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दिशाहीन बजट में चुनौतियों से लड़ने का दम नहीं

१६ मार्च २०१२

प्रणब मुखर्जी की पिटारी खुली लेकिन बाहर निकली सौगातों से न तो उद्योग जगत मुस्कुराया न महंगाई की मार झेल रहे आम आदमी के माथे की लकीरें हल्की हुईं. अंतरराष्ट्रीय आर्थिक बिरादरी को भी खुश करने वाली कोई बात नजर नहीं आई है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

मौजूदा दौर में भारत के बजट पर देश के साथ ही न सिर्फ आस पड़ोस के बल्कि दूर दराज के देशों की भी नजर टिकी है. उम्मीद की जा रही थी कि भारतीय वित्त मंत्री पिछले साल की खराब हालत को देखते हुए सुधार के कुछ कदमों का एलान करेंगे. पर ऐसा कुछ दिखा नहीं.

भारत की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले और प्रमुख आर्थिक विश्लेषक प्रो. अरुण कुमार ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "बजट में जिन चुनौतियों की बात की गई उनका सामना करने के लिए कुछ नहीं है. बजट के शुरुआत में वित्त मंत्री ने दुनिया की आर्थिक मंदी, भारत में निवेश में आई कमी, भारत के विकास दर में कमी का जिक्र किया. लेकिन इन समस्याओं से लड़ने के लिए बजट में कोई उपाय नहीं है. बजट ऐसी पार्टी ने बनाया है जो फिलहाल बेहद कमजोर स्थिति में है. पिछले एक साल में इस पार्टी ने देश की समस्याओं को दूर करने और आर्थिक प्रगति का रास्ता बनाने के लिए कुछ भी नहीं किया. ऐसे में यह बजट बस किसी तरह से यथास्थिति को बनाए रखने वाला है जो अर्थव्यवस्था को कोई दिशा नहीं दे रहा."

प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक विश्लेषक परॉन्जय गुहा ठाकुरता भी मुखर्जी के बजट से नाखुश हैं और इसे कुछ हद तक "बुरा बजट" बता रहे हैं. डॉयचे वेले से बातचीत में परॉन्जय गुहा ठाकुरता ने कहा, "इस बजट ने भारतीय राजनीति की वाम और दक्षिण दोनों धाराओं को नाराज किया है. आम आदमी के लिए बताया जा रहा बजट सबसे ज्यादा उन्हीं को परेशान करने वाला है. खाने पीने की चीजों की सब्सिडी बढ़ा कर पेट्रोलियम और फर्टिलाइजर पर घटाई जा रही है नतीजा क्या होगा सबको पता है. प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि महंगाई घटेगी लेकिन होगा इसका ठीक उल्टा. वित्त मंत्री ने चीनी की एक झीनी परत में रख कर कड़वी गोली खिलाई है."

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तस्वीर: AP

ठाकुरता तो यहां तक कहते हैं कि वित्त मंत्री को पता है कि अगला बजट भी उन्हें बनाना है जो आम चुनावों के बेहद करीब होगा ऐसे में उनके पास तब शायद इस तरह का बजट बनाने की गुंजाइश न रहे.

वित्त मंत्री के बजट को देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी ने भी "जनविरोधी" करार दिया है. पार्टी महासचिव मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, "इस बजट से महंगाई बढ़ेगी जिससे आम आदमी को चोट पहुंचेगी." बीजेपी प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने भी कहा कि, "इस बजट से आम आदमी को कोई राहत नहीं मिलेगी, इससे लोगों का भरोसा टूट गया है." रेल बजट पर सरकार की ऐसी तैसी कराने वाली तृणमूल कांग्रेस ने सत्ताधारी पार्टी को यह कह कर राहत दी है कि यह एक "सहनीय" बजट है. सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने इस बजट को बुरा बताते हुए कहा कि यह अमीर और गरीब के बीच की खाई को और गहरी करेगा.

उद्योग जगत ने भी बजट को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखाया है. इसके उलट उनकी प्रतिक्रिया निराशा जगाने वाली ही रही है. मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक भी पूरे दिन हिचकोले खाते रहने के बाद आखिरकार 209 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ. बजट भाषण के दौरान भी इसमें कोई विशेष हलचल नहीं दिखी. भारत की प्रमुख उद्योग संस्था सीआईआई के अध्यक्ष बी मुथुरमन ने कहा कि उन्हें बजट से बहुत उम्मीदें थी जो जाहिर है कि पूरी नहीं हुईं. इसके साथ ही उन्होंने एक्साइज ड्यूटी में इजाफे से महंगाई के और बढ़ने की बात कही. सी के बिरला समूह के सिद्धार्थ बिरला ने कहा, "बजट का मौका गंवा दिया गया है." बायोकॉन की सीएमडी किरण मजुमदार शॉ का भी कहना है कि बजट महंगाई बढ़ाने वाला साबित होगा. गोदरेज समूह के चेयरमैन आदि गोदरेज मानते हैं, "घाटा पहले से ही बहुत ज्यादा है जो निराश करने वाला है. अंतिम उपभोक्ता के लिए चीजें और महंगी हो जाएंगी."

तो क्या सचमुच इस बजट में ऐसा कुछ भी नहीं जिस पर खुश हुआ जा सके? प्रो अरुण कुमार ने इस सवाल के जवाब में कहा, "हर बजट के दो हिस्से होते हैं. एक हिस्सा वह है जिसमें सरकार कहती है कि किसानों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं, रिसर्च और विकास पर खर्च कर रहे हैं, छोटे और मझले उद्योग धंधों के विकास के लिए काम कर रहे हैं. शिक्षा, कृषि, बुनियादी ढांचे की भलाई के लिए काम कर रहे हैं, खाने की चीजों पर सब्सिडी के लिए पैसा देंगे इस तरह की बहुत सी बातें हर बजट में होती हैं. आखिरकार जीडीपी के 15 फीसदी को खर्च करने की बात है. जाहिर है इतना सारा पैसा बहुत सारी योजनाओं पर खर्च होगा और इसके बारे में अच्छी बातें कही जाएंगी. मुश्किल यह है कि पूरे बजट में कहीं कोई दिशा नहीं दिख रही. पिछले साल यह सरकार राजनीतिक, आर्थिक संकट से जूझती रही, दुनिया उम्मीद की नजर टिका कर बैठी है लेकिन अब सामने कुछ भी आया नहीं."

रिपोर्टः एन रंजन/पीटीआई

संपादनः महेश झा

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