नवाज शरीफ तो गये, भारत-पाक रिश्ते किधर जाएंगे?
२९ जुलाई २०१७नवाज शरीफ को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने भारत के साथ रिश्तों को बेहतर करने की कोशिश की. ऐसा उन्होंने पहली बार नहीं किया है. नवाज शरीफ 1990 के दशक में जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे तो उस समय भी उन्होंने कोशिश की थी. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर गये थे. वहां पर एक डील भी हुई, जिसे लाहौर समझौता कहा जाता है. लेकिन तभी अचानक हमने देखा कि कारगिल की घटना हो गयी और दोनों देशों के रिश्ते फिर खराब हो गये. कारगिल की घटना के पीछे नवाज शरीफ का हाथ नहीं था. उनका कोई ऐसा इरादा भी नहीं था. यह बात रिकॉर्ड पर है. जनरल मुशर्रफ के इस बारे में कितने ही इंटरव्यू मौजूद हैं. जब भी पाकिस्तान में किसी चुने हुए प्रधानमंत्री ने भारत से रिश्ते बेहतर करने की कोशिश की है, तो उसको सत्ता से बाहर किया गया है.
अगर आप देखें तो नवाज शरीफ की खुद की राजनीति भी बदली है. सैन्य शासक जिया उल हक के दौर में उन्होंने राजनीति शुरू की. 1980 और 1990 के दशक में यह उनकी राजनीति नहीं है जो अब है. इसकी वजह यह है कि उनके हित बदले हैं और उनके अनुभव भी बदले हैं. पहले सेना के साथ उनके रिश्ते अलग हुआ करते थे. फिर खराब हुए. उन्होंने देखा कि किस तरह सेना ने उन्हें तख्तापलट करके सत्ता से बाहर कर दिया.
यह बात सही है कि वह एक कारोबारी हैं और उनके कारोबारी हित भी हैं. भारत के साथ अच्छे रिश्ते रहेंगे तो यह उनके हित में होगा. हम यह तो नहीं कह सकते हैं कि निजी तौर पर वह क्या सोचते हैं. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि उनके जैसे लोगों के हित भारत से बेहतर संबंधों से जुड़े हैं. उन्हें पड़ोसी देश के रिश्ते बेहतर होने में फायदा दिखायी देता है. ठीक यही बात भारत पर भी लागू होती है. अगर प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर करना चाहते हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें पाकिस्तान से प्यार है. यूरोपीय संघ इस मामले में बेहतरीन मिसाल है. आपको अपने आर्थिक हितों को जोड़ना पड़ता है. इसी तरह देश आगे बढ़ते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान आमंत्रित किया था. एक बार मोदी भी अचानक पाकिस्तान जा पहुंचे थे और नवाज शरीफ को जन्मदिन की मुबारकबाद दी. दोनों देशों के बीच भले ही अच्छे रिश्ते नहीं हैं, लेकिन दोनों नेताओं के बीच एक निजी संबंध है.
कुल मिलाकर पाकिस्तान में प्रधानमंत्री पद से नवाज शरीफ का जाना भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के लिए धक्का है. उनके बाद ऐसे लोग सत्ता में आ सकते हैं जो भारत से संबंध बेहतर नहीं रखना चाहते. पाकिस्तानी सियासत में कट्टरपंथी रवैया रखने वाले लोग आगे बढ़ सकते हैं. नवाज शरीफ हो या मोदी, उनकी नीतियों की व्यक्तिगत आलोचना हो सकती है और होनी भी चाहिए. लेकिन दोनों नेताओं के बीच एक बात समान दिखती थी कि दोनों रिश्ते बेहतर करना चाहते थे. इससे दोतरफा रिश्तों को नुकसान हो सकता है. पहले ही काफी नुकसान हो चुका है.
जल्द ही भारत और पाकिस्तान अपनी आजादी की 70वीं वर्षगांठ मनायेंगे. इन सत्तर सालों में भी हमें कोई बेहतरी की उम्मीद नहीं दिखायी देती है. जब भी कुछ बेहतर होने लगता है तो किसी प्रधानमंत्री को सत्ता बाहर किये जाने की घटनाएं दिखायी देती हैं.