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फिर जली दिमाग की बत्ती, लगाया कपड़े में जनरेटर

२२ सितम्बर २०११

अब वह दिन दूर नहीं जब इंसान चलते फिरते बिजली पैदा करेगा. लातविया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी जैकेट बनाई है जिसे पहनकर बिजली पैदा की जा सकती है.

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Wer hat das Bild gemacht/Fotograf?: Gederts Gelzis Wann wurde das Bild gemacht?: 2011 Wo wurde das Bild aufgenommen?: Riga Bildbeschreibung: T´The copper coils are only a few centimeters in diameter. The set of coils are sewed in the side pocket area of the jacket where the hand is swung by (a closer image)
रिगा में इलेक्ट्रिक जैकेट.तस्वीर: Gederts Gelzis

लातविया में वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक ऐसी उन्नत तकनीक बनाई है जिसमें शरीर की हरकत की मदद से बिजली बनाई जा सकती है. इस बिजली के जरिए छोटे मोटे उपकरण चलाए जा सकते हैं. छोटे जनरेटर्स को कपड़ों में एकीकृत किया जाता है और फिर बिजली उत्पादन शुरु हो जाता है. लातविया के पांच वैज्ञानिकों की टीम ने एक ऐसी प्रारूप जैकेट बनाई है जो इसे पहनने वाले की शरीर की हरकत से विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (इंडक्शन) करते हुए बिजली पैदा करती है.

The copper coils are only a few centimeters in diameter. Both flat copper coils and embroidered coils can be used in the clothing. In welchem Zusammenhang soll das Bild/sollen die Bilder verwendet
कॉपर कॉइल्स सिर्फ कुछ सेंटीमीटर की परिधि के. इन्हें पॉकेट में सिला जा सकता है..तस्वीर: Gederts Gelzis

क्या खोज है

आमतौर पर इंडक्शन के लिए तार के एक कॉइल की जरूरत होती है.प्रोजेक्ट पर काम करने वाले और रिगा टेकनिकल यूनिवर्सिटी के भौतिक विज्ञानी यूरिस ब्लूम्स के मुताबिक, "महत्वपूर्ण बात यह कि हमारी प्रणाली सपाट है. तो यह जरूरी नहीं कि आप कोई बैग लें या फिर यह भी जरूरी नहीं कि इस प्रणाली को पॉकेट में लगाया जाए." इस प्रणाली को सामान्य से दिखने वाली पुरुषों की जैकेट  में लगाया जा सकता है. जैकेट के दोनों तरफ सपाट इंडक्शन कॉइल लगाया जाता है. मात्र 1.5 सेंटीमीटर व्यास वाले कॉइल आसानी से नजर नहीं आ सकते हैं. मिनी जनरेटर में छोटे से माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफॉर्मर लगे हैं जो ठीक कॉइल के बगल में हैं. ब्लूम्स बताते हैं, "कॉइल को जैकेट के एक छोर पर रखा जाता है और बांह के आखिर में चुंबक है. जब हम चलते हैं तो उस वक्त हमारे हाथ भी प्राकृतिक गति से आगे बढ़ते हैं. गति की यह ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में तब्दील हो जाती है."

चलते-चलते बिजली करो पैदा

Juris Blums is a physics professor at Riga Technical University. Juris Blums shows the flat coil made of copper - one of the basic components of the technology. In welchem Zusammenhang soll das Bild/sollen die Bilder verwendet
रिगा की तकनीकी यूनिवर्सिटी में भौतिकी के प्रोफेसर युरिस ब्लूम्स.तस्वीर: Gederts Gelzis

औसतन एक शख्स के चलने की गति करीब 5 किलोमीटर प्रति घंटा है. इसका मतलब यह है कि पैदल चलने वाला शख्स 200 से  300 माइक्रोवॉट्स बिजली एक घंटा में पैदा कर सकता है. इस गति के हिसाब से आई फोन को चार्ज करने में कई घंटे लग जाएंगे. वायरलेस सेंसर्स को 6 घंटे चार्ज करने के लिए यह पर्याप्त है. जैकेट के दोनों तरफ एक दूसरे से जुड़े करीब 16 कॉइल्स हैं. ये कॉइल्स जैकेट्स के लेयर में सिल दिए गए हैं. जितने ज्यादा कॉइल्स होंगे उतनी ही तेजी से बिजली बनेगी. लेकिन यहां भी सीमाएं हैं. अगर ज्यादा कॉइल्स हुए तो कपड़े का आकार खराब हो जाएगा. प्रोजेक्ट में शामिल एक और प्रोफेसर ओमसा विलुमसोन कहती हैं, "कॉइल को सजावट का एक तत्व बनाया जा सकता है. उसे क्रोशिया के काम से या फिर कढ़ाई के काम से छिपाया जा सकता है."वैज्ञानिकों के इस विचार से लातविया की सेना में भी इलेक्ट्रिक जैकेट में रूचि जगी है. सेना भी इस तरह की तकनीक अपनाने  के विचार में हैं ताकि सैनिकों के उपकरण को चार्ज करने में इसका इस्तेमाल किया जा सके. वैज्ञानिकों का कहना है कि बाजार में इस तरह की जैकेट को उतारने के पहले उन्हें एक साल और चाहिए इस पर परीक्षण करने के लिए.

रिपोर्ट: गेडेर्ट्स गेल्जिस /  आमिर अंसारी

संपादन: आभा एम

 

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