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कोविड अस्पतालों की बदहाली से बढ़ती परेशानी और लाचार सरकार

प्रभाकर मणि तिवारी
२८ जुलाई २०२०

पश्चिम बंगाल में कोरोना से अब तक 1,372 लोगों की मौत हुई है. इनमें से सात सौ अकेले कोलकाता के ही हैं. कोलकाता के तमाम अस्पतालों में महज 948 आईसीयू बेड हैं, जबकि वेंटिलेटरों की संख्या महज 395 है.

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Indien Kalkutta Coronavirus
तस्वीर: DW/P. Tiwari

पश्चिम बंगाल में कोरोना का तेजी से बढ़ता संक्रमण अब सुर्खियां नहीं बटोरता. अब रोजाना औसतन ढाई हजार मरीज सामने आ रहे हैं और 43 लोगों की मौत हो रही है. जांच बढ़ने के साथ ही पॉजीटिव मरीजों की बढ़ती दर ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है. इसके साथ कोरोना मुक्त होने वाले मरीजों का दोबारा संक्रमित होना भी गंभीर चिंता का विषय बन गया है. जांच में तेजी से मरीजों की तादाद बढ़ना स्वभाविक है. लेकिन कोरोना अस्पतालों की बदहाली की खबरें और सामने आने वाली तस्वीरों को देख कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सरकारी अस्पतालों और जांच केंद्रों की तो हालत यह है कि वहां स्वस्थ लोग भी संक्रमित होकर मौत के मुंह में समा सकते हैं.

दूसरी ओर, निजी अस्पतालों में भी इलाज के नाम पर महज खानापूर्ति हो रही है और उसके एवज में मरीजों से लाखों रुपये का मोटा बिल वसूला जा रहा है. इस महामारी ने राज्य की पहले से ही जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है. लेकिन सरकार इसे दुरुस्त करने के नाम पर महज कुछ बिस्तर बढ़ाने की बात कह कर चुप्पी साध लेती है. इस बदहाली की वजह से दूसरी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों की मुश्किलें भी काफी बढ़ गई हैं.

बदहाल अस्पताल, बेहाल मरीज

राज्य के बाकी हिस्सों की बात छोड़ भी दें तो राजधानी कोलकाता की हालत सबसे खराब है. यहां बेहतरीन मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के अलावा दर्जनों स्वनाम धन्य कॉरपोरेट अस्पताल हैं. बावजूद इसके शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता है, जब इन अस्पतालों में जगह नहीं मिलने की वजह से किसी न किसी मरीज की असमय मौत की खबरें सामने नहीं आती हों. सरकार की ओर से बार-बार जारी होने वाले दिशानिर्देशों के बावजूद हालत सुधरने की बजाय लगातार बिगड़ रही है.

बीते सप्ताह 18 साल के एक युवक को उसके परिजन लेकर सरकारी से निजी अस्पताल तक दौड़ लगाते रहे. लेकिन किसी न किसी बहाने सबने उसे दाखिला देने से मना कर दिया. इसी दौरान उसकी मौत हो गई. अस्पतालों की इस बदहाली का खामियाजा अब दिल, गुर्दे और किडनी की गंभीर बीमारियों के मरीजों को भी भुगतना पड़ रहा है. डायलिसिस के कई मरीजों में संक्रमण और उनकी मौत के बाद अब खासकर निजी अस्पताल ऐसे मरीजों से बच रहे हैं. ऐसे तमाम मरीजों को पहले तो कोरोना टेस्ट कराने को कहा जाता है और दुर्भाग्य से कहीं रिपोर्ट पॉजीटिव रही, तो उनको सरकारी अस्पतालों में जाने को कह दिया जाता है. रिपोर्ट नेगेटिव रहने की स्थिति में भी बिस्तर नहीं होने का बहाना बना दिया जाता है. दूसरी ओर, सरकारी अस्पताल शुरू से ही बेड और वेटिंलेटरों की कमी का रोना रोते हुए ऐसे मरीजों को दरवाजे से ही लौटा देते हैं.

पूरे राज्य में कोरोना से अब तक 1,372 लोगों की मौत हुई है. इनमें से सात सौ अकेले कोलकाता के ही हैं. इसके अलावा अब संक्रमण के जितने नए मामले आ रहे हैं, उनमें से आधे से ज्यादा इसी महानगर के होते हैं. अब जब सरकार की नाक के नीचे राजधानी में यह हालत है, तो राज्य के बाकी हिस्सों की स्थिति का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. तमाम जिलों से अकसर ऐसी खबरें आती हैं, जब कोरोना से मरने वालों का शव कहीं 12 घंटे तक अस्पताल और घर में पड़ा रहता है, तो कहीं किसी स्वास्थ्य कर्मचारी या पुलिसवालों के नहीं आने की वजह से लोगों को घर के सामने ही मृतकों का अंतिम संस्कार करना पड़ता है.

