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निकट है एक संदिग्ध अपराधी का अंत!

राम यादव २४ जुलाई २००८

वह कवि है. डॉक्टर है. मनोचिकित्सक है. सर्बों की नज़र में बहुत बड़ा देशभक्त है. औरों के लिए यूरोप का सबसे बड़ा युद्ध-अपराधी. नाम है, रादोवान काराचिच. 13 वर्षों तक सबको चकमा देता रहा. छिपता-भागता रहा. अब गिरफ़्तार है.

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दामन पर नरसंहार के आरोप.तस्वीर: AP

कंधे छूते लंबे सफ़ेद बाल. लंबी सफ़ेद दाढ़ी. आँखों पर चश्मा. काले कपड़े. काराचिच को बेलग्रेड के उपनगर "नोवी बेओग्राद " मे सोमवार, 21 जुलाई की शाम जब धरदबोचा गया, तब उसका यही हुलिया था. उसके पास से जो जाली पहचानपत्र मिला, उस पर उसका नाम "द्रागान दाबिच" बताया गया था. 13 साल पहले का लंबे-चौड़े आकर्षक शरीर वाला काराचिच, इस बीच, तरस खाने लायक 63 साल का एक दुबला-पतला बूढ़ा व्यक्ति भर गया था. एक निजि चिकित्सालय में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के डॉक्टर के तौर पर काम कर रहा था. उस की गिरफ्तारी का समाचार मिलते ही बोस्निया की राजधानी सारायेवो में खुशी की लहर फैल गयी. कारों के हॉर्न बजने लगे. लोग एक-दूसरे को बधाई देने लगे.

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13 साल तक छुपाए रखी पहचानतस्वीर: AP

कौन है काराचिच

कौन है यह रादोवान काराचिच कि यूरोप में उसके नाम का इतना शोर है? उसने ऐसा भला क्या कर दिया था कि सभी, हाथ धो कर, उसके पीछे पड़े हैं?

रादोवान काराचिच की राष्ट्रीयता सर्ब है, हालाँकि जन्म 19 जून 1945 को मोन्टेनेग्रो में हुआ था.15 साल की आयु से ही वह बहुराष्ट्रीय सारायेवो में रहने लगा था. डॉक्टरी की और मनोचिकित्सा की पढ़ाई की. कविताएं भी लिखता था. राजनीति का भी चस्का था.

आरोप है कि 1995 में यूगोस्लावियाई गृह युद्ध के दौरान खुद को बोस्नियाई सर्बों का राष्ट्रपति घोषित करने वाले काराजिच ने अपने सैन्य जनरल रात्को म्लादिच की मदद से 8 हजार मुसलमान पुरुषों की हत्या कराई. इसके बाद से दोनों भूमिगत हो गए. उन पर संयुक्त राष्ट्र के 284 सैनिकों को मानव कवच बनाने के भी आरोप हैं. काराचिच की गिरफ्तारी को एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है. ऐसे में इतिहास के उन पन्नों को पलटना दिलचस्प होगा और उन हालात को जानना होगा जिनके चलते इतने सारे लोगों की हत्या की साजिश रची गई.

युगोस्लाविया का बनना-बिगड़ना

1918 में प्रथम विश्व युद्ध खत्म होते ही यूरोप का एक नया नक्शा बना. उसमें "सर्ब, क्रोऐट और स्लेवेनियाई राजतंत्र " नाम से एक नया देश भी है. इसी नये देश को अक्टूबर 1929 में, युगोस्लाव राजतंत्र नाम दिया गया. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, यही देश युगोस्लाविया के नाम से जाना जाने लगा. यह वही युगोस्लाविया था, जिसके राष्ट्रपति योसिप ब्रोज़ टीटो के साथ मिल कर भारत, मिस्र और इंडोनेशिया ने कोई पाँच दशक पूर्व, बेल्ग्रेड में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नींव रखी थी.

