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नकली बारिश से कितनी राहत कितना नुकसान

कार्ला ब्लाइकर
२६ अगस्त २०२२

इंसान भी एक हद तक मौसम को प्रभावित कर सकते हैं. आज क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश का ज्यादातर इस्तेमाल सूखाग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचाने के लिए किया जाता है. लेकिन अतीत में इसका दुरुपयोग भी हुआ है.

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क्लाउड सीडिंग के जरिये बारिश करायी जा सकती है
बारिश के लिए इंसान अब ईश्वर से प्रार्थना के अलावा भी कुछ कर सकता हैतस्वीर: Arne Dedert/dpa/picture alliance

उत्तरी गोलार्ध के देश लू, जंगल की आग और बेतहाशा सूखे से लगातार जूझते आ रहे हैं. इन कुदरती आफतों ने वैज्ञानिकों को मौसम में खुद ही बदलाव लाने की कोशिश के लिए उकसाया है.

चीन इस समय रिकॉर्ड स्तर की गर्म हवाओं से जूझ रहा है. पिछले दो महीनों से सिहुआन प्रांत में तापमान नियमित रूप से 40 डिग्री सेल्सियस के पार जा रहा है. एशिया की सबसे लंबी नदी, यांगत्सी के जलस्तर में भी रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है.  चीन के जल संसाधन मंत्रालय के मुताबिक इस वजह से इलाके में पड़े सूखे ने, "ग्रामीणों और मवेशियों की पीने के पानी की किल्लत बढ़ा दी है और फसल को भी खराब किया है."

गंभीर हालात से निपटने के लिए चीन सरकार ने "क्लाउड सीडिंग" की मदद से बारिश लाने की कोशिश शुरू की है. 

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क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?

भाप वाली हवा वायुमंडल में ऊपर उठती जाती है, ठंडी होती है और बर्फीले कण बनाती है जब ये कण पर्याप्त मात्रा में एक साथ आ जुड़ते हैं तो बादल बन जाता है. बादल के भीतर, बर्फीले कण जुड़े होते हैं.

जब आपस में गुंथी हुई बूंदे आकार में पर्याप्त रूप से बड़ी और भारी हो जाती हैं, तो वो वर्षा के रूप में जमीन पर गिरती हैं. वो बारिश हो सकती है, या बर्फ या फिर बौछारें. ये निर्भर करता है तापमान और दूसरी मौसमी स्थितियों पर.

चीन में भयानक सूखा पड़ा है
रिकॉर्ड सूखा पड़ने की वजह से यांग्सी नदी कई जगहों पर सूख गई हैतस्वीर: Chinatopix/AP/picture alliance

क्लाउड सीडिंग में, बर्फ जैसे ही एक पारदर्शी क्रिस्टल सरीखे नमक यानी सिल्वर आयोडाइड के छोटे कण, बादलों में मिला दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया में विमान या ड्रोन से ये कण बादलों पर गिराए जाते हैं कणों को जमीन से भी बादलों में दागा जा सकता है.

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कई देशों में मौसम वेबसाइटें चलाने वाली स्पानी कंपनी मीटियोर्ड से जुड़े मौसमविज्ञानी होहे मिग्युल वाइनस ने डीडब्लू को बताया कि इस तरीके के तहत, बादल के भीतर स्थित भाप, सिल्वर आयोडाइड कणों के इर्दगिर्द बूंदे बनाने लगती हैं.    

सिल्वर आयोडाइड मिलाते ही बूंदे आपस में जुड़कर पर्याप्त भारी हो जाती हैं. और बादलों से बारिश बनकर गिरने लगती हैं.

जिस तरीके से ये प्रक्रिया काम करती है उससे पता चलता है कि चीन को बादलों को पानी से भरने के लिए फिलहाल इतना क्यों जूझना पड़ रहा है. आसमान के कुछ हिस्सों में, जहां आप बारिश तैयार करना चाहते हैं, वहां कम से कम कुछ बादलों का पहले से होना भी जरूरी है. लेकिन चीन के कुछ इलाकों में जहां पानी की सबसे सख्त जरूरत है, वहां ये तरीका कारगर नहीं हो पा रहा क्योंकि उतना बादल कवर मिल ही नहीं रहा है. बारिश के बादलों को अपने स्तर पर बना सकना इंसानो के बस में अभी नहीं है.

कौन कराता है बारिश – और क्यों?

1940 के दशक में जनरल इलेक्ट्रिक रिसर्च लैबोरेटरी में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार क्लाउड सीडिंग की कोशिशें शुरू की थीं. आज दुनिया के कई मुल्कों में ये तरीका इस्तेमाल किया जाता है. चीन का उदाहरण सबसे ताजा है. उसने 2008 में ओलम्पिक खेलों से पहले बारिश बनाने की इस तकनीक का उपयोग किया था.

