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बिना अनुमति विदेशियों को जंगल घुमाता था पाओलो

२२ मार्च २०१२

उड़ीसा में दो इतालवी सैलानियो के माओवादियों के हाथों अपहरण ने दोनों देशों के रिश्तों को तनावपूर्ण बना दिया है.क्या इन पर्यटकों को आदिवासियों और जंगलों से लगाव था या फिर वे महज विदेशी नागरिकों को घुमा कर पैसे बना रहे थे?

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

उड़ीसा के मशहूर समुद्रतटीय पर्यटन केंद्र पुरी में बीते दो दशक से भी लंबे अरसे से रह कर विदेशी पर्यटकों को जगल और आदिवासी बस्तियों की सैर करना वाले बोसुस्को पाओलो का अपहरण तो कम से कम यही सवाल उठाता है. माओवादियों का दावा है कि यह दोनों लोग नदी में नहा रही आदिवासी महिलाओं की आपत्तिजनक तस्वीरें खींच रहे थे. हालांकि अब तक इस दावे की पुष्टि नहीं हो सकी है. अंडमान निकोबार में जारवा जनजाति के लोगों की नाच करती तस्वीरों और वीडियो के सामने आने के बाद अब जनजातिबहुल इस राज्य में भी सवाल उठने लगे हैं.

पुरी में एजेंसी और आरोप

पुरी में पाओलो का नाम जाना-पहचाना है. खासकर विदेशी पर्यटकों के बीच वे खासे लोकप्रिय रहे हैं. और हो भी क्यों न? पर्यटन वीजा पर इस शहर में रहने वाले पाओलो बीते दो दशक से भी लंबे अरसे से ऐसे पर्यटकों को राज्य के दुर्गम जनजातीय इलाकों की सैर कराते थे. टूरिस्ट वीजा पर रह रहे पाओलो नियमों के मुताबिक हर छह महीने पर एक बार कुछ दिनों के लिए अपने देश जाते थे. लेकिन फिर जल्दी ही पुरी लौट आते थे. उनके ट्रेकिंग अभियान पर जाने वाले पर्यटकों में विदेशियों के अलावा भारत के दूसरे शहरों के लोग भी शामिल रहते थे. पाओलो ने इसके लिए उड़ीसा ट्रेकिंग एंड एडवेंचर्स नाम की एक संस्था भी खोली थी.

पुरी ने पाओलो के परिचित और एक होटल मालिक सरोज रथ कहते हैं, "हर बार की तरह पाओलो इस बार भी एक दूसरे इतालवी सैलानी क्लाउडियो कोलांजेलो के साथ 12 मार्च को ट्रेकिंग अभियान पर निकले थे. क्लाउडियो तो नौ मार्च को ही पुरी पहुंचा था. मुझे उन दोनों के अपहरण की खबर से झटका लगा है. वह बेहद मिलनसार और मृदुभाषी व्यक्ति थे." पुरी के पर्यटन अधिकारी विजय जेना बताते हैं, "पाओलो ने कुछ साल पहले यहां चक्रतीर्थ रोड पर अपना छोटा दफ्तर खोला था." मौजूदा नियमों के तहत इस शहर में ट्रेवल एजेंसी चलाने वालों को पर्यटन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है. स्थानीय टूर आपरेटरों का आरोप है कि पाओलो ने विदेशी पर्यटकों को खासकर माओवाद प्रभावित आदिवासी इलाकों में ले जाने के लिए पर्यटन विभाग से कोई अनुमति नहीं ली थी. जेना भी यह बात कबूल करते हैं. लेकिन उनकी दलील है कि ऐसी अनुमति सिर्फ ट्रेवल एजेंसियों के लिए जरूरी है और पाओलो की संस्था कोई ट्रेवल एजेंसी नहीं थी.

टूर आपरेटरों में नाराजगी

पाओलो और पर्यटन विभाग के दावे के उलट स्थानीय टूर आपरेटरों में उसकी संस्था और कामकाज के प्रति खासी नाराजगी है. उड़ीसा टूर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष युगब्रत कर सवाल करते हैं, "टूरिस्ट वीजा पर यहां रहने वाला कोई विदेशी नागरिक बिजनेस कैसे कर सकता है? इसके लिए उसके पास बिजनेस वीजा होना चाहिए था." एक दूसरे टूर ऑपरेटर इसके लिए स्थानीय पुलिस और प्रशासन को जिम्मेवार ठहराते हैं. उनका कहना है कि पुलिस को पहले ही इस बात पर ध्यान देना चाहिए था. इसकी जांच होनी चाहिए थी कि आखिर वह विदेशी पर्यटकों को कहां और क्यों ले जाता है? उड़ीसा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मानते हैं कि विभाग को इस बात की जानकारी नहीं थी कि पाओलो पुरी में बिजनेस कर रहा है. उसके पास पासपोर्ट और वीजा समेत तमाम वैध कागजात थे. हम तो उसे ऐसा पर्यटक समझते थे जिसे पुरी और उड़ीसा से गहरा लगाव है. इसलिए वह बार-बार यहां आता है.

