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प्रभाकरणः योद्धा या आतंकी

१८ मई २००९

प्रभाकरण का जीवन किसी रहस्य से कम नहीं था. तमिल लड़ाकों के लिए आज़ादी का योद्धा समझे जाने वाले प्रभाकरण दुनिया भर में कई जगह आतंकवादी की तरह वांछित थे और उन्हें ऐसा लड़ाका माना जाता था, जिसे हार बर्दाश्त नहीं.

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ध्वस्त हुआ ईलम का सपनातस्वीर: AP

तीन दशक तक एक गंभीर आंदोलन चलाने वाले वेलुपिल्लई प्रभाकरण की निजी ज़िंदगी किसी अबूझ रहस्य से कम नहीं थी. प्रभाकरण अपने तमिल गढ़ के अंदर एक महान योद्धा की तरह देखे जाते रहे जबकि विरोधियों और विपक्षी खेमे के लिए वह एक ऐसे लड़ाके थे, जिसे विरोध बर्दाश्त नहीं था.

श्रीलंका में एक सरकारी अफ़सर के बेटे प्रभाकरण ने स्कूल पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और आत्मघाती आतंकवाद को नए मायने दिए. 54 साल के प्रभाकरण की टीम में दुनिया के सबसे ख़तरनाक ख़ुदकुश हमलावर भी हुआ करते थे और तावीज़ में साइनाइड के कैप्सूल बांधकर चलने वाले लड़ाके भी थे. लगभग 37 साल तक श्रीलंका में प्रभाकरण किसी ख़ौफ़ की तरह छाए रहे और इस दौरान 70 हज़ार आम लोगों के अलावा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी इस संघर्ष के शिकार हुए.

Sri Lanka LTTE Führer Velupillai Prabhakaran Tamilen Tiger
दुनिया के लिए आतंकवादी लेकिन बहुत से तमिलों के लिए योद्धातस्वीर: AP

प्रभाकरण ने 1972 में तमिल न्यू टाइगर्स नाम का संगठन शुरू किया जिसमें युवा स्कूली बच्चे शामिल किए गए. 1975 में संगठन का नाम बदलकर लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) रखा गया. उसी साल वेलिकाडे जेल नरसंहार के बाद लिट्टे एक कुख्यात के संगठन के तौर पर सामने आया.

लंबे संघर्ष के दौरान लिट्टे ने कूटनीति के लिए दरवाज़े भी खोले लेकिन हर बार रुका हुआ संघर्ष एक नई उत्तेजना और तीव्रता के साथ फिर शुरू हो गया. सबसे पहले भारत ने 1985 में थिंफू में लिट्टे के साथ संघर्ष विराम की कोशिश शुरू की और आख़िरी बार 2002 में नॉर्वे ने शांति के लिए बीचबचाव किया. लेकिन 2006 में संघर्ष विराम टूट गया और उसका नतीजा यह अंतिम युद्ध रहा. प्रभाकरण ने एक बार कहा था कि उन्हें जीते जी कोई नहीं पकड़ सकता.

प्रभाकरण ने उत्तरी श्रीलंका में वानी के जंगलों से लिट्टे की कमान संभाली और कई मौक़ों पर श्रीलंकाई सेना के हमलों से या तो बच गए या उन्हें पछाड़ दिया. लेकिन इस बार न लिट्टे जीत सकी और न प्रभाकरण बच पाए. प्रभाकरण अपने तमिल गढ़ में स्वतंत्रता सेनानी समझे जाते रहे जबकि विरोधी खेमे उन्हें खूंखार आतंकवादी बताते रहे. इंटरपोल सहित दुनिया के कई संगठनों को हत्या और संगठित अपराध के मामलों में 1990 से प्रभाकरण की तलाश थी.

थांबी यानी छोटे भाई के नाम से मशहूर प्रभाकरण को कई सिंघली और उदारवादी तमिल नेताओं की हत्या का दोषी माना जाता है. इनमें राष्ट्रपति प्रेमदासा, राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार दामिनी दिसानायके और रंजन विजयरत्ने के अलावा तमिल नेता अप्पापिल्लई अमृतालिंगम, उनकी पत्नी योगेसवरम और श्रीलंका के विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगमर की हत्याएं शामिल हैं.

