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बिहार की बाढ़- कारण जलवायु परिवर्तन?

अना लेमान / राम यादव१० सितम्बर २००८

बिहार सरकार ने कोसी नदी का तटबंध टूटने की न्यायिक जांच के आदेश दे दिये गए हैं जो कि बिहार में आई बाढ़ का एक महत्वपूर्ण कारण था जर्मन मीडिया में भी बिहार में आई बाढ़ छाई रही.

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बिहार में बाढ़ से विस्थापित लोगतस्वीर: AP

भारत के बिहार में आयी भीषण बाढ़ ने 35 लाख लोगों को बेघर बना दिया है. बर्लिन के टागेसत्साइटुँग के मत में यह बाढ़ जलवायु परिवर्तन की मार का एक और उदाहरण हैः

"असली दोषी शायद जलवायु परिवर्तन है. इधर कुछ वर्षों से मॉनसूनी वर्षा और भी ज़ोरदार होती जा रही है. इस साल तो पश्चिमी तट पर अप्रैल में ही खूब बारिश होने लगी... बड़े-बूढ़ों का कहना था कि ऐसा इससे पहले उन्होंने कभी नहीँ देखा था."

जैसे मुशर्रफ़ वैसे ज़रदारी

पाकिस्तान में राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले जर्मनी की सबसे ज्यादा बिकने वाली साप्ताहिक पत्रिका देयर श्पीगल ने आसिफ़ अली ज़रदारी का आकलन करते हुए लिखाः

"ज़रदारी स्वयं कोई ख़ास लोकप्रिय नहीं हैं. पत्नी की मृत्यु के बाद उन्हें मजबूरी में उत्तराधिकारी मान लिया गया. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के पास ही संसद में सबसे अधिक सीटें हैं. नवाज़ शरीफ़ से बदला लेने की भावना से ज़रदारी मुख्य न्यायाधीश इफ़्तेख़ार चौधरी और 60 अन्य न्यायाधीशों की बहाली नहीं होने दे रहे हैं. ज़रदारी ने अपने सबसे बड़े चुनावी वादे को भंग किया, इस कारण उनके प्रतिद्वंद्वी नवाज़ शरीफ़ के साथ गठबंधन भी टूट गया."

Pakistan Präsident Asif Ali Zardari vereidigt
ज़रदारी बने राष्ट्रपतितस्वीर: AP

श्पीगल के अनुसार, नवाज़ शरीफ़ भी बदला लेने के मूड में हैं:

"शरीफ़ भी अच्छे प्रधानमंत्री नहीं थे, कोई अच्छे लोकतंत्रवादी भी नहीं थे. उन्होंने धार्मिक मुसलमानों के साथ सांठगांठ की और शरियत तक को लागू करना चाहते थे. अब वे कानून के राज का सबसे बड़ा रक्षक होने का स्वांग भर रहे हैं."

देयर श्पीगल का निष्कर्ष हैः

मुशर्रफ़ हों, भुट्टो घराना हो या शरीफ़ः बदली हुई भूमिकाओं में वही लोग अब भी असली कर्ताधर्ता हैं, जो 90 वाले दशक में भी थे. जो कल ऊपर था, वह आज नीचे है, जो नीचे था, वह आज ऊपर है, जबकि देश का दम समस्याओं से घुटा जा रहा है.

एक अन्य समाचार साप्ताहिक फ़ोकस का मत है कि ज़रदारी यदि राष्ट्रपति बने, तो मुशर्रफ़ जैसा ही बर्ताव करेंगेः

"देश का प्रधानमंत्री अभी से ज़र्दारी की मुठ्ठी में है (ऐसा पाकिस्तानी विश्लेषक कहते हैं). राष्ट्रपति हो जाने पर तो वे सेनाध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायाधीष और प्रांतों के राज्यपालों की भी नियुक्ति करेंगे. केंद्रीय बैंक और परमाणु अस्त्र भी उन्हीं के नियंत्रण में होंगे. वे राष्ट्रपति के अधिकारों में कोई कटौती भला क्यों करना चाहेंगे!"

पाकिस्तानी संविधान के जानकार जमाल ख़ुर्शीद के हवाले से फ़ोकस का कहना है कि राष्ट्रपति बन जाने पर ज़रदारी "संसद पर और अधिक नज़र रख सकेंगे, अध्यादेश जारी कर सकेंगे और दो-तिहाई बहुमत के बिना भी संविधान में संशोधन कर सकेंगे".

दैनिक फ्रांकफ़ुर्टर अल्गेमाइने त्साइटुँग ने उड़ीसा में हिंदू-ईसाई दंगों को टिप्पणी का विषय बनाते हुए लिखाः

"हिंदुओं और ईसाई अल्पसंख्कों के बीच तनावों की जड़ बढ़ते हुए धर्मपरिवर्तनों में है. स्थानीय जानकारों का कहना है कि कंधमाल में रहने वाले 6 लाख हिंदुओं में से 20 प्रतिशत पिछले वर्षों में ईसाई बन गये. हिंदू संस्थाएँ वर्षों से आरोप लगा रही हैं कि चर्च वाले निचली जातियों और दलितों का धर्मपरिवर्तन कर रहे हैं और इसके लिए पैसे का भी प्रयोग करते हैं. जबकि चर्च कहता है कि लोग जातिप्रथा से छुटकारा पाने के लिए स्वेच्छा से उसकी शरण में आते हैं."