इस बीच, कई ऐसे मरीज सामने आए हैं, जो स्वस्थ होने के महीने भर के भीतर ही दोबारा संक्रमित हो गए हैं. इससे विशेषज्ञों को समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा कैसे हुआ. जलपाईगुड़ी जिले में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात 45 साल के कर्मचारी को बीते महीने संक्रमण हुआ था इलाज और होम क्वॉरंटीन के बाद वह ठीक हो गया था. लेकिन अब वह एक बार फिर संक्रमित हो गया है. इलाके में स्वास्थ्य विभाग के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी सुशांत राय ने बताया कि अब उत्तर बंगाल में दोबारा संक्रमित होने के तीन और मामले सामने आए हैं. राय बताते हैं, "वह व्यक्ति पांच जून को संक्रमित होने की वजह से अस्पताल में भर्ती हुआ था. 15 जून को रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद उसे छोड़ दिया गया. लेकिन अब 24 जुलाई को लक्षण सामने आने पर उसकी दोबारा जांच हुई, तो रिपोर्ट पॉजीटिव आई है. यह आश्चर्यजनक है. इसकी वजहों की जांच की जा रही है."

अस्पतालों की भारी कमी

राज्य में मरीजों की बढ़ती तादाद के मुकाबले अस्पतालों में बेड की कमी हो गई है. संक्रमितों और स्वस्थ होने वालों के आंकड़ों में अंतर बढ़ने की वजह से ज्यादातर अस्पतालों में कोई बिस्तर खाली नहीं है. आंकड़ों के लिहाज से राज्य में कोरोना के मरीजों का इलाज करने के लिए कुल 81 अस्पताल हैं. इनमें से 27 सरकारी हैं और इसके दोगुने यानी 54 निजी. इनमें कुल 11,239 बेड हैं. लेकिन पॉजीटिव मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ने की वजह से इनको कहीं बिस्तर नहीं मिल रहा है. नतीजतन हल्के या बिना लक्षण वाले मरीजों को या तो घर में होम क्वॉरंटीन की सलाह दी जा रही है या फिर उन्हें सरकारी क्वॉरंटीन सेंटर में भेज दिया जाता है. सरकार ने ऐसे मरीजों के लिए कुछ सेफ हाउस भी बनाए हैं, जिनके घर में होम क्वॉरंटीन संभव नहीं है. कोलकाता के तमाम कोविड अस्पतालों को जोड़ लें, तो आईसीयू के महज 948 बेड हैं, जबकि वेंटिलेटरों की संख्या महज 395 है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कम तादाद में आईसीयू और वेंटिलेटरों के साथ इस महामारी का मुकाबला संभव नहीं है.

एक विशेषज्ञ डॉक्टर सुकांत चक्रवर्ती कहते हैं, "सरकार चाहे कुछ भी दावा करे, हकीकत यह है कि अब निजी लैब में जांच पहले के मुकाबले घट गई है. इसकी वजह तो सरकार ही बता सकती है." कार्डियोथोरासिक सर्जन कुणाल सरकार कहते हैं, "जांच के मामले में बंगाल अब भी ज्यादातर राज्यों से बहुत पीछे है. किसी भी राज्य को जांच की संख्या बढ़ा कर पॉजीटिविटी दर पांच से सात फीसदी के बीच रखना चाहिए. लेकिन बंगाल में यह दर 15 फीसदी तक पहुंच गई है. संक्रमण पर काबू पाने के लिए इस दर पर अंकुश लगाना जरूरी है."

निजी अस्पतालों के संगठन एसोसिएशन ऑफ हॉस्पीटल्स ऑफ ईस्टर्न इंडिया के अध्यक्ष रूपक बरूआ कहते हैं, "कई लोग आतंकित होकर कोरोना की जांच कराने के लिए आ रहे हैं. इससे जांच केंद्रों पर दबाव बढ़ रहा है. डॉक्टरों की सलाह के बिना जांच कराने की जरूरत नहीं है. ऐसे लोगों की वजह से असली मरीजों को परेशानी हो रही है."

मामला बेकाबू होता देख कर सरकार ने अब कुछ निजी व सरकारी अस्पतालों को बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की सलाह दी है. लेकिन मरीजों के मुकाबले यह तादाद ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने शुरुआत से ही कोरोना से निपटने की कोई ठोस योजना नहीं बनाई. कभी अचानक अनलॉक, तो कभी सप्ताह में दो दिन सख्त लॉकडाउन जैसे फैसलों से साफ है कि वह तय नहीं कर पा रही है कि संक्रमण रोकने के लिए क्या करना चाहिए. उसने बार-बार कई कमिटियों का गठन किया और कई बार प्रोटोकॉल में बदलाव किया.

इसके अलावा मरीजों के इलाज और मृतकों के अंतिम संस्कार की कोई ठोस प्रक्रिया नहीं बनाई गई. इसी वजह से राज्य में मृतकों के परिजनों की नाराजगी अकसर सामने आती रहती है. डॉक्टर चक्रवर्ती कहते हैं, "सरकार की पिछली गलतियों से सबक लेकर अब भी कमियों को दुरुस्त करने की पहल करनी चाहिए. लेकिन फिलहाल सरकार के रवैए से इसका कोई संकेत नहीं मिल रहा है." उनका कहना है कि सरकार रोजाना मरीजों और मृतकों के आंकड़े बता कर ही अपनी जिम्मेदारी खत्म मान लेती है. ऐसे में आम लोग लंबे समय तक स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का खामियाजा भुगतने के लिए अभिशप्त रहेंगे.

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