प्रभाकरण छोटी से छोटी ग़लती को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे और इस वजह से उन्होंने अपने भी कई साथियों को मौत के घाट उतरवा दिया. इनमें उमा महेसवरन, सिरी साबरथिनम पद्मनाभा और कई दूसरे लोग शामिल हैं. 1970 के दशक में अलगाववादी आंदोलन के तौर पर शुरू हुए लिट्टे को बाद में एक ख़ूंखार आतंकवादी संगठन के तौर पर जाना जाने लगा. 1980 के दशक में भारतीय शांति सेना के साथ संघर्ष लिट्टे के लिए विध्वंसकारी साबित हुआ और बताया जाता है कि इसका बदला लेने के लिए ही प्रभाकरण ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साज़िश रची. इस काम के लिए एक युवा महिला आत्मघाती हमलावर धनु को चुना गया और 1991 में चेन्नई के पास श्रीपेरमबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी गई.

लिट्टे का मानना था कि 1987 में भारत ने ज़बरदस्ती श्रीलंकाई तमिलों को शांति समझौता मानने के लिए मजबूर किया और भारतीय शांति सेना ने लिट्टे के सदस्यों को निशाना बनाया. अलगाववादी आंदोलन के दौरान प्रभाकरण का सबसे घातक हथियार उसके आत्मघाती हमलावर थे जिनमें ज़्यादातर युवा महिलाएं शामिल होती थीं. ये लोग श्रीलंका में प्रमुख सरकारी ठिकानों पर हमला करते थे और सेना के अड्डों को उड़ाने का काम करते थे.

जाफ़ना प्रायद्वीप में 26 नवंबर 1954 को वेलवेथीथुरई शहर में पैदा हुए प्रभाकरण चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे और बचपन से ही मार्शल आर्ट्स की क्लास में हिस्सा लेते थे. प्रभाकरण ने लिट्टे के गठन के बाद पहली राजनीतिक हत्या जाफ़ना के मेयर अल्फ़्रेड दुरियप्पा की और उन्हें बेहद क़रीब से गोली मार दी.

प्रभाकरण के पारिवारिक जीवन के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है लेकिन जो बातें छनकर सामने आती हैं उनके मुताबिक़ उन्होंने एक अक्टूबर 1984 को माधीवाधानी चेन्नई के पास शादी की और उनकी बेटी का नाम द्वारका है जबकि दो बेटे चार्ल्स एंथोनी और बालाचंद्रन हैं. चार्ल्स हमेशा से तमिल विद्रोह में प्रभाकरण के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ते रहे और आख़िरी जंग में वह भी मारे गए जबकि परिवार के दूसरे सदस्यों के बारे में पक्की जानकारी किसी के पास नहीं है. हालांकि कहा जाता है कि वे लोग श्रीलंका के बाहर हैं.

सिंघली प्रभुत्व वाले श्रीलंका में तमिलों के अधिकारों के नाम पर संघर्ष कर रहे प्रभाकरण को एक छोटी आबादी से समर्थन ज़ूरूर हासिल था लेकिन भारत सहित कई देशों ने उन्हें आतंकवादी घोषित कर रखा था और उनके संगठन पर पाबंदी लगा रखी थी.

लिट्टे दुनिया का एकमात्र आतंकवादी संगठन है जिसके पास थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बेड़े रहे हैं. लिट्टे के साधारण सैनिकों को टाइगर्स, नौसैनिकों को सी टाइगर्स और वायुसैनिकों को एयर टाइगर्स नाम दिया गया.

लेकिन लिट्टे की सबसे ख़तरनाक टुकड़ी ब्लैक टाइगर्स के नाम से जानी जाती थी जिसमें अति महत्वकांक्षी आत्मघाती हमलावर शामिल थे. ब्लैक टाइगर्स ने पहली बार श्रीलंकाई सेना के एक शिविर को निशाना बनाया जिसमें 40 लोग मारे गए थे.

मानवाधिकार संगठनों ने भी कई बार लिट्टे को आड़े हाथों लिया था और कहा था कि वह बाल सैनिकों की भर्ती करता रहा है. समझा जाता है कि दुनिया भर के तमिल लिट्टे को आर्थिक सहायता दिया करते थे और कुछ राष्ट्र भी गुपचुप तरीक़े से इस संगठन से सहानुभूति रखते थे.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः अशोक कुमार