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बाबरी मस्जिद विध्वंस की 19 वीं बरसी

६ दिसम्बर २०११

अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने की 19वीं बरसी के मौके पर अयोध्या समेत देश भर में संवेदनशील इलाकों की सुरक्षा कड़ी कर दी गई. पूरा दिन शांति से गुजर गया और कहीं से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं है.

https://p.dw.com/p/13Nae
तस्वीर: UNI

6 दिसंबर का दिन करीब आने के साथ ही सरकार के कान खड़े हो जाते हैं. 19 साल पुरानी उस घटना की तस्वीरें सबके दिमाग में कौंधने लगती हैं जब कारसेवकों की भीड़ ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया था. समाज का एक वर्ग इसे काले दिन के रूप में तो दूसरा शौर्य दिवस के रूप में याद करने की कोशिश करता है लेकिन असली सिरदर्द होती है प्रशासन की जिसे हर हाल में कानून व्यवस्था को कायम रखना होता है और कहीं कोई गड़बड़ न हो यह सुनिश्चित करना होता है.

Indien Sicherheitsmaßnahmen Ayodhya
तस्वीर: DW/Waheed

सरकार को सबसे चिंता रहती है अयोध्या की जो पिछले 19 सालों में आस्था से ज्यादा धार्मिक विवाद का केंद्र रहा है. सुरक्षाबलों को चौकस कर दिया गया और भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया गया. अयोध्या के साथ ही फैजाबाद, कानपुर, लखनऊ, मथुरा और वाराणसी में भी सुरक्षा के इंतजाम चौकस कर दिए गये. सिर्फ इतना ही नहीं दिल्ली, हैदराबाद और देश के दूसरे कई इलाकों में भी सुरक्षा चाक चौबंद कर दी गई.

इस बार गनीमत यह रही है कि इन सुरक्षा इंतजामों की वजह से आम लोगों को कोई परेशानी न हो इस बात का भी ख्याल रखा गया. पुलिस वाले जगह जगह मौजूद थे लेकिन आम लोगों की रोजमर्रा की गतिविधियों में कोई रूकावट न हो इस पर भी ध्यान था. गाड़ियों के शहर में घुसने पर कोई पाबंदी नहीं थी लेकिन एहतियात के लिए उनकी जांच जरूर की जा रही थी.

Indien Babri Masjid Moschee in Ayodhya
तस्वीर: AP

सार्वजनिक रूप से किसी भी संस्था की तरफ से कोई कार्यक्रम नहीं हुआ, न ही ऐसा करने की प्रशासन की तरफ से कोई मंजूरी दी गई थी. कुछ लोगों को नारा लगाते हुए जरूर पकड़ा गया लेकिन उन्हें भी चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया. अयोध्या के कारसेवक पुरम में संतों ने मंदिर के निर्माण का संकल्प जरूर लिया.

अच्छी बात यह रही कि किसी भी संगठन ने इस मौके पर लोगों की भावनाओं को उभारने की कोशिश नहीं की और न किसी तरह का कोई सार्वजनिक बयान दिया.

Polizeikräfte am Charbagh Bahnhof in Lucknow am 22.9.2010
तस्वीर: UNI

पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लंबे समय तक चले मुकदमे का फैसला सुना दिया जिसमें विवादित भूमि को तीन हिस्से में बांटने की बात कही गई. एक हिस्सा रामलला को, दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को देने का फैसला सुनाया. तीनों पक्ष इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गए हैं और विवादित जमीन का पूरा हिस्सा खुद को सौंपने की मांग की है. इस फैसले का आधार आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को बनाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के अमल पर रोक लगा दी और अब खुद इस मामले की सुनवाई कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही अब इस मामले की दशा दिशा तय करेगी क्योंकि मामले के राजनीतिक हल की कोशिशें पहले ही नाकाम हो चुकी हैं.

रिपोर्टः पीटीआई/एन रंजन

संपादनः महेश झा