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टुकड़े टुकड़े हुआ यूगोस्लावियातस्वीर: AP

युगोस्लाविया के छः स्वायत्तशासी संघटक गणराज्य हुआ करते थे. उनमें सर्बिया सबसे दबदबेदार था. वैसे, सारा युगोस्लाविया शुरू से ही एक बनावटी देश था. भानमती के कुनबे की तरह बिल्कुल बेमेल ही नहीं, एक-दूसरे की शत्रु रह चुकी राष्ट्रीयताओं वाले लोगों से मिला कर बना था. इसीलिए मई 1980 में राष्ट्रपति टीटो की मृत्यु होते ही वहाँ अलगाववाद भी सिर उठाने लगा.

एक दशक बाद पूर्वी यूरोप में साम्यवाद के पतन के साथ ही युगोस्लाविया बिखरने लगा. जर्मनी सहित कई पश्चिमी देशों ने फूट की आग को हवा भी दी. सबसे पहले स्लेवेनिया अलग हुआ. फिर क्रोएशिया. फिर बोस्निया. आज युगोस्लाविया नाम का देश रहा ही नहीं.

बहुजातीय बोस्निया

राजधानी सारायेवो ही नहीं, पूरा बोस्निया बहुजातीय है. केवल 51 हज़ार वर्ग किलोमीटर बड़े इस देश में केवल 40 लाख लोग रहते हैं. मार्च 1992 में जब बोस्निया ने युगोस्लाविया से अलग अपनी स्वतंत्रता की एकतरफ़ा घोषणा की, तो उस समय वहाँ की 43 प्रतिशत जनता बोस्नियाक यानी मुसलमान थी, 31 प्रतिशत सर्ब और 17 प्रतिशत क्रोऐट थी. जिसका जहाँ बहुमत था, उसने वहाँ अपना झंडा गाड़ना चाहा. काराचिच ने 1990 में अपनी एक अलग सर्बियन डेमोक्रैटिक पार्टी बना ली थी. उसी के बल पर बोस्नियाई सर्बों वाले भूभाग को 1991 के अंत में सर्बियाई गणराज्य घोषित कर दिया. इस अवैध गणराज्य का 1996 तक राष्ट्रपति भी रहा. बोस्निया के एक संघटक प्रदेश के रूप में वह आज भी अस्तित्व में है.

युद्ध का बिगुल

काराचिच ने बोस्निया के मुसलमानों से अक्टूबर 1991 में ही कह दिया था कि यदि उन्होंने बोस्निया-हेर्त्सेगोवीना को एक स्वतंत्र देश घोषित किया, तो युद्ध छिड़ जायेगा. बकौल काराचिच "तुम लोगों को जानना चाहिये कि तुम लोग बोस्निया-हेर्त्सेगोवीना को नरक में और मुसलिम जनता को रसातल में धकेल रहे हो. अगर लड़ाई की नौबत आयी, तो मुसलिम जनता अपना बचाव नहीं कर पायेगी." बोस्निया के तत्कालीन मुसलिम नेता अलिया इज़तबेगोविच ने इस धमकी की परवाह नहीं की. काराचिच ने भी अपनी धमकी पूरी कर दिखाने में कोई कोतहाई नहीं बरती. उसके आदेश पर बोस्नियाई सर्बों ने राजधानी सारायेवो पर साढ़े तीन वर्षों तक घेरा डाले रखा. इस घेराव का दस हज़ार लोग शिकार बने. स्रेब्रेनित्सा नाम के शहर में, और आस-पास, आठ हज़ार मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया. 1992 से 1995 तक चले बोस्निया युद्ध में ढाई लोगों को अपने प्राण गंवाने पड़े. 18 लाख को घर-बार छोड़ कर भागना पड़ा. कितने बच्चे अनाथ हुए, महिलाएँ विधवा बनीं, कितने आँसू बहे, कोई नहीं जानता. इसीलिए काराजिच की गिरफ्तारी का समाचार पाते ही बोस्निया की राष्ट्रपति-परिषद में मुसलमानों के राष्ट्रपति हारिस सिलायजिच ने कहा कि मिलोसेविच मर गया, कारचिच पकड़ा गया, लेकिन उनकी कुत्सित योजना बोस्निया-हेर्त्सेगोवीना में अब भी जीवित है...न्याय को पूरा करने के लिए हमें बोस्निया में हुए जनसंहार के परिणामों को मिटाना होगा".

