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बाली में जलवायु परिवर्तन पर अहम बैठक

शिवप्रसाद जोशी३ दिसम्बर २००७

दो हफ़्ते तक चलने वाली बैठक में 190 देश हिस्सा ले रहे हैं। यहां बढ़ते तापमान पर लगाम कसने और कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने पर चर्चा होगी।

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जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के पैनल को नोबेल पुरस्कार मिला है
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के पैनल को नोबेल पुरस्कार मिला हैतस्वीर: AP

इंडोनेशिया के बाली शहर में आज से जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय बैठक हो रही है। 190 देशों के प्रतिनिधि दुनिया से ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ रणनीति को अमल में लाने के लिए माथापच्ची करेंगे। माथापच्ची इसलिए कि ये ऐसा मामला है जिसमें हर देश और ग्रुप की अलग अलग समस्याएं और दलीलें हैं। फिर वो यूरोपीय संघ बनाम अमेरिका हो या अमेरिका-चीन बनाम बाकी दुनिया या फिर वो विकसित बनाम विकासशील देश हों।

बैठक से ठीक पहले जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है कि जलवायु की सुरक्षा के लिए उनका देश बाली कांफ्रेंस में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेगा। उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा कि जर्मनी एक ऐसी योजना का प्रस्ताव रखेगा, जिसके तहत 2020 तक कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा में 40 फ़ीसदी की कमी लाई जा सकेगी। साथ ही दोबारा इस्तेमाल की जाने वाली ऊर्जा का भी प्रस्ताव रखा जाएगा।

बातचीत से पहले कई राउंड की बैठकें हो चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र के विशेष पैनल की इस साल तीन बैठकें, यूरोपीय संघ की, जी-8 देशों की, अमेरिका की। और कई वैज्ञानिक विशेषज्ञों की कई दौर की बैठकें जिसके बाद एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की गयी बाली बैठक के लिए। स्पेन के शहर वैलेंसिया में मौसम विज्ञानी जुटे और इस रिपोर्ट को मंज़ूरी दी गयी। इसमें ग्लोबल वार्मिग के असर और उसेक खिलाफ मुहिम चलाने के तरीको पर सुझाव हैं। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन के पैनल ने आगाह किया है कि अब चंद साल ही बचे हैं। वरना तापमान में अभूतपूर्व बढ़ोतरी रोके नहीं रुकेगी। पैनल के प्रमुख डॉक्टर राजेंद्र पचौरी कहते हैं कि उनकी रिपोर्ट इस खतरे के खिलाफ नीति बनाने में मददगार होगी।

प्रदूषण फैलाने मे दुनिया में नंबर एक और इस लिहाज़ से ग्रीन हाउस गैसों के सबसे ज़्यादा उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार है- अमेरिका। जब यूरोपीय संघ उसे उसकी कमी बताता है तो अमेरिका पलटकर कहता है कि वो 15 देशों के साथ मिलकर एक लंबी अवधि के ग्लोबल लक्ष्य के लिए काम करेगा। ग्लोबल वार्मिंग की अंतरराष्ट्रीय मुहिम के समांतर ये एक तरह से अपनी ढपली अपना राग बजाने का मामला है। अमेरिका के बाद नंबर है चीन का। जाने माने मौसम विज्ञानी प्रोफेसर मुजीब लतीफ ने डॉयचे वेले से खास बातचीत में कहा कि ज़हरीली गैसों के 40 फीसदी उत्सर्जन के लिए अकेले ये दोनों देश ज़िम्मेदार हैं। और बाली बैठक की कामयाबी इस पर भी निर्भर करेगी कि इन दोनों देशों को कटौती के लिए कैसे और कितना राज़ी कराया जा सकता है।

तीसरा नंबर भारत का बताया जाता है। दूसरे विकासशील देशों पर भी उत्सर्जन में कटौती का दबाव है। लेकिन ये देश विकास की दौड़ में पिछड़ने की दुहाई देकर इस मामले को टालते रहे हैं। भारत का तर्क है कि अगर प्रति व्यक्ति उत्सर्जन का हिसाब रखना है तो पहले औद्योगिक देश अपना हिसाब देंखे। वे पहले भारी कमी लाएं फिर उसके आधार पर विकासशील देश भी अपने यहां कमी ला सकते हैं।

एक तरफ विकासशील देश हैं जो अभी तक 1997 की क्योटो प्रोटोकोल संधि से बाहर हैं और दूसरी तरफ औद्योगिक देशों के अपने विवाद हैं जिन्हें क्योटो प्रोटोकोल के दायरे में सुलझाया जाना है। बाली बैठक इसलिए भी अहम है क्योंकि इसमें क्योटो प्रोटोकॉल की 2012 की मीयाद से आगे के लिए यानी 2050 तक ग्रीन हाउस गैसो की निकासी में अमीर देशों के लिए 60 से 80 फीसदी की कटौती का लक्ष्य रखा जाना है। लेकिन सवाल यही है कि इस पहाड़ से दिखते लक्ष्य को अमेरिका और चीन स्वीकार कर लेंगे। जानकारों के मुताबिक ये पहाड़ तो है लेकिन वो ग्लेशियर नहीं जो तेज़ी से पिघल कर पूरी दुनिया पर खतरा बने हुए हैं।