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पानी की कमी के साथ रहने की आदत डालनी होगी

मार्टिन कुएब्लर
३० मई २०२२

दुनिया सूखे और पानी की कमी का संकट झेल रही है, ऐसे इलाके में भी जहां कभी खूब बारिश होती थी. पृथ्वी जैसे-जैसे गर्म होगी, यह संकट बढ़ता जाएगा. इसीलिए अब कई देशों के लोग इन्हीं हालात में रहने की आदत डालना सीख रहे हैं.

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पानी की कमी और प्रदूषण से जूझने वाला बेंगलुरू तकरीबन आधा पेयजल बर्बाद कर देता है
पानी की कमी और प्रदूषण से जूझने वाला बेंगलुरू तकरीबन आधा पेयजल बर्बाद कर देता हैतस्वीर: Aijaz Rahi/AP Photo/picture alliance

साल 2018 में दक्षिण अफ्रीकी शहर केप टाउन में नल लगभग सूख गए. दुनिया के किसी ऐसे बड़े शहर में इससे पहले यह स्थिति कभी नहीं आई थी कि पूरा शहर ही पानी के संकट का सामना करने लगे. समस्या अभी भी दूर नहीं हुई है. शहर से करीब 750 किमी दूर नेल्सन मंडेला खाड़ी में रहने वाले लोगों को इस समस्या से जूझना पड़ सकता है क्योंकि जलाशयों में सिर्फ इतना ही पानी बचा है जिसे वो जुलाई तक इस्तेमाल कर सकते हैं.

हालांकि केप टाउन ने स्थानीय लोगों और व्यापार पर कड़े प्रतिबंधों के जरिए "डे जीरो” की स्थिति आने से रोक लिया. शहर में पानी का बिल बढ़ा दिया गया और ज्यादा पानी इस्तेमाल करने वालों पर जुर्माना लगा दिया. साथ ही कम पानी में खेती कैसे हो ताकि जमीन में नमी बनी रहे, इस पर काम किया गया.

आखिरकार यह नियम बनाना पड़ा कि हर व्यक्ति को एक दिन में सिर्फ 50 लीटर पानी मिलेगा. इसी तरह कपड़े धोने की मशीनों के लिए भी पानी का कोटा तय कर दिया गया और हर दिन मशीन की क्षमता के हिसाब से करीब 70 लीटर पानी का कोटा निर्धारित कर दिया गया.

केप टाउन में प्राकृतिक स्रोत से पानी भरने के लिए लाइन में लगे लोग
केप टाउन में प्राकृतिक स्रोत से पानी भरने के लिए लाइन में लगे लोगतस्वीर: Halden Krog/AP Photo/picture alliance

केप टाउन में जैवविविधता, प्रकृति और स्वास्थ मामलों के जानकार इनग्रिड कोएत्जी भी उस समय शहर में ही थीं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "मुझे याद है कि इन प्रतिबंधों के साथ रहना कितना मुश्किल था जब आपको पानी की जरूरत में कटौती करनी पड़ रही हो.”

कोएत्जी कहती हैं कि उस समय व्यापक पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया गया कि लोग पानी की बर्बादी रोकें- मसलन, कार और कपड़े धोने में ज्यादा पानी ना बर्बाद करें, नहाने में भी कम पानी खर्च करें और शौचालय को फ्लश करने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी को फिर से इस्तेमाल करने की कोशिश करें.

वो कहती हैं, "तमाम ऐसे लोग जो कि पानी के खर्च को वहन कर सकते थे, उन्होंने बारिश का पानी जमा करने के लिए टैंक बनवा लिए लेकिन सच्चाई यह है कि ज्यादातर लोग इस हैसियत वाले नहीं थे और उन्हें पानी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा.”

जल संकट से निपटने के लिए प्रकृति ही एकमात्र सहारा

कोएत्जी कहती हैं कि जब से सूखा पड़ा है तब से शहर के अधिकारियों ने सरकारी एजेंसियों, निजी कंपनियों और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर भूजल को बढ़ाने और उसे संग्रह करने के तरीकों पर काम किया है.

वो कहती हैं, "इसका हल बिल्कुल प्राकृतिक तरीके से निकाला गया. शहर के जलग्रहण क्षेत्र में फालतू पेड़-पौधों को हटाकर और उन क्षेत्रों को संरक्षित करके पानी की खपत कम की गई जिससे वहां ज्यादा से ज्यादा पानी इकट्ठा हुआ. इसमें लागत भी कम आई और काम भी ज्यादा हुआ.”

