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धार्मिक नेता समलैंगिकों के फ़ैसले पर बिफरे

३ जुलाई २००९

समलैंगिक संबंधों पर दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद कई धार्मिक नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि भारत की संस्कृति में समलैंगिकता को क़ानूनी दायरे में लाना सही नहीं है.

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जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी सहित कई धार्मिक नेताओं की कड़ी प्रतिक्रिया.तस्वीर: AP

दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुख़ारी ने कहा कि इस क़ानून को नहीं माना जाएगा. उन्होंने कहा, "समलैंगिकता को क़ानूनी दर्जा दिया जाना बिलकुल ग़लत है. हम इस क़ानून को नहीं मानते." उन्होंने सरकार पर भी निशाना साधा और कहा कि वह संविधान की धारा 377 को ख़त्म करने की कोशिश कर रही है. बुख़ारी ने कहा, "सरकार अगर धारा 377 को ख़त्म करने की कोशिश करेगी, तो हम इसका कड़ा विरोध करेंगे."

अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली ने कहा कि किसी धर्म में समलैंगिकता को इजाज़त नहीं दी जाएगी. उन्होंने कहा, "यह सभी धर्मों के ख़िलाफ़ है. यह भारतीय संस्कृति की परंपराओं के ख़िलाफ़ है. हम समझते हैं कि भारत में समलैंगिकता को क़ानूनी दर्जा देने की कोई ज़रूरत नहीं. यह एक अप्राकृतिक चीज़ है. इसे एक अपराध ही बनाए रखना चाहिए."

उधर, दिल्ली के ईसाई संगठन ने भी इस पर टिप्पणी की है. फ़ादर डोमीनिक इमैनुएल ने कहा कि समलैंगिकता को क़ानूनी नहीं किया जाना चाहिए.

भारत की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने अदालत के फ़ैसले पर संभल कर टिप्पणी की है. पार्टी ने कहा कि यह अदालत और सरकार के बीच का मामला है. दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद कांग्रेस के प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा, "यह मामला अदालत और सरकार के बीच का है और पार्टी को इससे कोई लेना देना नहीं है." शकील अहमद पहले भी कह चुके हैं कि समलैंगिकता के मामले में पार्टी का कोई नज़रिया नहीं है और इस मुद्दे पर पार्टी के अंदर चर्चा नहीं हुई है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः आभा मोंढे