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बर्मा बदल रहा है, मदद करे पश्चिम

१५ अक्टूबर २०११

म्यांमार ने इस सप्ताह 6300 से अधिक बंदियों को क्षमादान देकर रिहा करने का फैसला किया है. इनमें 200 राजनीतिक बंदी भी शामिल हैं. डॉयचेवेले एशिया विभाग के प्रमुख ग्रैहम लूकस पूछते हैं कि सरकार के फैसले के पीछे मंशा क्या है?

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तस्वीर: DW

म्यांमार के फैसले ने पश्चिमी देशों में उम्मीद पैदा की है कि देश का राजनीतिक नेतृत्व सालों के दमन के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने के प्रति गंभीर है. सरकारी फैसले को यूरोपीय संघ की विदेशनैतिक प्रतिनिधि कैथरीन ऐशटन ने नई सरकार की सुधारों की इच्छा का प्रतीक बताया है. अमेरिकी सीनेटर जॉन कैरी ने संयमित उम्मीद का इजहार किया है.

पश्चिमी देशों को म्यांमार के राष्ट्रपति थेन सेन के भारत दौरे पर पानी की थाह लेने का मौका मिलेगा. भारत ने हमेशा कहा है कि यदि पश्चिम चीन पर म्यांमार की भारी निर्भरता को कम करने के लिए के लिए कुछ नहीं करता है तो वह बड़े नुकसान में रहेगा. भारत के पास मौका है कि वह म्यांमार को कच्चे माल के खनन में भारतीय जानकारी के बदले सेन को चीन से और दूरी बनाने के लिए बढ़ावा दे और अधिक राजनीतिक बंदियों को रिहा करने के लिए कहे.

Myanmar Birma Politische Häftlinge werden freigelassen
तस्वीर: AP

खिलाने वाले हाथ को चोट

इस बात के संकेत हैं कि इस तरह के प्रयासों के बीज उर्वर भूमि पर गिरेंगे. बंदियों को क्षमादान दिखाता है कि म्यांमार के नए राष्ट्रपति थेन सेन जो पहले सैनिक शासन के सदस्य रह चुके हैं, पश्चिमी देशों की मांगों पर रियायतें देने को तैयार हैं. इस साल मार्च में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद सेन ने नोबेल पुरस्कार विजेता विपक्षी नेता आंग सान सू ची पर प्रतिबंधों में ढील दी और उन्हें 20 साल में पहली बार राजनीतिक क्षेत्र मं घुसने की अनुमति दी. अगस्त में सेन ने पहली बार सू ची से मुलाकात की और उनके साथ फोटो खिंचवाई जिसमें उनके ऑफिस में सू ची के पिता और आजादी के हीरो आंग सान की तस्वीर टंगी है. इस तरह का संकेत एक साल पहले सोचा भी नहीं जा सकता था. उस मुलाकात के बाद म्यांमार और अमेरिका के रिश्तों में धीमी गर्मी आ रही है.

जब सितंबर में म्यांमार ने चीन के समर्थन से बन रहे एक विवादास्पद बांध पर काम रोका तो कुछ प्रेक्षकों ने तुरंत कहा कि यह बहुत सालों में पहला अवसर है जब सरकार जनमत की परवाह कर रही है. और सबसे बढ़कर इसने चीनी हाथों को कठोरता से काट खाया है जो उन्हें खिलाता है. एक सप्ताह बाद एक अधिकारी ने कहा कि सरकार कड़े प्रेस कानून में ढील देने पर विचार कर रही है.

Myanmar Birma Politische Häftlinge werden freigelassen
तस्वीर: AP

बर्मी वसंत या रणनीतिक चाल?

इस विकास की रोशनी में दलील दी जा सकती है कि  लोकतंत्र की ओर और राजनीतिक दमन से दूर एक नया रुझान उभर रहा है. इस सप्ताह की माफी को नई नीति का सबूत माना जा सकता है. लेकिन संदेह बने हुए हैं. क्या सत्ताधारी वर्ग ने, सैनिक अधिकारियों का एक गिरोह, जिसने म्यांमार पर एक पीढ़ी से फौलादी हाथों से शासन किया है और मानवाधिकारों तथा आधारभूत लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए कोई आदर नहीं दिखाया है, अचानक मान्यताएं बदल ली हैं? यह बहुत ही असंभव लगता है क्योंकि सेना द्वारा सत्ता में बने रहने के लिए बनाया गया संविधान अभी भी लागू है. और न ही इस बात के संकेत हैं कि उसे निकट भविष्य में बदला जाएगा.

नई नीति की एक बेहतर व्याख्या यह हो सकती है कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का देश को नुकसान हो रहा है. म्यांमार उन्हें फौरन उठवाना चाहता है. प्रतिबंधों ने चीन पर उसकी निर्भरता को भी नाटकीय तरीके से बढ़ा दिया है, जिसके बारे में प्रेक्षकों का कहना है कि वह म्यांमार में अत्यंत अलोकप्रिय हो रहा है. इस वजह से देश में राजनीतिक वसंत के लक्षण यह देखने के लिए सत्ताधारी वर्ग का नियोजित प्रयास हैं कि पश्चिन राजनीतिक उदारीकरण के छोटे प्रयासों पर क्या प्रतिक्रिया दिखाता है. यह तथ्य कि बंदियों को दी गई माफी से देश के अनुमानित 2100 राजनीतिक बंदियों के बड़े हिस्से को बाहर रखा गया है, दिखाता है कि थेन सेन और उनके साथी उन्हें अभी भी बंधक बनाए रखने को तैयार हैं ताकि देख सकें कि पश्चिम कितनी रियायतें देने को तैयार है. यदि चीजें योजनानुसार नहीं होती हैं, तो सरकार विपक्ष को दबाने की अपनी पुरानी आदत पर लौट सकती है.

Thein Sein
थेन सेनतस्वीर: AP

जहां से वापसी संभव नहीं

इस कारण यूरोप, अमेरिका, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया उचित ही सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई को आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने की पूर्वशर्त बना रहे हैं. अब यह भारत पर है कि वह इसके लिए दबाव डाले. आखिरकार, म्यांमार में विपक्ष ने माफी पर अपने असंतोष का इजहार किया है. साथ ही पश्चिम को म्यांमार को आगे जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. प्रोत्साहन इसलिए भी जरूरी है कि इस तरह की प्रक्रियाओं में आम तौर पर हमेशा एक मोड़ आता है, जिसके बाद पीछे लौटना संभव नहीं होता, जैसा कि अरब वसंत ने भी दिखाया है. पश्चिमी देशों को म्यांमार को उस मोड़ तक ले जाना होगा जहां से वापसी संभव न हो.

लेखक: ग्रैहम लूकस/महेश झा

संपादन: वी कुमार

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