भारत में भी क्लाउड सीडिंग के जरिये बारिश कराई जाती है
2017 में बेंगलुरु में क्लाउड सीडिंग के लिये उड़ान भरता विमानतस्वीर: MANJUNATH KIRAN/AFP/Getty Images

रूस भी छुट्टियों के बड़े अवसरों से पहले क्लाउड सीडिंग कराने के लिए जाना जाता है ताकि सार्वजनिक समारोहों के रंग में बारिश से भंग न पड़ जाए. 2016 में मई दिवस की छुट्टी को बारिश-मुक्त रखने के लिए रूस ने क्लाउड सीडिंग पर 8 करोड़ 60 लाख रूबल (करीब 14 लाख डॉलर) खर्च कर डाले थे. समारोह के दिन मॉस्को में मौसम खिला हुआ था.

आज इस तरीके का इस्तेमाल सूखा-ग्रस्त इलाकों में बारिश लाने के लिए किया जाता है. चीन के अलावा, अमेरिका भी क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल करता रहा है. अभी हाल फिलहाल, सूखे की चपेट में आए उसके दो पश्चिमी राज्यों- इडाहो और व्योमिंग में क्लाउड सीडिंग की गई थी.

थोड़ा और पीछे मुड़कर देखें, अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के समय भी मॉनसून की अवधि को बढ़ाने के लिए क्लाउड सीडिंग को हथियार की तरह इस्तेमाल किया था. वियतनामी सेना की सप्लाई चेन को अवरुद्ध कर दिया गया था और ज्यादा बारिश से जमीन को दलदली बनाकर आवाजाही भी ठप कर दी थी.

अप्रैल 1986 में सोवियत वायु सेना के पायलटों ने चेर्नोबिल के आसमान से निकलते बादलों की सीडिंग की थी. वहां एटमी ऊर्जा संयंत्र में विस्फोट हो गया था, और बादलों को रूस की राजधानी मॉस्को की ओर उड़ने से रोका जाना था. शासन ने उस अभियान को कामयाब बताया था. रेडियोएक्टिव बादल रूसी शहरों का रुख नहीं कर सके. बल्कि उनमें भरा एटमी कचरा, बेलारूस के ग्रामीण इलाकों और वहां रहने वाले सैकड़ों हजारों लोगों पर जा गिरा.

क्लाउड सीडिंग विवादित क्यों है?

जिन दो घटनाओं का उल्लेख ऊपर किया गया है, ये दो उदाहरण बताते हैं कि एक बड़ी भलाई के लिए विकसित की गई तकनीकी का सत्ताधारी गलत इस्तेमाल भी कर सकते हैं. लेकिन कुछ और कारक भी हैं जिनकी बिना पर जानकारों के मन में क्लाउड सीडिंग के प्रभावों को लेकर संदेह हैं.

एक दलील ये है कि अगर सूखे से निपटने के लिए अपने इलाके के ऊपर आप बादलों में पानी तैयार करते हैं तो वे बादल दूसरे इलाकों की ओर बारिश नहीं ले जाएंगें जहां उससे मिलने वाले बड़ी राहत की ज्यादा जरूरत हो सकती थी.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अप्लाइड फिजिक्स के प्रोफेसर डेविच कीथ कहते हैं, "अगर आप एक जगह पर ही बारिश करा देते हैं तो आगे के लिए उसका प्रवाह कम कर देते हैं." प्रोफेसर कीथ की रिसर्च- जलवायु विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नीति के बीच अंतर्संबंधों और तालमेल की छानबीन करती है. वो इस प्रक्रिया को "इसकी टोपी उसके सिर" वाले मुहावरे से जोड़ कर देखते हैं. वो कहते हैं, "इसमें जीतने वाले और गंवाने वाले दोनों ही अंतर्निहित हैं."

जानकार इस बारे में भी आगाह करते है कि मौसम को नियंत्रण करना, इंसानी बूते के बाहर है. इसमें गड़बड़ी तय है. और चिंता भी है कि ऐसा करने से जलवायु परिवर्तन से निपटने के ज्यादा पारंपरिक उपायों की ओर से ध्यान हट सकता है.

मौसमविज्ञानी होहे मिग्वुअल वाइनस कहते हैं, "बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग समेत तमाम जियोइंजीनियरिंग, एक खतरनाक प्रयोग है जो बेकाबू होकर अनचाहे, अवांछित नतीजों की ओर धकेल सकता है."

वो कहते हैं, "अगर हम सूखे या तूफान के असर को कम करना चाहते हैं, जो कि खासतौर पर मौजूदा ग्लोबल वॉर्मिंग के संदर्भ में काफी तीव्र हैं, तो हमें अनुकूलन और न्यूनीकरण के उपायों में निवेश करना चाहिए."

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