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बिहार में चुनावों के बाद बदलाव की कशमकश

मनीष कुमार, पटना
१७ नवम्बर २०२०

बिहार में एकबार फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार बन गई, लेकिन पुराने चेहरों को दरकिनार कर भाजपा ने यह संदेश दे दिया है कि अपने बूते सरकार बनाने की तैयारी के साथ बदलाव की राह पर बढ़ चली है.

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 Indien neue Regierung von Nitish Kumar wurde vereidigt in Bundesstaat Bihar
तस्वीर: IANS

सत्रहवीं विधानसभा चुनाव में बहुमत प्राप्त कर बिहार में एनडीए की सरकार ने कार्यभार संभाल लिया. नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने जबकि उनके साथ भाजपा छठी बार सरकार में शामिल हुई. नई सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जदयू) के अलावा दो उप मुख्यमंत्री (भाजपा) तथा बारह मंत्री हैं. इनमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के पांच-पांच तथा हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) एवं विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के एक-एक मंत्री हैं. इन मंत्रियों में नौ ऐसे हैं जो पहली बार मंत्री बनाए गए हैं. मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा भी कर दिया गया है. एनडीए को विधानसभा चुनाव में 125 सीटें मिलीं जिनमें भाजपा की 74, जदयू की 43, हम व वीआइपी की चार-चार सीटें शामिल हैं. राज्य में पहली बार दो उप मुख्यमंत्री बनाए गए हैं. मंत्री बनाने में जातिगत समीकरण के साथ-साथ उन क्षेत्रों का भी ख्याल रखा गया है जहां एनडीए को अच्छी खासी सीटें मिलीं हैं.

भाजपा ने दिग्गजों से किया किनारा

भाजपा ने इस बार राज्य में पार्टी के पुराने दिग्गजों से किनारा कर लिया. यहां तक कि संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे सुशील कुमार मोदी को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी. एकमात्र मंगल पांडेय ही दोबारा मंत्री पद पाने में सफल हो सके. एनडीए सरकार में अबतक उप मुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी को दरकिनार कर पार्टी ने इस बार तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उपमुख्यमंत्री बनाया. सुशील मोदी के अलावा पिछली सरकार में पथ निर्माण मंत्री रहे नंदकिशोर यादव, कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार व राजस्व व भूमि सुधार मंत्री रामनारायण मंडल को भी किनारे कर दिया गया. नंदकिशोर यादव को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है. इस बार भाजपा ने जिन लोगों पर भरोसा किया, उनमें तारकिशोर प्रसाद (कटिहार), रेणु देवी (बेतिया), मंगल पांडेय (सीवान), अमरेंद्र प्रताप सिंह (आरा), रामप्रीत पासवान (राजनगर, मधुबनी), जीवेश कुमार मिश्रा (जाले, दरभंगा) व रामसूरत राय (औराई, मुजफ्फरपुर) शामिल हैं.

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सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथतस्वीर: IANS