न्याय का तकाज़ा

न्याय का तकाज़ा यह भी है कि काराचिच पर नीदरलैंड में हेग स्थित युगोस्लाविया में युद्ध-अपरोधों के लिए बने संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण में मुकदमा चलाये जाये. इस समय इसी की तैयारियाँ चल रही हैं. सर्बिया के अधिकारी इस मामले में यूरोपीय संघ के साथ पूरा सहयोग कर रहे हैं, जैसा कि यूरोपीय संघ के विदेशी मामलों के प्रभारी ख़ावियेर सोलाना ने भी कहा कि सबसे पहले तो यह एक बहुत अच्छी ख़बर है. हम सर्बियाई अधिकारियों के साथ सहयोग कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण से भी बातें कर रहे हैं. यह बहुत ज़रूरी है कि रादोवान काराचिच जैसे लोगों को अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के कटघरे में खड़ा किया जाये, उन्हें उचित न्याय मिले. मैं कहूँगा कि सर्बियाई अधिकारियों ने बहुत अच्छा काम किया है."

सर्बिया के सामने नयी संभावनाएँ

काराचिच की गिरफ़्तारी का यूरोप में सर्वत्र स्वागत किया गया है. जर्मनी में और भी अधिक, क्योंकि बोस्निया युद्ध के दिनों में इस देश ने लाखों लोगों को शरण दी थी. जर्मनी के विदेशमंत्री फ्रांक-वाल्टर श्टाइनमायर ने कहा कि "मैं कहूँगा कि यह सर्बिया और यूरोपीय संघ के बीच संबंधों के इतिहास में मील के पत्थर के समान है. मेरी नज़र में इससे पता चलता है कि बोरिस तादिच और सर्बिया के नये नेता वहाँ स्थिरता लाने और मेलमिलाप के प्रति गंभीर हैं. यह गिरफ्तारी उन लोगों के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति भी है, जिन्हें मिलोशेविच सरकार के समय दुख सहने पड़े थे."

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सर्बिया के लिए आसान होगी यूरोपीय संघ की सदस्यतातस्वीर: AP

यह भी कैसी विडंबना है कि काराचिच को हेग स्थित जिस न्यायाधिकरण के सामने खड़ा किया जायेगा, उसका कार्यकाल इस वर्ष का अंत होते ही समाप्त हो जायेगा. काराचिच यदि पाँच महीने और भागने-छिपने में सफल हो जाता, तो शायद उस पर मुकदमा चल ही वहीं पाता. देखना यह भी होगा कि संयुक्त राष्ट्र क्या न्यायाधिकरण का कर्यकाल बढ़ायेगा? फ़िलहाल यह संभव नहीं लगता कि कार्यकाल न बढ़े, यद्यपि तब नये बजट की भी व्यवस्था करनी पड़ेगी.

जो भी हो, इतना तय है कि काराचिच की गिरफ्तारी सर्बिया और यूरोपीय संघ को और निकट लायेगी. सर्बिया को यूरोपीय संघ की सदस्यता मिलने की संभावना प्रबल हो जायेगी. इस समय उसके साथ किसी अछूत जैसा बर्ताव होता है. उसे रूस का दुमछल्ला माना जाता है. कहते हैं कि सर्बिया की गुप्तचर सेवा ही उसे अब तक छिपाती-बचाती रही है. सर्बिया की नयी सरकार यूरोपीय संघ की सदस्यता को वरीयता देती है. इसीलिए उसने समय रहते काराचिच की बलि देकर ब्रसेल्स का मनभावन बनना ही श्रेयस्कर समझा. यूरोपीय संघ में इस समय यह प्रश्न कोई नहीं सुनना चाहता कि बाल्कान के जो जनसमुदाय युगोस्लावियाई संघ में मिलजुल कर नहीं रह सके, वे यूरोपीय संघ में भाईचारे के साथ क्यों कर रहेंगे? उनका चिरकालिक आपसी झगड़ा कहीं यूरोपीय संघ को भी कुश्ती का अखाड़ा तो नहीं बना देगा?