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समाज

नारी सशक्तिकरण के बावजूद बिहार में कम हो रही हैं बेटियां

मनीष कुमार, पटना
२५ दिसम्बर २०२०

बिहार में लड़कियों को साइकिल देने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल ने सुर्खियां बटोरी थीं. आधी आबादी सशक्त तो हो रही है तो लिंगानुपात में भारी गिरावट आई है. प्रगतिवाद की आड़ में रूढ़िवादी अवधारणाएं आज भी मजबूत हैं.

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तस्वीर: Catherine Davison/DW

नारी सशक्तिकरण के विभिन्न उपायों, खासकर बेटियों की शिक्षा ने बिहार में विभिन्न क्षेत्रों में नई इबारत लिखी है, किंतु बीते पांच साल में बेटियों की संख्या में आई गिरावट चिंताजनक है. पाचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट से जाहिर है कि राज्य में प्रति हजार नवजात लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या में और 26 फीसदी की गिरावट हुई है. पांच साल पहले यानी 2015-16 के चौथे सर्वेक्षण में प्रति एक हजार लड़के पर लड़कियों की संख्या जहां 934 थी, 2019-20 में वह घटकर 908 हो गई. वैसे यह सुकून की बात है कि प्रदेश में नवजात शिशुओं की मृत्युदर में दो प्रतिशत की कमी आई है. चौथे सर्वेक्षण में यह आंकड़ा 36.7 फीसद था जो पांचवें सर्वेक्षण में घटकर 34.5 प्रतिशत रह गया है. ऐसा शायद इसलिए संभव हुआ है कि महिलाओं में अस्पतालों में प्रसव, वैक्सीनेशन व मां के दूध के प्रति जागरुकता बढ़ी है. संस्थागत प्रसव में 19.5 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.

ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से 11 प्रतिशत वहीं शहरी क्षेत्रों में 14 फीसद अधिक महिलाएं प्रसव कराने अस्पताल पहुंचने लगी हैं. आंकड़े बताते हैं कि अस्पतालों में डिलीवरी 76.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है जबकि 12 से 23 महीने के बच्चों के वैक्सीनेशन के मामले में पांच साल पहले के 61.7 प्रतिशत की तुलना में आंकड़ा 71 प्रतिशत पर पहुंच गया है. अगर परिवार नियोजन की बात करें तो राज्य में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय हैं. विगत पांच वर्षों में महिला बंध्याकरण करीब 21 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया है. गर्भ निरोध के अन्य तरीके अपनाने के मामले में भी पुरुष महिलाओं से पीछे हैं. बिहार में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में भी कमी आई है. चौथे सर्वेक्षण की तुलना में बिहार में यह आंकड़ा 3.4 से घटकर तीन फीसद हो गया है.

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चुनाव के दौरान वोट देती महिलाएंतस्वीर: IANS

बाधक है सामाजिक सोच

लिंगानुपात में आई कमी यह बताने को काफी है कि रूढ़िगत सामाजिक अवधारणाएं अब भी बरकरार है. समाजविज्ञानी एके पांडेय बताते हैं, "इस गिरावट का बड़ा कारण भ्रूण हत्या है. महिला के गर्भधारण करते ही पूरे परिवार की इच्छा यह जानने की होती है कि गर्भस्थ शिशु आखिर नर है या मादा. जैसे ही उन्हें लड़की के बारे में पता चलता है, वे गर्भपात की दिशा में बढ़ जाते हैं." चिकित्सक श्रीनिवास सिंह कहते हैं, "यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी राज्यभर में भ्रूण हत्या का काम निर्बाध जारी है. परिस्थिति के अनुसार डायग्नोस्टिक सेंटर वाले इसके लिए मनमानी कीमत वसूलते हैं. कहने के लिए तो लिंग परीक्षण प्रतिबंधित है किंतु ये खेल बदस्तूर जारी है. पकड़े जाने पर महज तीन साल की सजा का प्रावधान होने के कारण लोगों में बहुत डर भी नहीं रह गया है. इस घृणित व जघन्य कार्य में कुछ चिकित्सक भी संलग्न हैं."

साफ है कि जब सोच यही रहेगी तो स्थिति बदतर होती ही जाएगी. दरअसल आज भी भारतीय समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कहते हैं, "समाज का स्वरुप परिवर्तित हुआ है, सोच नहीं. परंपराओं व मान्यताओं की वजह से समाज की वे बेड़ियां नहीं टूट सकी हैं जिसकी वजह से लड़कियों का लालन-पोषण कठिन माना जाता है. यह एक बड़ी वजह है जिसके कारण लोग लड़की के जन्म पर आज भी नाक-मुंह सिकोड़ने से गुरेज नहीं करते."

Indien The Sargam Mahila Band
बाधाओं को तोड़ने की कोशिश सरगम महिला बैंडतस्वीर: Nari Gunjan

चहुंमुखी विकास योजनाओं का असर

सर्वेक्षण के आंकड़े गवाह हैं कि महिलाओं ने अन्य क्षेत्रों में कमोबेश खासी प्रगति की है. ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार में लड़कियों को शिक्षित करने की विभिन्न सरकारी योजनाओं ने अपना असर दिखाया है. इनमें साइकिल, पोशाक व छात्रवृति जैसी योजनाएं हैं जिनकी वजह से बेटियों की शिक्षा में आठ फीसद का इजाफा हुआ है. लड़कियों में शिक्षा की दर 49.6 फीसद थी जो बढ़कर अब 58 प्रतिशत हो गई है. हालांकि साक्षर महिलाओं की संख्या अभी भी पुरुषों की तुलना में करीब 21 प्रतिशत कम है. लगता है कि शिक्षा की लौ शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में ज्यादा रोशन हुई है. इसलिए शहरी क्षेत्र में चार तो ग्रामीण इलाके में नौ प्रतिशत का इजाफा हुआ है. शिक्षा का ही असर है कि 15 से 24 वर्ष की लड़कियों द्वारा सैनिटरी पैड का इस्तेमाल भी बढ़ा है. 31 फीसद की जगह अब 59 प्रतिशत महिलाएं इसका उपयोग कर रहीं हैं. जाहिर है, महिलाएं हाइजीन के प्रति जागरुक हुई हैं.

चहुंमुखी विकास की इन योजनाओं का असर ही है कि बिहार की 86.5 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं घर के फैसले खुद करतीं हैं. चौथे सर्वेक्षण में यह संख्या 75 फीसद थी. मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना से जुड़े कार्यों का ही नतीजा है कि महिलाएं सशक्त हुईं हैं और घर के निर्णयों में इनकी भागीदारी बढ़ी है. महिलाओं के पास बैंक अकाउंट होने की संख्या में खासी वृद्धि दर्ज की गई है. 2015-16 के सर्वेक्षण के अनुसार 26.4 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना बैंक अकाउंट था तो 2019-20 में यह आंकड़ा उछल कर 76.7 प्रतिशत पर पहुंच गया है. पत्रकार कौशल किशोर कहते हैं, "इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि आधी आबादी की दिशा और दशा, दोनों में ही सुधार हुआ है. सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह साफ परिलक्षित हो रहा है. उम्मीद है जैसे- जैसे शिक्षा की लौ तेज होगी, सामाजिक समस्याएं भी उसी अनुपात में दूर होती जाएंगी."

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