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निराशा का कदम है आत्मदाह: सांग्ये

Onkar Singh Janoti२४ नवम्बर २०११

अगस्त में तिब्बतियों ने पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से अपने प्रधानमंत्री को चुना. निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों ने. अपने दूसरे विदेशी दौरे पर लोबसांग सांग्ये ने बर्लिन में तिब्बत की स्वायत्तता के लिए समर्थन मांगा.

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लोबसांग सांग्येतस्वीर: DW

लोबसांग सांग्ये डॉयचे वेले के साथ साक्षात्कार के लिए सूट टाई में आते हैं न कि बौद्धभिक्षु वाले लाल लबादे में. उनका जन्म भारत में निर्वासन में हुआ है और उन्होंने हार्वर्ड में पढ़ाई की है, तिब्बत की भूमि को उन्होंने अभी तक छुआ नहीं है. फिर भी वे सभी तिब्बतियों के नाम पर बोलने की बात करते हैं, चाहे वे निर्वासन में रह रहे हों या चीन में.

तिब्बत की निर्वासन सरकार के नए प्रधानमंत्री 100 दिनों से पद पर हैं और वही कर रहे हैं जो दलाई लामा भी करते रहे हैं. देश रहित सरकार के प्रधान सारी दुनिया में अपने दौरों पर स्वायत्तता के लिए तिब्बतियों के अहिंसक संघर्ष के लिए समर्थन मांग रहे हैं. पिछले दिनों में तिब्बती भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आत्मदाहों के कारण यह संघर्ष एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है.

निराशा की कार्रवाई

डॉयचे वेले के साथ साक्षात्कार में सांग्ये कहते हैं कि आत्मदाह निराश लोगों द्वारा निराशा में उठाया गया कदम है, चीन सरकार की दमनकारी नीतियों की प्रतिक्रिया में. सांग्ये कहते हैं, "जीवन अमोल है, हम किसी को विरोध के इस रूप के लिए बढ़ावा नहीं देते." साथ ही कहते हैं कि दलाई लामा ने भी ऐसे निराशाजनक कदमों को गलत बताया है.

"आत्मदाह नाउम्मीदी का संकेत है, क्योंकि बहुत तिब्बती मानने लगे हैं कि दुनिया को उनके भविष्य में कोई दिलचस्पी नहीं है." सांग्ये कहते हैं कि इसीलिए तिब्बत के समर्थन में बीजिंग के प्रति विदेशी सरकारों का हर हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है. तब लोगों में उम्मीद जगेगी और संभवतः वे आत्मदाह से बाज आएंगे.

NO FLASH Indien neuer Ministerpräsident der tibetischen Exilregierung Lobsang Sangay
तस्वीर: dapd

दलाई लामा को वीजा नहीं

लेकिन समय तिब्बत के खिलाफ लगता है. चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों के लिए कुछ करने की संभावना घट रही है. पिछले अक्टूबर में दक्षिण अफ्रीका ने दलाई लामा को वीजा देने से इनकार कर दिया था. वे नोबेल पुरस्कार विजेता देसमंड टुटु के जन्म दिन समारोह में भाग लेने जाना चाहते थे. लोबसांग सांग्ये इस पर बहुत निराश हैं, "दक्षिण अफ्रीका के एक बड़े नेता के दोस्त को वीजा न देना, जिसने लोकतंत्र और नेल्सन मंडेला की रिहाई के लिए कड़ा संघर्ष किया था, मुझे दुखी कर रहा है."

तिब्बत की निर्वासन सरकार के प्रधानमंत्री सांग्ये कहते हैं कि वे चीन के साथ कारोबार के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन वे चाहते हैं कि ऐसा करते हुए सिद्धांतों की बलि नहीं दी जानी चाहिए.

अहिंसा में निवेश

तिब्बत ने पिछले 50 सालों में बहुत कुछ अहिंसा, लोकतंत्र और संवाद में निवेश किया है. यदि इस समय तिब्बत की जनता को अकेला छोड़ दिया जाता है तो दूसरे आंदोलनों को इसका यह गलत संदेश जाएगा कि अहिंसा से लाभ नहीं है. यह चीन के हित में भी है कि वह तिब्बतियों से मध्यमार्ग वाले उनकी राह पर मिले जिसका लक्ष्य स्वतंत्रता नहीं बल्कि चीन की सीमा में रहते हुए स्वायत्तता है. सांग्ये का कहना है कि तिब्बत सवाल के समाधान पर चीन का नैतिक रुतबा निर्भर करेगा. बीजिंग में नैतिकता नहीं होगी तो संभवतः दुनिया चीनी सत्ता से डरेगी, लेकिन उसका सम्मान नहीं करेगी. तब चीन महाशक्ति बनने का सपना पूरा नहीं कर पाएगा.

तिब्बत के निर्वासन प्रधानमंत्री का कहना है कि तिब्बतियों का "मध्य मार्ग" चीन के संविधान के अनुकूल है. एक राज्य और दो व्यवस्था का मॉडल हॉन्गकॉन्ग और मकाओ में भी चल रहा है. सांग्ये कहते हैं कि चीन ताइवान को भी अधिक स्वायत्तता देने को तैयार है. लेकिन साथ ही वह यह भी जोड़ते हैं कि वहां चीनी रहते हैं. तिब्बतियों पर बीजिंग भरोसा नहीं करता.

रिपोर्ट: मथियास फॉन हाइन/दाई इंग/मझा

संपादन: ओ सिंह

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