सैन डिएगो के लोगों ने ऐसे पौधे लगाये हैं जिन्हें कम पानी चाहिए और जो तितलियों को लुभाते हैं
सैन डिएगो के लोगों ने ऐसे पौधे लगाये हैं जिन्हें कम पानी चाहिए और जो तितलियों को लुभाते हैंतस्वीर: Gregory Bull/AP Photo/picture alliance

कोएत्जी आसीएलईआई की डायरेक्टर हैं जो कि 2500 से ज्यादा स्थानीय और क्षेत्रीय निकायों का संगठन है.

चीड़ और यूकेलिप्टस जैसी प्रजातियां देसी फिनबोस झाड़ियों की तुलना में ज्यादा पानी सोखती हैं और शहर की जल आपूर्ति को बाधित करती हैं. कोएत्जी कहती हैं, "अब तक के प्रयासों से हर साल 55 अरब लीटर से ज्यादा अतिरिक्त पानी मिला है और जहां तक इसके लिए कीमत चुकाने की बात है तो सबसे सस्ते विकल्प की तुलना में भी सिर्फ दसवां हिस्सा खर्च किया गया है.”

केप टाउन में साल 2018 में आए सूखे के बाद किए गए उपायों और उसके बाद हुई बारिश के कारण शहर के बांधों को फिर से भरने और पानी के संकट को दूर करने में काफी हद तक मदद मिली है.

रिसाव बंद करना और जागरूकता बढ़ाना

दुनिया भर में कई शहरों ने जल संरक्षण के उपायों में काफी निवेश किया है. जापान की राजधानी टोकियो में रिसाव की पहचान करके उसे ठीक करने जैसी तकनीक पर काफी निवेश किया गया है जिसका परिणाम यह हुआ कि साल 2002 से 2012 के बीच पानी की बर्बादी आधी से कम होकर महज 3 फीसद रह गई. 

उन जगहों पर जहां जलवायु परिवर्तन के चलते पहले से ही पानी का संकट है, वहां ऐसे प्रयास और भी ज्यादा अहमियत रखते हैं. कैलिफोर्निया की तरह मेक्सिको-अमेरिका सीमा के दक्षिणी हिस्से में स्थित सैन डीएगो काउंटी में करीब तैंतीस लाख लोग पिछले बीस साल से सूखे का सामना कर रहे हैं.

काउंटी में भी जल संरक्षण में सबसे बड़ा योगदान लोगों पर लगाए गए प्रतिबंधों का रहा. साथ ही जन जागरूकता और संग्रहण क्षमता को बढ़ाने में किए गए निवेश का भी काफी असर रहा. इसके अलावा नालियों के किनारे कंक्रीट की मजबूत परत चढ़ाई गई ताकि लीकेज न होने पाए. इन सब प्रयासों से वहां प्रति व्यक्ति पानी की खपत को कम करके पिछले तीन दशक में करीब आधा कर दिया गया है.

इसके अलावा कुछ तकनीकी प्रयोग भी किए गए, मसलन- डीसेलाइनेशन प्लांट्स के जरिए समुद्री पानी से नमक को खत्म करके उसे पीने लायक बनाना और भविष्य में यह भी योजना है कि इस्तेमाल किए गए पानी और गंदे पानी को भी शुद्ध करके उसे पीने योग्य बनाया जाएगा. काउंटी का कहना है कि साल 2045 तक वह पानी की स्थानीय मांग के बराबर आपूर्ति करने में सक्षम हो जाएगा.

दुनिया का पहला वाटर रिसाइक्लिंग प्लांट 1968 में विंडहोक में लगा था जो आज भी काम कर रहा है
दुनिया का पहला वाटर रिसाइक्लिंग प्लांट 1968 में विंडहोक में लगा था जो आज भी काम कर रहा हैतस्वीर: Alexander Farnsworth/picture alliance

अफ्रीका और यूरोप में पानी की रीसाइक्लिंग

जब वैकल्पिक जल स्रोतों को खोजने की बात आती है तो इस मामले में सूखे नामीबिया के अनुभव की चर्चा जरूर होती है. नामीबिया की राजधानी विंडहोक ने साल 1968 में दुनिया का पहला वाटर रीसाइक्लिंग प्लांट बनाया जिसके जरिए सीवेज के पानी को साफ पेयजल में बदला जाता है. इस प्रक्रिया में दस चरण होते हैं जिनके माध्यम से पानी को संक्रमणमुक्त किया जाता है और कई चक्रों में उसे फिल्टर किया जाता है. गोरेंगब वाटर रीक्लेमेशन प्लांट को साल 2002 में अपग्रेड किया गया था और तब से यह लगातार साफ पानी की आपूर्ति कर रहा है.