इसके अलावा भाजपा के कोटे से वीआइपी के मुखिया मुकेश सहनी ने भी मंत्री पद की शपथ ली. मुकेश सिमरी बख्यितारपुर (सहरसा) से चुनाव हार गए थे. पिछली सरकार में भाजपा के बारह मंत्री थे जिनमें दो, सुरेश शर्मा (मुजफ्फरपुर) व वृजकिशोर बिंद (चैनपुर) चुनाव हार गए. एक मंगल पांडेय को नई कैबिनेट में जगह मिल गई जबकि अन्य नौ चुनाव तो जीते किंतु मंत्री नहीं बनाए गए. जाहिर है, भाजपा ने नई टीम को आगे लाकर यह संदेश दे दिया है कि वह बदलाव की राह पर अग्रसर है. पत्रकार संदीप शेखर कहते हैं, "दरअसल भाजपा नेतृत्व मानकर चल रहा था कि नीतीश कुमार के साथ जब तक सुशील मोदी रहेंगे तब तक भाजपा अपने बूते राज्य में खड़ी नहीं हो सकती. वह जदयू की बी टीम बनकर ही रहेगी. वैसे भी अब तक जदयू बड़े भाई की भूमिका में था और अब तो भाजपा ने उसकी जगह ले ली है."
वहीं जदयू ने अपने कुछ पुराने तो कुछ नए साथियों को जगह दी है. जदयू के कोटे से विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष व नीतीश कुमार के विश्वस्त सहयोगी विजय कुमार चौधरी (सरायरंजन, समस्तीपुर), अशोक चौधरी, विजेंद्र यादव (सुपौल), मेवालाल चौधरी (तारापुर, मुंगेर) तथा शीला कुमारी (फुलपरास, मधुबनी) को मंत्री पद से नवाजा गया है वहीं हम के कोटे से पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के पुत्र संतोष कुमार सुमन (गया) मंत्री बनाए गए हैं. इनमें 74 वर्षीय विजेंद्र यादव सबसे उम्रदराज हैं और देश में लंबे समय तक किसी राज्य के ऊर्जा मंत्री रहने का रिकॉर्ड इन्हीं के नाम है. वहीं पचास वर्षीया शीला कुमारी पहली बार चुनाव जीत कर आईं हैं.

मंत्रिमंडल में भी सोशल इंजीनियरिंग

इंजीनियरिंग की डिग्री धारण करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंत्रियों के चयन में भी सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा. जो मंत्री हटाए भी गए उनकी जगह दूसरे को देने भी सामाजिक संतुलन का पूरा ख्याल रखा गया. वैश्य जाति के तारकिशोर प्रसाद, नोनिया समाज की रेणु देवी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया तो महादलित समुदाय से पासी जाति के अशोक चौधरी, दुसाध जाति के रामप्रीत पासवान, निषाद जाति के मुकेश सहनी, यादव जाति के विजेंद्र यादव व रामसूरत राय, कुशवाहा वर्ग से मेवालाल चौधरी, धानुक जाति से शीला कुमारी एवं मुसहर जाति के संतोष कुमार सुमन को मंत्री बनाकर पिछड़े तथा अतिपिछड़े वर्ग को साधने की भरपूर कोशिश की गई. वहीं सवर्णों में भूमिहार जाति से जदयू के कोटे से विजय कुमार चौधरी व भाजपा के कोटे से जीवेश कुमार को मंत्री बनाया गया जबकि भाजपा के कोटे से ही ब्राह्मण जाति के मंगल पांडे तथा राजपूत बिरादरी से अमरेंद्र प्रताप सिंह को मंत्री पद से नवाजा गया है.

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बीजेपी के अमित शाह के साथ नीतीश तस्वीर: IANS

साफ है, जब जाति को अलग कर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता तो फिर मंत्रिमंडल के गठन में इससे परहेज कैसे किया जा सकता है. इतना ही नहीं उन इलाकों का भी ख्याल रखा गया जहां एनडीए ने बढ़त हासिल की. इनमें सबसे आगे रहा मिथिलांचल व सीमांचल जहां एनडीए खासकर भाजपा को जबरदस्त जीत हासिल हुई. इसके अलावा सारण, मगध, शाहाबाद व अंग के इलाके को भी प्रतिनिधित्व दिया गया. हां, थोड़ी हैरान करने वाली बात है कि पहली बार 15 फीसद आबादी वाले अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई है. हालांकि संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले विस्तार में इस वर्ग को प्रतिनिधित्व अवश्य ही मिल जाएगा.

शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार

आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने जनादेश हड़पने का आरोप लगाते हुए नीतीश कुमार व उनकी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार किया. उनका कहना था कि बदलाव के जनादेश को शासनादेश में तब्दील कर दिया गया. महागठबंधन के मुखिया तेजस्वी यादव ने कटाक्ष करते हुए कहा, "नीतीश कुमार जी को मुख्यमंत्री मनोनीत होने पर शुभकामना. आशा है कुर्सी की महात्वाकांक्षा की बजाय आप राज्य की जनता की जनाकांक्षा व 19 लाख नौकरी-रोजगार और पढ़ाई-लिखाई व दवाई-कमाई जैसे सकारात्मक मुद्दों को नई सरकार की प्राथमिकता बनाएंगे." वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा, "जनता ने इस बार बदलाव के लिए जनादेश दिया था. जिस सरकार ने जनादेश को बदलने की साजिश की, उसके शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का कोई मतलब नहीं."

