बायो डीज़ल ही बचा सकता है..बस
९ अक्टूबर २००९दुनिया भर की सड़कों पर लगभग साठ करोड़ कारें दौड़ रही हैं. दूसरी गाड़ियों, ट्रेनों और विमानों की तो बात ही छोड़िए. प्राकृतिक ईंधन का भंडार कम होता जा रहा है और अनुमान है कि आने वाले बीस तीस सालों में यह ख़त्म हो जाएगा. लेकिन जब तक दूसरा इंतज़ाम न हो तब तक कैसी बिजली इस्तेमाल हो.
बायो फ़्यूल यानी बायो ईंधन की बात चलती रहती है, पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचती. बर्लिन के एशिया पैसिफ़िक वीक में भी इस मुद्दे पर बात चली कि आख़िर बायो ईंधन को कैसे लोगों तक पहुंचाया जाए. भारत के सुधीर कुमार ठाकुर का दावा है कि उन्होंने एक ख़ास उपकरण तैयार किया है. वो कहते हैं कि,''मैंने प्रोसेस नियंत्रित करने के लिए एक नया सिस्टम तैयार किया है. इसे बायो डीज़ल फोटो मीटर कहा जाता है. इसके ज़रिए काम करने के तरीके को नियंत्रित किया जाता है.''
ईंधन के अलावा यातायात सुचारू करने पर भी चर्चा चली. सिर्फ़ भारत में हर घंटे तेरह लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं, जबकि हर महीने हज़ारों दुर्घटनाएं होती हैं. बर्लिन में इस मुद्दे पर भी चर्चा चली कि ट्रैफ़िक को किस तरह व्यवस्थित किया जाए.
चीन ने पिछले दस साल में बायो ईंधन की दिशा में काफ़ी काम किया है. ऊर्जा बचाने और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाली तकनीक की खोज जारी है और एशिया पैसिफ़िक वीक जैसे आयोजनों से रास्ता निकल आने की उम्मीद बंधती है.
रिपोर्ट: आभा मोंढे, बर्लिन
संपादन: ओ सिंह