विधानसभा में भी गूंजा मामला

इन आरोपों की गूंज उड़ीसा विधानसभा में भी सुनाई दे रही है. विपक्षी राजनीतिक दलों ने इस मामले में पुलिस और खुफिया विभाग की लापरवाही के लिए सरकार की खिंचाई की है. विपक्षी कांग्रेस के नेता भूपिंदर सिंह कहते हैं कि इतालवी नागरिकों का अपहरण 14 मार्च को हुआ था. लेकिन सरकार को मीडिया के जरिए चार दिनों बाद इसकी सूचना मिली. यह बेहद शर्मनाक है. राज्य के संसदीय कार्यमंत्री रघुनाथ मोहंती ने यह कह कर विपक्ष को शांत करने का प्रयास किया कि मुख्यमंत्री समय-समय पर सदन को इस अपहरण कांड की प्रगति से अवगत कराते रहेंगे. उनका कहना था कि इस मामले पर सदन में बहस की जरूरत नहीं है.

माओवादियों की शर्तें

इन दोनों के अपहरण के बाद माओवादियों ने उनकी रिहाई के लिए जो 13 शर्तें रखी हैं उनमें जेल में बंद संगठन के लगभग छह सौ नेताओं व कार्यकर्ताओं को छोड़ना, माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों का अभियान रोकना और पिछले साल फरवरी में अपहृत मलकानगिरी जिले के जिला कलेक्टर आर.वी. कृष्णा की रिहाई के वक्त मानी गई मांगों को तुरंत पूरा करना शामिल है. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक माओवादियों से इन दोनों बंधकों को रिहा करने और शर्तों पर बातचीत के लिए आगे आने की अपील कर चुके हैं. माओवादियों ने मध्यस्थ के तौर पर सोमवार को तीन लोगों के नाम सुझाए थे. लेकिन सरकार ने उनमें से एक का नाम खारिज कर दिया जबकि एक ने खुद ही मध्यस्थता से इंकार कर दिया है. उसके बाद मंगलवार को माओवादियों ने दो नए नाम सुझाए. सरकार ने अपनी ओर से तीन अधिकारियों को बातचीत के लिए नियुक्त किया है.

मांगें पूरी करना मुश्किल

वैसे, सरकारी सूत्रों का कहना है कि माओवादियों की ज्यादातर मांगों को मानना संभव नहीं है. उन्होंने जिन नेताओं की रिहाई की मांग की है उनमें से कुछ तो झारखंड और छत्तीसगढ़ की जेलों में बंद हैं. उनको रिहा करना राज्य सरकार के हाथों में नहीं है. केंद्र ने कंधमाल में सुरक्षा बलों को अभियान रोकने का निर्देश जरूर दिया है. लेकिन सुरक्षा बल के जवान अब भी इलाके में तैनात हैं. राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, विदेशी नागरिकों की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है. माओवादियों का मकसद सरकार पर दबाव डालकर अपनी कुछ मांगें मनवाना है. ऐसे में दोनों इतालवी नागरिकों के सुरक्षित रहने का भरोसा है.

केंद्र पर आरोप

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार पर असहयोग का आरोप भी लगाया है. वह कहते हैं कि केंद्र सरकार और विदेश मंत्रालय इस समस्या के समाधान के प्रति गंभीर नहीं हैं. विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा ने तो पहली बार इस मामले की जानकारी देने के लिए किया गया फोन तक नहीं उठाया था.उधर, केंद्र सरकार ने कहा है कि वह इस मामले में बंधकों की सुरक्षित रिहाई के लिए राज्य सरकार को हरसंभव सहायता देने के लिए तैयार है.

कोलकाता में इटली के कौंसुल जनरल जोएल मेलचिओरी इस अपहरण की सूचना मिलते ही राजधानी भुवनेश्वर पहुंच गए. उनको उम्मीद है कि दोनों बंधक जल्दी ही छोड़ दिए जाएंगे. वह कहते हैं, "इटली सरकार जल्दी ही भारत के आदिवासी इलाकों की सैर पर आने वाले पर्यटकों के लिए नई सलाह जारी करेगी जिसमें उनसे वहां जाने से पहले स्थानीय अधिकारियों की सलाह लेने को कहा जाएगा."

वाद-विवाद और आरोप-प्रत्यारोप के ताजा दौर के बीच अपहरण के छह दिनों बाद भी इस मामले में ठोस प्रगति नहीं हो सकी है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि माओवादियों की सभी मांगों को पूरा करना कानूनी व तकनीकी रूप से संभव ही नहीं है. ऐसे में इस मामले के लंबा खिंचने के आसार हैं.

रिपोर्टः प्रभाकर,कोलकाता

संपादनः एन रंजन