तुर्की-सीरिया सीमा पर अटका शरणार्थियों का भविष्य
८ फ़रवरी २०१६जर्मन चांसलर मैर्केल अंकारा में प्रधानमंत्री अहमत दावुतोग्लू और राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एरदोवान से बात कर रही हैं. सवाल यह है कि शरणार्थियों को यूरोप आने से रोकने में तुर्की क्या भूमिका निभा सकता है और इसके लिए उसे किस तरह की मदद की जरूरत है. यह मुलाकात ऐसे समय में हो रही है जब सीरिया छोड़ कर निकलना चाह रहे लाखों लोग तुर्की से लगी सीमा पर फंसे हैं.
फिलहाल मैर्केल और दावुतोग्लू की बातचीत के बाद जर्मनी और तुर्की ने तुर्क सीरियाई सीमा पर जमा शरणार्थियों के लिए फौरन मदद शुरू करने का फैसला किया है. तुर्क प्रधानमंत्री ने कहा है कि राहत संगठनों की मदद से यह अभियान तुरंत शुरू किया जाएगा. जर्मनी की ओर से मदद अभियान में तकनीकी राहत संगठन टीएचडब्ल्यू और तुर्की की ओर से सरकारी आपदा राहत संस्था भाग लेगी.
यूरोप में प्रवेश कर रहे शरणार्थियों की तादाद को किसी भी तरह कम करने की कोशिश में ईयू और तुर्की के बीच पिछले साल हुए समझौते से मैर्केल ने काफी उम्मीदें लगाई थीं. इसमें तुर्की ने अपनी सीमा की बेहतर सुरक्षा का वचन दिया था. इस समझौते के अंतर्गत यूरोपीय सीमाओं को सुरक्षित रखने के एवज में तुर्की को तीन अरब यूरो की मदद मिलना तय हुआ था.
25 नवंबर 2015 को इस समझौते पर हस्ताक्षर के साथ ही तुर्की में पहुंच चुके करीब 27 लाख सीरियाई शरणार्थियों को भी मदद दी जानी थी. लेकिन बीते कुछ हफ्तों में सीरिया से घरबार छोड़ कर भाग रहे लाखों नए लोग तुर्की की सीमा पर जा पहुंचे. इसमें से ज्यादातर सीरियाई शहर अलेप्पो से जान बचा कर भागे थे, जहां विपक्ष के नियंत्रण वाले इलाके में रूसी बमबारी के बीच सरकारी सेनाओं का शिकंजा कसता जा रहा है.
इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों को प्रवेश ना देकर तुर्की ने अपनी सीमा बंद कर ली. उसका कहना है कि वे शरणार्थियों का और भार नहीं उठा सकते. केवल कड़े अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते ही ऐसा हो सकता है कि बेमन से ही सही लेकिन तुर्की अपनी सीमाएं खोल कर इन नए सीरियाई लोगों को आने दे.
जाहिर है नए शरणार्थियों के बोझ को अपनी क्षमता से बाहर बता चुका तुर्की इस अतिरिक्त मदद के लिए और धन की मांग कर सकता है. पिछले साल तुर्की के रास्ते अनगिनत लोगों ने यूरोप में प्रवेश किया. साल 2015 में केवल जर्मनी में ही 10 लाख से अधिक शरणार्थी पहुंचे.