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मध्य पूर्व, भूमध्यसागर और दक्षिण एशिया जैसे सूखी जलवायु वाले क्षेत्रों में वाटर रीसाइक्लिंग और डीसेलाइनेशन बहुत आम है लेकिन उत्तरी यूरोप जैसे क्षेत्रों में ऐसा नहीं होता है क्योंकि वहां लोगों को पानी की ऐसी किल्लत का अब तक सामना नहीं करना पड़ा है.

बेल्जियम के एंटवर्प और नीदरलैंड के द हेग शहर में कुछ ऐसी परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है जहां गैर परंपरागत तरीके से पेयजल का निर्माण हो सके. एंटवर्प बंदरगाह पर इस तरह का एक प्लांट 2024 में शुरू होने वाला है जिसमें नमकीन पानी और उद्योगों के गंदे पानी को साफ पेय जल में बदला किया जाएगा. इसके जरिए कई सालों से यहां सूखे जैसी स्थिति से निजात पाया जा सकेगा.

गर्मी से बेहाल हुए पक्षी गिर रहे हैं जमीन पर

हेग में, पानी की सप्लाई देने वाली कंपनी ड्यूनिया ने तटीय क्षेत्रों में खारे पानी के उपचार के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की है. रिवर्स ऑस्मोसिस की प्रक्रिया के जरिए ड्यूनिया हर साल करीब छह अरब लीटर पेयजल का निर्माण कर सकेगी. रिवर्स ऑस्मोसिस में पानी में से नमक और अन्य खनिजों को फिल्टर करने के लिए उच्च दबाव और बहुत महीन झिल्लियों का इस्तेमाल किया जाता है.

फरवरी में परियोजना की शुरुआत के वक्त ड्यूनिया के परियोजना प्रमुख गेर्टजन ज्वोल्समैन ने कहा था, "हम जल स्रोतों की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे हैं लेकिन कोशिश यह भी है कि मांग को सीमित किया जाए. मसलन, हम नई इमारतों में जल प्रबंधन का समर्थन करते हैं और अपने ग्राहकों से कहते हैं कि वो पानी का उपयोग सोच-समझकर करें. लेकिन इन सबमें वक्त लगता है.”

बेल्जियम और नीदरलैंड्स के लिए इस बार गर्मियां काफी सूखी हैं और किसानों को दिक्कत हो रही है
बेल्जियम और नीदरलैंड्स के लिए इस बार गर्मियां काफी सूखी हैं और किसानों को दिक्कत हो रही हैतस्वीर: robin utrecht/picture alliance

जल संकट के समाधान के लिए अतीत की ओर देखना

कभी-कभी सबसे सरल समाधान सबसे अच्छा होता है. पिछले साल इस्तांबुल ने बैजेंटाइन और ऑटोमन साम्राज्य के जमाने के एक आईडिया पर काम किया और एक हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में बनने वाली इमारतों के लिए वर्षा जल के संचयन के लिए अंडरग्राउंड जगह बनाना अनिवार्य कर दिया. तुर्की की संघीय सरकार ने इसे देश के अन्य हिस्सों के लिए भी अनिवार्य कर दिया.

सेनेगल में मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिए कुछ किसान वर्गाकार बगीचों का निर्माण कर रहे हैं जिन्हें वो टॉलू केउर कहते हैं. इन बगीचों में ऐसे पेड़ और पौधे लगाए जाते हैं जो गर्म और शुष्क जलवायु से प्रभावित नहीं होते हैं. इन बगीचों में बीच में औषधीय पौधे, उसके बाद सब्जियां और सबसे बाहर की ओर फल, अखरोट और कुछ बड़े पेड़ लगाए जाते हैं जिनकी जड़ें अंदर काफी दूर तक फैल जाती हैं जिनकी वजह से इस क्षेत्र में बारिश होती है.

चिली और मोरक्को जैसे देशों में स्थानीय लोग लंबे लंबे जाल की मदद से कोहरे से जल संग्रह करते हैं. आधुनिक तकनीक की मदद से इस विधि से अब पहले की तुलना में पांच गुना ज्यादा पानी इकट्ठा किया जा रहा है.