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नए कृषि विधेयकों पर राजनीतिक उठापटक

चारु कार्तिकेय
१८ सितम्बर २०२०

केंद्र सरकार के नए कृषि विधेयकों के विरोध में अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल के केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद अब हरियाणा में भी सत्तारूढ़ बीजेपी के घटक दल जेजेपी पर विधेयकों का विरोध करने का दबाव बढ़ रहा है.

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Indien Bathinda Shiromani Akali Dal
तस्वीर: IANS

अकाली दल की तरह जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के मतदाता भी कृषि पृष्ठभूमि के हैं और पार्टी के संस्थापक दुष्यंत चौटाला हरियाणा सरकार में उप-मुख्यमंत्री हैं. हरसिमरत की तरह दुष्यंत से भी विधेयकों के विरोध में राज्य सरकार से इस्तीफे की मांग की जा रही है. दुष्यंत ने अभी तक इस विषय पर कुछ कहा नहीं है, लेकिन पंजाब की ही तरह हरियाणा में भी किसान इन विधेयकों के विरोध में सड़कों पर उतरे हुए हैं. कांग्रेस, जो पंजाब में सत्ता में है और हरियाणा में विपक्ष में, ने दोनों ही राज्यों में विधेयकों के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है.

इतना ही नहीं, कांग्रेस हरसिमरत के इस्तीफे को नाटक बता रही है और अकाली दल को चुनौती दे रही है कि अगर पार्टी वाकई विधेयकों के खिलाफ है तो वो एनडीए सरकार से समर्थन वापस ले कर दिखाए. अकाली दल के अध्यक्ष और हरसिमरत के पति सुखबीर सिंह बादल कह चुके हैं कि पार्टी इस मुद्दे पर एनडीए के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करेगी. अकाली दल बीजेपी का सबसे पुराना मित्र दल और एनडीए का संस्थापक सदस्य है.

पार्टी के एनडीए को छोड़ देने से गठबंधन निश्चित रूप से कमजोर होगा. एनडीए का एक और पुराना घटक दल शिव सेना पहले ही गठबंधन छोड़ चुका है. नवंबर 2019 में हरसिमरत की ही तरह शिव सेना के अरविंद सावंत ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था. सांसदों की संख्या के हिसाब से अब जेडीयू, एआईएडीएमके और लोजपा ही बीजेपी के बड़े साथियों के रूप में बचे हैं.

इसके बावजूद ना सिर्फ राष्ट्रपति ने हरसिमरत के इस्तीफे को स्वीकार कर लिया, बल्कि केंद्र ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को तुरंत हरसिमरत के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया. जानकारों का कहना है कि इससे संकेत मिलता है कि बीजेपी में विधेयकों पर आगे बढ़ने को लेकर पूरा आत्मविश्वास है. इसे पंजाब में अकाली दल का दामन छोड़ कर अकेले अपना प्रभाव बढ़ाने की बीजेपी की महत्वाकांक्षा से भी जोड़ा जा रहा है.

अकाली दल पंजाब में एनडीए का बड़ा घटक दल रहा है और बीजेपी छोटा. लेकिन 2019 लोक सभा चुनावों में दोनों पार्टियों को दो-दो सीटें मिलीं, जब कि अकाली 10 सीटों पर लड़े थी और बीजेपी सिर्फ तीन पर. विधान सभा में अकालियों की संख्या ज्यादा है. अकाली दल के 15 विधायक हैं तो बीजेपी के सिर्फ तीन. 2022 में राज्य में फिर से चुनाव होंगे और संभव है कि इसी वजह से अकाली दल ने विधेयकों पर अपनी स्थिति बदल ली हो. पार्टी शुरू में विधेयकों का समर्थन कर रही थी, लेकिन बाद में किसानों के विरोध की उग्रता देखते हुए विधेयकों के खिलाफ हो गई.

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