धूमकेतु आइसन की यात्रा
आइसन नाम का धूमकेतु नवंबर 2013 में सूरज के बेहद पास से गुजरा. खगोल वैज्ञानिकों के लिए यह एक अद्भुत नजारा तो रहा, लेकिन रिसर्च के लिए एक अध्याय भी छोड़ गया. क्या यह नष्ट हो गया या इसका कुछ हिस्सा अभी भी बचा रह गया है.
धूमकेतु और उल्कापिंड
भारी मात्रा में गैस और पत्थरों से लदे धूमकेतु में असंख्य धूल कण भी होते हैं. एक बार वायुमंडल में आने के बाद ये गर्म होना शुरू होते हैं और उनका तापमान 3000 डिग्री तक पहुंच जाता है. और यहीं से टूटा हुआ तारा यानी उल्कापिंड निर्मित होता है.
उल्कापिंडों की बारिश
धरती के निकट आने के बाद असंख्य मात्रा में टूटे हुए तारों की बरसात हो सकती है. जब भी ऐसा होता है, यह एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करता है. कहा जाता है कि इंग्लैंड के स्टोनहेंज का निर्माण भी टूटे तारों से ही हुआ.
अद्भुत नजारा
आसमान से जब उल्कापिंडों की बारिश होती है, तो कुछ ऐसा नजारा बनता है. चमक के साथ तारे टूटते हुए धरती की ओर बढ़ते हैं, मानो आसमानी आतिशबाजी शुरू हो गई हो.
अगस्त का मामला
धूमकेतु स्विफ्ट टटल के उल्कापिंडों की बरसात आम तौर पर अगस्त के पहले हिस्से में देखी जाती है. कई बार तो एक मिनट के अंदर 100 बार फ्लैश चमकने जैसा नजारा पैदा होता है. इसे पेरसाइड का नाम दिया गया है क्योंकि ये उल्कापिंड इसी नाम के तारामंडल से आते दिखते हैं.
उल्कापिंड
धूमकेतु धरती के वातावरण में आने के बाद जल उठते हैं. अंतरिक्ष से विशालकाय पत्थर धरती पर गिर सकते हैं. हालांकि ज्यादातर मामलों में ये पत्थर बहुत छोटे होते हैं और इनसे नुकसान नहीं पहुंचता.
डायनासोरों का हत्यारा
कहा जाता है कि साढ़े छह करोड़ साल पहले एक विशालकाय उल्कापिंड युकाटेन पठार के पास गिरा. इसकी वजह से 300 किलोमीटर व्यास का गड्ढा बना और इसके असर से ही डायनासोरों का जीवन खत्म हो गया.
काले चमकीले पत्थर
उल्कापिंडों में जो पत्थर होते हैं, वे धरती पर पाए जाने वाले पत्थरों की तरह ही दिखते हैं. हालांकि बाहर से वह जले हुए नजर आते हैं. कुछ इस तरह के.
धूल और गैस
जानकारों का कहना है कि हमारे सौरमंडल का निर्माण भी धूमकेतुओं की वजह से हुआ. इस मामले में लगातार रिसर्च जारी है.
विशालकाय टुकड़े
अंतरिक्ष में तैरते इन पत्थर के टुकड़ों को क्षुद्रग्रह भी कहते हैं. वे आम तौर पर उल्कापिंडों से बड़े होते हैं. कुछ क्षुद्रग्रहों का व्यास कई किलोमीटर हो सकता है. देखा जाए तो इन दोनों में कोई फर्क नहीं, बस धरती के वायुमंडल में आ जाने के बाद क्षुद्रग्रह को उल्कापिंड का नाम मिल जाता है.
खतरा टला
फरवरी 2013 में करीब एक लाख 30 हजार टन वजनी क्षुद्रग्रह धरती की तरफ बढ़ा. इसका नाम 2012 डीए 14 था. यह धरती से 27,000 किलमोटर की दूरी तक पहुंच गया. यह दूरी कई उपग्रहों की दूरी से भी कम है.
सुरक्षा ही उपाय
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ईएसए इटली के फ्रासकाटी में एक चेतावनी सिस्टम लगा रही है, जो उल्कापिंडों के गिरने के बारे में पहले से सूचना दे सकेगा. इसके लिए विशालकाय टेलिस्कोपों के आंकड़े इस्तेमाल होंगे.