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फ्रांस निराशा और वियतनाम आशा का वर्ल्ड चैंपियन

६ जनवरी २०११

दुनिया में सबसे उदास लोग फ्रांस के होते हैं. और उम्मीदों सहारे जीते हैं भारत के रहने वाले. एक सर्वेक्षण में पता चला है कि भारत के लोग बड़े आशावादी हैं जबकि फ्रांसीसी कहीं भी उदासी खोज सकते हैं.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

बीवीए-गैलप ने 53 देशों में कराए सर्वेक्षण के बाद यह नतीजा निकाला है. इस सर्वेक्षण के मुताबिक उदास होने के मामले में तो फ्रांस के लोग वर्ल्ड चैंपियन हैं. 2011 के बारे में पूछे गए सवालों पर सबसे ज्यादा फ्रांस के लोगों ने निराशा जाहिर की. 61 फीसदी लोगों ने कहा कि 2011 आर्थिक मुश्किलों का साल होगा.

Dong Xuan Markt in Hanoi Vietnam
तस्वीर: dpa

इस मामले में ब्रिटिश भी फ्रांसीसियों से ज्यादा पीछे नहीं हैं. 52 फीसदी लोगों ने कहा कि 2011 उदास करने वाला साल होगा. ब्रिटेन के अखबार द डेली मेल के मुताबिक स्पेन में 48 फीसदी और इटली में 41 फीसदी लोगों ने 2011 के लिए नाउम्मीदी जाहिर की.

2011 में बेरोजगारी का डर भी फ्रांसीसियों को खूब सता रहा है. 67 फीसदी लोगों ने आशंका जाहिर की है कि अगले 12 महीनों में बेरोजगारी बढ़ेगी. लेकिन बेरोजगारी का सबसे ज्यादा डर ब्रिटेन में है जहां 74 फीसदी लोगों ने आशंकाएं जाहिर कीं. कुल मिलाकर यूरोप में ही निराशावाद झलक रहा है.

इसके मुकाबले एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के लोगों में उम्मीदों का सहारा बना हुआ है. यहां के ज्यादातर लोग 2011 को लेकर नाउम्मीद नहीं हैं. ब्राजील, भारत और चीन में 49 फीसदी लोगों ने कहा कि 2011 आर्थिक रूप से खुशहाल होगा. इन देशों में सिर्फ 14 फीसदी लोगों ने मुश्किलों का डर जाहिर किया.

एक देश की बात करें तो आशावाद के वर्ल्ड चैंपियन वियतनाम के लोग हैं. 70 फीसदी लोगों को 2011 से बड़ी बड़ी उम्मीदें हैं. नाइजीरिया में भी 80 फीसदी लोग आर्थिक बेहतरी होने की उम्मीद कर रहे हैं. युद्ध से जर्जर हो चुके देशों जैसे इराक और अफगानिस्तान में भी ज्यादातर लोग जिंदगी बेहतर होने की उम्मीदों के सहारे 2011 का स्वागत कर रहे हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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