तालाबंदी में बेरोजगारी दर में भारी उछाल
७ अप्रैल २०२०कुछ दिन पहले महामारी और तालाबंदी के बीच अपने अपने गृह राज्यों की तरफ लौट के जाते श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों ने जिस संकट की ओर इशारा किया था उसकी पुष्टि होनी शुरू हो गई है. निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने कहा है कि यूं तो तालाबंदी के पहले भी देश में रोजगार को लेकर स्थिति आशाजनक नहीं थी, लेकिन संक्रमण के फैलने और तालाबंदी के शुरू होने के बाद देश में बेरोजगारी के आंकड़ों में बहुत बड़ा उछाल आया है.
इस बारे में कोई सरकारी आंकड़ा अभी तक आया नहीं है. काफी लंबे समय से सरकारी आंकड़ों को लेकर विवाद भी चल रहा है क्योंकि केंद्र सरकार पर आंकड़ों को छिपाने का आरोप है. सीएमआईई एक निजी संस्था है जो हर सप्ताह देश में रोजगार की स्थिति पर सर्वेक्षण करती है. सीएमआईई के अनुसार रोजगार की स्थिति मार्च की शुरुआत से ही, यानी तालाबंदी के पहले ही गिरनी शुरू हो गई थी, लेकिन मार्च के आखिरी सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह में इसमें बहुत तेज बदलाव आया.
मार्च में बेरोजगारी दर 8.7 प्रतिशत थी जो कि अपने आप में पिछले साढ़े तीन सालों में सबसे ऊंची बेरोजगारी दर थी. बेरोजगारी दर का मतलब है उन लोगों का प्रतिशत जो नौकरी ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें मिली नहीं. जनवरी से मार्च के बीच बेरोजगार लोगों की संख्या तीन करोड़ 20 लाख से बढ़ कर तीन करोड़ 80 लाख हो गई. जो बेरोजगारी दर मार्च के बीच में 8.4 प्रतिशत थी वो अब बढ़ कर 23.4 प्रतिशत हो गई है.
दूसरे विशेषज्ञों की माने तो तालाबंदी के दौरान करोड़ों लोगों के रोजगार पर असर पड़ने का यह शुरूआती अनुमान है. मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार अर्थशास्त्री और भारत के पूर्व चीफ स्टैटिस्टिशियन प्रोनब सेन का अनुमान है कि इस दौरान कम से कम पांच करोड़ लोगों का रोजगार छीन गया होगा. केंद्र सरकार में आर्थिक मामलों के सचिव रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग का कहना है कि यह आंकड़ा 10 करोड़ तक हो सकता है.
एक मुकम्मल अध्ययन के अभाव में यह सब सांकेतिक अनुमान हैं लेकिन अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि संकेत की दिशा सही है. आशंका है कि असलियत इस से भी भयावह निकले. देखना होगा कि आने वाले दिनों में सरकार इस विषय पर एक मजबूत सर्वेक्षण करवाती है या नहीं और इस संकट से निबटने के लिए क्या उपाय ले कर आती है.
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