपा के इस कदम पर सवाल खड़ा होना ही था. सोशल मीडिया में भी इसकी आलोचना हुई. लोगों ने कहा, महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधने की आड़ में भाजपा सुशांत की मौत पर राजनीति कर रही है ताकि चुनावी लाभ मिल सके. हालांकि भाजपा प्रवक्ता इस आरोप को नकारते हुए कहते हैं, "यह तो दिवगंत अभिनेता के परिजनों के प्रति एकजुटता दिखाने की कोशिश भर है जो न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं."
स्थानीय पत्रकार रविरंजन कहते हैं, "यह तो भाजपा का दोहरा चरित्र उजागर करता है. इसी पार्टी ने 2018 में सुशांत की फिल्म केदारनाथ का जमकर विरोध किया था. फिल्म को लव जिहाद से जोड़ते हुए इसके टाइटल व कुछ दृश्यों पर खूब हंगामा किया गया था. अब सुशांत के नाम पर राजनीतिक रोटी सेंकी जा रही है." हालांकि बिहार के चुनाव प्रभारी व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस का कहना है, सुशांत सिंह राजपूत का मुद्दा चुनावी मुद्दा नहीं है. यह तो पूरा देश चाहता है कि उनके परिवार को न्याय मिले. इसी प्रकरण पर हमलावर हुई फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत को भाजपा की ओर से बिहार में चुनाव प्रचार में उतारे जाने के संबंध में वे कहते हैं, "भाजपा को किसी स्टार की आवश्यकता नहीं है. पीएम मोदी ही हमारे स्टार हैं."
रिया की गिरफ्तारी पर एक सुर में पार्टियां
वैसे रिया चक्रवर्ती को जब गिरफ्तार किया गया तो राज्य की सभी पार्टियों ने एक सुर में कहा कि उसकी गिरफ्तारी से सीबीआई को सुशांत आत्महत्या प्रकरण का सच सामने लाने में सहायता मिलेगी. लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने तो कहा कि इससे उनलोगों को मौन साधना पड़ेगा जिन्होंने रिया की तरफदारी की थी. भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने प्रतिक्रिया दी,"महाराष्ट्र के राजनीतिक आकाओं ने रिया को बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ रहा. रिया से पूछताछ से सुशांत की मौत के सही कारणों का पता चल सकेगा." भला जदयू भी पीछे कैसे रहती. पार्टी का कहना था, "रिया की गिरफ्तारी से साफ हुआ कि जांच सही दिशा में जा रही थी."
वहीं राजद का कहना था, "तेजस्वी यादव ने तो सबसे पहले इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी. पार्टी ने इसे सदन के अंदर व बाहर उठाया भी था. रिया की गिरफ्तारी के लिए एनसीबी धन्यवाद की पात्र है." इस तरह के खटराग से तो साफ है कि सभी पार्टियां बिहार के राजपूत मतदाताओं को उनके हितैषी होने का भरोसा दिलाने की होड़ में हैं. विदित हो कि सोलहवीं विधानसभा में इस वर्ग के उन्नीस विधायक थे और करीब चालीस विधानसभा क्षेत्र में इनका खासा प्रभाव है जो किसी भी दल के लिए एकमुश्त वोटबैंक साबित हो सकता है. हां, भाजपा इस आड़ में महाराष्ट्र सरकार पर भी निशाना साध ले रही है.
उधर पश्चिम बंगाल में रिया चक्रवर्ती को लेकर ब्राह्मण कार्ड खेला जा रहा है. उन्हें बंगाली ब्राह्मण बताते हुए बंगाली अस्मिता का हवाला दे पार्टियां रिया के समर्थन में सड़कों पर उतर आई है. तृणमूल कांग्रेस ने सुशांत के लिए न्याय की मांग को रिया के खिलाफ अभियान बताते हुए इसे भाजपा का बंगालियों पर प्रहार तक बता दिया है. सुनियोजित तरीके से वहां यह सब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए हो रहा. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि राजनीतिक ध्रुवीकरण के तहत हिमाचल की बेटी, बिहार का लाल व बंगाल की बिटिया के त्रिकोण में सुशांत की खुदकशी का मामला भी बिहार में चुनाव का एक मुद्दा बन जाए.
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