नशे में डूबता अफगान बचपन
१३ फ़रवरी २०१३दहशत और जंग के साए में झुलस रहे अफगानिस्तान में कम उम्र के बच्चों में नशे की आदत आम होती जा रही है. इसकी बड़ी वजह यह भी है कि अफगानिस्तान में दुनिया की सबसे ज्यादा अफीम की खेती होती है. नशे में उलझ रहे बच्चों की संख्या बढ़ी है और साथ ही इन्हें सामान्य जीवन में लाने के लिए प्रतिबद्ध नशा मुक्ति केंद्रों की संख्या भी.
मैदान में खेलते नीले रंग की यूनिफॉर्म पहने कुछ लड़के लड़कियां अब वैसे नहीं दिखाई देते जैसे पहले दिन थे. शुरुआती दौर में वे हमेशा नींद में और निढाल रहते थे. केंद्र में काम करने वाली मासूमा खातिमा ने बताया, "जब मैने इन्हें पहली बार देखा था तो ये बिलकुल दुखी और अवसाद से भरे लगते थे. न ये इतनी फुर्ती से खेलते थे न ही इन्हें सफाई का कोई खयाल रहता था."
इनमें से ही एक संस्था वदान संयुक्त राष्ट्र से मिल रही आंशिक वित्तीय मदद से चलती हैं. यहां करीब 25 बच्चों और 35 महिलाओं को आश्रय मिल रहा है. यहां उन्हें स्वस्थ जीवन देने का भी पूरा खयाल रखा जाता है. कुछ बच्चों को लत की वजह से सिर दर्द, कब्ज और डायरिया की भी समस्या रहती है जिसके लिए उन्हें यहां दवाएं दी जाती हैं.
दस साल की मारवा अब ठीक है. मारवा ने बताया, "मैं तब से नींद की गोलियां खा रही हूं जब मैं बहुत छोटी थी. मुझे उसकी वजह से हर समय नींद आती रहती थी. मैं ध्यान दे कर पढ़ाई भी नहीं कर पाती थी. मेरी कक्षा के बच्चे भी मुझ पर हंसते थे. अब मैं बेहतर हूं लेकिन अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हूं." मारवा उस तबके से आती हैं जहां महिलाओं को पढ़ाई लिखाई के बड़े मौके मिलना विरली बात है, लेकिन वह इंजीनियर बनना चाहती हैं.
माता पिता कराते हैं नशा
केंद्र के प्रमुख फजलवाहिद ताहिरी ने बताया कि बच्चों के दूध में नींद की गोली मिलाकर दे देना अफगानिस्तान के पूर्वी इलाके ननगढ़हर में काफी आम बात है. लेकिन अकसर पेट दर्द और जुकाम से इलाज के लिए उन्हें अफीम की ज्यादा खुराक दे दी जाती है. उन्होंने बताया क्योंकि अफीम यहां इतना सस्ता है कई बार लोग उसे नशीले पदार्थ की तरह देखते ही नहीं बल्कि दर्द की गोली की तरह खाते हैं. संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करने वाले डॉक्टर जरबादशाह जबरखैल कहते हैं, "कई बार बच्चे सीधे सीधे अफीम का इस्तेमाल नहीं करने पर भी इसके आदी हो जाते हैं जब उनके घर में कोई इसका लगातार सेवन करता है और बीड़ी में इसको पीता है." उन्होंने बताया काम में उलझी महिलाएं अकसर जानबूझ कर बच्चों को अफीम पिलाकर सुला देती हैं ताकि सुकून से बैठ कर कालीन बना सकें या दूसरे काम कर सकें.
गरीबी की मार
जबरखैल के अनुसार कुल मिलाकर इस सबकी वजह है गरीबी. 28 साल की बसपरी और उनके पति खेतों में अफीम उगाते हैं. उनके साथ परिवार में 10 महीने से 10 साल तक की उम्र के 5 बच्चों को भी अफीम की लत है. बसपरी कहती हैं, "मैं जब छोटी थी तो मुझे भी यही दिया गया था. जब आपके पास पैसे न हों और बच्चों को दवाई की जरूरत हो तो इसके अलावा कोई और रास्ता है भी नहीं."
डॉक्टर जबरखैल ने कहा, "यह बहुत आम बात है. ज्यादातर परिवारों को इस बात का एहसास ही नहीं है कि इस तरह वे अपने बच्चों को जानबूझ कर नशा करा कर मौत की तरफ ढकेल रहे हैं. उन्हें इसके बुरे परिणामों के बारे में पता ही नहीं है." उन्होंने बताया कि नशा करने वालों में बच्चों की संख्या निरंतर बढ़ रही है.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2010 के बीच अफगानिस्तान में नशा करने वालों की संख्या 53 फीसदी बढ़ी है. संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों के अनुसार पूरे देश में कुल 90 नशा मुक्ति केंद्र हैं जहां लगभग 16 हजार लोगों का इलाज हो रहा है. केवल एक तिहाई केंद्र ही महिलाओं और बच्चों के लिए है. बसपरी को जब से डॉक्टरों ने अफीम के नुकसान के बारे में बताया हैं वह कोशिश कर रही हैं कि अफीम का इस्तेमाल न खुद करें और न ही बच्चों पर करें.
अफगानिस्तान की कुल आबादी के 60 फीसदी लोग 25 वर्ष से कम जबकि 52 फीसदी लोग 18 वर्ष से कम उम्र के हैं. जबरखैल कहते हैं, "ये बच्चे ही देश का भविष्य हैं. अगर हमने इनका खयाल नहीं रखा तो इससे देश का बहुत नुकसान होगा."
एसएफ/एएम (एएफपी)