लोक जनशक्ति पार्टी को समारोह में शामिल होने का न्योता ही नहीं दिया गया था. हालांकि लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनने पर बधाई दी और कहा कि बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट विजन डाक्यूमेंट आपको भेज रहा हूं. यह जनता की आंकाक्षाओं का डाक्यूमेंट है. आशा करता हूं, पूरे कार्यकाल तक आप एनडीए के मुख्यमंत्री बने रहेंगे. दो उपमुख्यमंत्री बनाए जाने पर तीखी टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजेश राठौर ने कहा, "नीतीश कुमार पर नजर रखने के लिए दो उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं. पहले उन्हें भाजपा ने एक मुंशी दिया था जो बाद में स्टेप्नी बन गया, उसे बीजेपी ने हटा दिया." वहीं जदयू के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन कहते हैं, "यह भाजपा का मामला है. उसने दो उप मुख्यमंत्री बनाना तय किया. हमें इससे क्या समस्या. कुशल प्रशासक होने के नाते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बखूबी जानते हैं कि कैबिनेट का बेहतर संचालन कैसे किया जा सकता है. दो उपमुख्यमंत्री त्वरित गति से विकास के लक्ष्य को हासिल करने में मददगार होंगे तथा मुख्यमंत्री की बेहतर सहायता कर सकेंगे जिससे प्रदेश की विकास की गति तेज हो सकेगी."

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उप मुख्यमंत्री बने बीजेपी के तारकिशोर प्रसादतस्वीर: IANS

नई सरकार में भाजपा की रणनीति

यह तो समय के साथ ही साफ हो सकेगा कि सरकार चलाने में दो उपमुख्यमंत्री किस हद तक और कितने मददगार साबित हो सकेंगे. जानकार बताते हैं, "पूरी टीम को बदलकर भाजपा ने इतना तो साफ कर दिया है कि अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा, चीजें बदल गईं हैं. सरकार में पार्टी का हस्तक्षेप बढ़ेगा जो सुशील मोदी के उपमुख्यमंत्री रहते कतई संभव नहीं था. दूसरी बात कि इस तरह नेतृत्व की दूसरी पंक्ति भी राज्य में खड़ी हो सकेगी." प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव में जीत पर दिल्ली में आयोजित जश्न में साफ कहा था कि भाजपा के पास साइलेंट वोटर के रूप में महिलाओं का बड़ा वोट बैंक है. इसलिए उनका ख्याल रखते हुए पार्टी ने पहली बार बिहार में महिला उपमुख्यमंत्री बनाया.

नये चेहरों को जगह देकर भाजपा ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि पार्टी का साधारण कार्यकर्ता भी अपने बूते शिखर पर पहुंच सकता है. जातिगत समीकरणों का ख्याल रखते हुए यह संदेश भी दिया है कि पार्टी सबका साथ, सबका विकास चाहती है. पत्रकार अमरनाथ झा कहते हैं, "भाजपा बड़े भाई की भूमिका में तो आ ही गई है और अब वह अपने बूते बिहार में खड़ा होना चाहती है. तभी तो नीतीश कुमार से बेहतर तालमेल कर चल रहे सुशील मोदी झटके में किनारे कर दिया. इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ व महाराष्ट्र में देवेंद्र फड़णवीस का अभ्युदय भी तो ऐसी ही परिस्थितियों में हुआ था." जाहिर है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए चुनौतियां बढ़ीं हैं और वे बदली हुई परिस्थितियों में अपनी विरासत को बचाने में कामयाब हो पाएंगे या नहीं, यह समय ही बताएगा.

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