पांच दशक बाद कास्त्रो का संन्यास
१९ फ़रवरी २००८�्ता अपने भाई राउल के हाथों में सौंप दी थी।
वे जीवन भर एक योद्दा रहे हैं, पर इस बार बीमारी ने उन्हे हरा दिया। चार दशक से क्यूबा के राष्ट्रपति रहे फ़िदेल कास्त्रो दुनिया के आखिरी कम्युनिस्ट नेता में से एक माने जाते हैं। पर क्या उनके सार्वजनिक और राजनैतिक जीवन से विदा लेना, वाकई एक निर्णायक मोड़ है, या उनके भाई राउल उनकी विरासत को ज़िन्दा रखेंगे? राजनीति और लैटिन अम्रीका विशेषज्ञ ग्युन्टर माइओल्ड कहते हैं कि सबसे पहले हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि फ़िदेल कास्त्रो क्यूबन राजनीति का एक अभिन्न हिस्सा बने रहेंगे। अपने पत्र में उन्होने यह बात स्पष्ट रूप से कही है। दूसरी तरफ़ यह बात भी निश्चित है कि राउल कास्त्रो क्यूबा की आर्थिक नीति में तो सुधार के द्वारा बदलाव लाएंगे, पर आंतरिक लोकतंत्र, और मानव अधिकारों के मामले में वे अपने भाई कि नीतियों का ही पालन करेंगे।
तो विशेषज्ञों का मानना है कि बदलाव तो होगा, पर केवल आर्थिक नीति में। फ़िदेल कास्त्रो ने अपने कार्यभार के समय में अमरीका में दस राष्ट्रपतियों को आते जाते देखा है, और हर किसी ने कोशिश की, उनके शासन पर दबाव डालने की, खासकर आर्थिक प्रतिबंध द्वारा। कास्त्रो के सत्ता छोड़ने के निर्णय पर अमरीकी राष्ट्रपति जोर्ज बुश कहते हैं कि प्रश्न यह होना चाहिए कि इसका प्रभाव क्यूबा के लोगों पर क्या पड़ेगा। वही लोग हैं जिन्होने कास्त्रो के शासन के अंतर्गत सबसे ज़्यादा यातनाएं सही हैं। तो मेरे मानने में, इस बदलाव के समय को क्यूबा में लोकतंत्र के विस्तार के समय के रूप में देखा जाना चाहिए।
हालांकि पश्चिमी देशों के साथ कास्त्रो के क्यूबा के संबंध न के बराबर रहे हैं, भारत के द्रिष्टिकोण से देखों तो, क्यूबा और भारत के संबंध हमेशा से ही बहुत करीब के रहे हैं। कास्त्रो के चार दशक के शासन का अन्त, दुनिय् भर में एक अरसे का अन्त माना जा रहा है।