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तीसरी बार चुनाव से खत्म होगा इस्राएल का संकट?

२ मार्च २०२०

एक साल में तीसरी बार इस्राएल की जनता आम चुनाव में मतदान कर रही है. क्या इन चुनावों में फिर से चुने जाने के साथ ही प्रधानमंत्री नेतन्याहू के लिए इस्राएल में चला आ रहा राजनीतिक गतिरोध खत्म हो जाएगा?

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Israel Wahlkampf | Kahol Lavan & Benjamin Netanjahu, Blau-Weiß Bündnis
तस्वीर: DW/Tania Krämer

आपराधिक अभियोग झेल रहे प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू एक बार फिर जीत दर्ज करने के लिए बेकरार हैं. दक्षिणपंथी विचारधारा वाले नेतन्याहू के खिलाफ दो हफ्ते बाद ही मुकदमे की सुनवाई शुरु होने वाली है. वह सबसे लंबे समय तक इस्राएल का नेतृत्व करने वाले नेता के रूप में इतिहास बना चुके हैं. जनवरी में उन पर आधिकारिक रूप से घूसखोरी, धोखाधड़ी और विश्वास-भंग करने के आरोप तय हुए हैं. पिछले साल अप्रैल और सितंबर में हो चुके चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि कैसे इतने आरोप लगने के बावजूद जनता में उनका समर्थन बना हुआ है. नेतन्याहू पहले इस्राएली प्रधानमंत्री हैं जिनके खिलाफ ऐसे आपराधिक आरोप तय हुए हैं.

इस चुनाव के पहले हुए तमाम सर्वेक्षण दिखाते हैं कि तीसरी बार भी उनकी लिकुद पार्टी और सेंट्रिस्ट ब्लू एंड व्हाइट पार्टी के नेता और पूर्व सेना प्रमुख रह चुके बेनी गांत्स के बीच टक्कर कांटे की होगी. अनुमान है कि दोनों ही पक्ष बहुमत पाने से चूक जाएंगे और संसद की 61 सीटें नहीं जीत पाएंगे. इसका मतलब यह हुआ कि दोनों ही पक्ष अन्य छोटी पार्टियों से गठजोड़ कर एक स्थायी गठबंधन बनाने की कोशिश करेंगे. हालांकि पिछले दो चुनावों में ऐसा भी संभव नहीं हो पाया और गतिरोध बना रहा. देश में करीब 64 लाख वोटर हैं जिनमें से कई अब भी दोनों में से किसी एक पार्टी का समर्थन नहीं करना चाहते.

एक बात जो लगभग सभी नेता मानते हैं, वह यह कि वे अब चौथी बार चुनाव नहीं करवाना चाहेंगे. केयरटेकर सरकार देश का बजट पास नहीं कर सकती और इसी कारण इस्राएल में कई सामाजिक कार्यक्रमों के लिए धनराशि भी नहीं मिल पा रही है. 70 वर्षीय नेता नेतन्याहू के मामले के सुनवाई 17 मार्च से शुरु होनी है.

नेतन्याहू को चुनौती पेश कर रहे नेता गांत्स की आलोचना इस बात पर होती है कि वे केवल नेतन्याहू के विरोध की राजनीति करते हैं लेकिन खुद देश के लिए अपनी परिकल्पना पेश नहीं करते. अप्रैल के चुनाव में दोनों ही प्रमुख पार्टियों को 35-35 सीटें मिली थीं. सितंबर चुनाव में लिकुद के 32 के मुकाबले ब्लू एंड व्हाइट को 33 सीटें मिली थीं. इन दोनों के अलावा सितंबर चुनाव में जिस अल्ट्रा-ऑर्थोडॉक्स पार्टी ने 17 सीटें जीती थीं, उसने इस बार नेतन्याहू को समर्थन देने की घोषणा कर दी है. वहीं इस्राएल के अरब अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने वाले गठबंधन 'द ज्वाइंट लिस्ट' ने सितंबर में अपनी 13 सीटें जीतने के बाद गांत्स को समर्थन दिया था.

Israel Tel Aviv Parlamentswahlen Coronavirus
तेल अवीव में मतदाताओं के लिए बने एक विशेष पोलिंग बूथ का स्टाफ. तस्वीर: picture-alliance/Xinhua/G. Markowicz

इसी साल जनवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक शांति प्रस्ताव पेश किया था जिसमें एक तरह से उन्होंने ऑक्यूपाइड वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों को काट कर अलग कर देने को हरी झंडी दिखाई थी. जाहिर हैं कि इस प्रस्ताव से फलस्तीन काफी नाखुश हुआ था. लेकिन अमेरिकी समर्थन के कारण नेतन्याहू का मनोबल और बढ़ा और उन्होंने इन चुनाव प्रचार अभियानों में यह संदेश दिया कि उस इलाके में वे हजारों और यहूदियों को बसाएंगे. इस विवादित इलाके में बसी बस्तियों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय अवैध मानता आया है.

कोरोना वायरस के खतरे के बीच ही लोग वोट डाल रहे हैं. देश में संक्रमण के 10 मामले सामने आ चुके हैं. जो कुछ हजार लोग खुद सावधानी बरतते हुए क्वारंटाइन में जी रहे हैं उनके लिए विशेष वोटिंग बूथ बनाए गए हैं. यह वे लोग हैं जो हाल ही में कोरोना प्रभावित इलाकों की यात्रा से लौटे हैं. राजनीतिक जानकार नतीजों को लेकर जो सबसे बड़ा डर जता रहे हैं, वह यह है कि देश को इस बार भी कोई स्पष्ट विजेता नहीं मिल पाएगा.

आरपी/आईबी (एएफपी)

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