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समाजसंयुक्त राज्य अमेरिका

बच्चों के स्कूल चार दिन करने से मां बाप की मुश्किल बढ़ी

२५ सितम्बर २०२३

अमेरिका के कुछ शहरों में बच्चों के स्कूल सिर्फ चार दिन के हो गए हैं. बहुत से लोग इस फैसले से खुश हैं लेकिन मां बाप की चुनौतियां बढ़ गई हैं. ज्यादातर लोग इस फैसले के समर्थन में हैं, मगर क्यों?

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चार दिन के स्कूल में मां बाप की दिक्कतें
हडसन, केलेहन और कीगनतस्वीर: Nick Ingram/AP/picture alliance

सोमवार का दिन है और सारे स्कूल बंद हैं. प्रूएन्ते परिवार के तीनों बच्चे उछल कूद में मस्त हैं. 13 साल की कैलहन चक्रासन कर रही है तो 7 साल का हडसन गुब्बारे से खेलने में व्यस्त हैं और 10 साल के कीगन पियानो बजा रही है. ये बच्चे अमेरिका इंडिपेंडेंस शहर में रहते हैं जो कि मिसूरी राज्य में है. तीनों बच्चे सोमवार की सुबह घर पर इसलिए हैं क्योंकि शहर में हफ्ते के सिर्फ चार दिन ही स्कूल खोले जाएंगे.

हडसन ने चहकते हुए कहा, "हम बहुत खुश हैं, हफ्ते में तीन दिन की छुट्टी मिल रही है.” इंडिपेंडेंस ने नया कानून लागू किया है जिसके तहत हफ्ते के तीन दिन स्कूल बंद रहेंगे.अमेरिकाके हजारों स्कूल ऐसे नियम लागू कर रहे हैं. ऐसे कानून के पीछे तर्क है कि इससे शिक्षकों को ज्यादा वेतन दिया जा सकेगा और स्कूल पैसे भी बचा पायेंगे.

बच्चों की छुट्टी, मां बाप परेशान

ब्रैंडी प्रूएन्ते तीनों बच्चों की मां हैं और पड़ोसी राज्य कंसास में फ्रेंच भाषा पढ़ाती हैं. वहां यह कानून लागू नहीं किया गया है. ब्रैंडी बहुत परेशान हैं. बच्चों की छुट्टी के दिन वह अकसर अब बच्चों को व्यस्त रखने का कोई बहाना ढूंढती रहती हैं. उन्होंने कहा, "मुझे ऐसा लग रहा है जैसे कोविड का समय वापस आ गया है.”

इंडिपेंडेंस में रहने वाले ज्यादातर मां बाप इस कानून के पक्ष में हैं. हालांकि उन्हें डर है कि छुट्टी के दिन बच्चों का गैजेट और स्क्रीन टाइम पर ही सारा समय ना निकल जाये. उनका मानना है कि कोरोना के दौरान छूटी हुई पढ़ाई के बाद यह बच्चों के लिए हानिकारक भी हो सकता है.

चार दिन के स्कूल को ज्यादातर लोगों का समर्थन मिल रहा है
छुट्टी के दिन पियानो सीखती कीगन प्रुएंतेतस्वीर: Nick Ingram/AP/picture alliance

बच्चों की देखभाल में दिक्कत

ब्रैंडी ने कहा, "मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चे हमेशा पढ़ने और सीखने के माहौल में रहें. काम के दिन इस तरह उनकी छुट्टी में हम बच्चों को कहां छोड़ सकते हैं?” अमरीका में ज्यादातर राज्यों में सरकार बच्चों की देखभाल के लिए सेंटर चलती हैं. ताजा आंकड़ो के मुताबिक, कई जिलों में यह सेंटर बंद हो गये क्योंकि लोग उनका इस्तेमाल नहीं कर रहे थे. इस तरह के कानून के बाद अब लोग इन जगहों की मांग कर रहे हैं.

बच्चों के लिए मास्टरजी पर भरोसा कहां गुम हो गया

बच्चों के अभिभावकों को अब स्कूल के हिसाब से अपने काम का रूटीन तय करना पड़ रहा है. जिन लोगों के बच्चे या तो छोटे हैं या फिर किसी शारीरिक या मानसिक विकलांगता का सामना कर रहे हैं वह ज्यादा परेशान हैं.

ऑरेगन स्टेट विश्वविद्यालय के हिसाब से, बच्चों की देखभाल के लिए बने सेंटरों में बढ़ोतरी हुई है मगर ज्यादा नहीं. उन्होंने कहा "1999 में 100 सेंटर थे जो कि बढ़ कर 2019 में 662 हो गये हैं.”

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सरकार का तर्क

मिसूरी राज्य में कोरोना के बाद कई जिलों में यह कानून लागू कर दिया गया है. 2020 के बाद यह संख्या 12 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो चुकी है. ऐसा करने से स्कूलों की बचत में करीब 2.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. पढ़ाई पर असर के बारे में आंकड़े साफ नहीं हैं लेकिन परीक्षाओं के नंबर में कुछ खास बदलाव नहीं देखा गया है.

क्या ट्रैकपैंट्स पहन कर स्कूल आना गलत है

ग्रामीण इलाकों में स्कूलों के इस प्लान ने बेहतर काम किया है क्योंकि वहां माता पिता में से एक घर पर रहते हैं. तो वह बच्चों की देखभाल में मदद कर देते हैं. इंडिपेंडेंस जैसी जगहों में ऐसा संभव नहीं है क्योंकि लोगों के पास ऐसी सहूलियत नहीं है

80 फीसदी लोगों का समर्थन

इंडीपेंडेंस में स्कूलों का समय घटने से कमजोर छात्रों के लिए सुविधा बढ़ी है. अक्टूबर से वहां ऑफ डे प्रोग्राम शुरू हो रहा जिस दिन कमजोर छात्रों को पुराने छात्र कम्युनिटी कॉलेज में जा कर पढ़ सकते हैं.  केवल कुछ बड़े जिलों ने ही चार दिन के सप्ताह की शुरूआत की है.

डेनेवर के उत्तर में मौजूद 27जे स्कूल जब टीचरों की तनख्वाह बढ़ाने के लिए टैक्स बढ़ाने में नाकाम रहा तो उसने यही तरीका अपनाया. आसपास के जिलों में टीचरों को ज्यादा पैसे मिल रहे थे इसलिए उनके लिए उन्हें यहां रोक पाना मुश्किल हो रहा था. सुपरिटेंडेंट विल पीयर्स का कहना है कि जिले के अपने सर्वे दिखा रहे हैं कि 80 फीसदी मां-बाप और 85 फीसदी टीचर नए शेड्यूल के समर्थन में हैं. टीचर कम रिटायर हो रहे हैं नौकरी के लिए आवेदनों की संख्या भी बढ़ी है.