1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

टीम में जगह के लिए लक्ष्मण का लंबा संघर्ष

१६ जुलाई २०११

लंबे समय से भारत के मध्यक्रम की रीढ़ रहे और कई अहम मौकों पर संघर्ष भरी पारी खेलते हुए भारतीय टीम को हार से बचाने वाले वेरी वेरी स्पेशल लक्ष्मण का कहना है कि चार साल से ही वह टीम में अपना स्थान पक्का समझने लगे हैं.

https://p.dw.com/p/11wYC
तस्वीर: UNI

लक्ष्मण उन दिनों को याद करते हैं जब बढ़िया प्रदर्शन के बावजूद टीम में उनकी जगह पक्की नहीं होती थी. 2001 में ऑस्ट्रेलिया के ईडन गार्डन्स में ऐतिहासिक 281 रन की पारी खेलकर मैच का नक्शा बदलने वाले लक्ष्मण को कई बार टीम से बाहर रखा गया. "पिछले चार सालों में पहले अनिल कुंबले और फिर महेंद्र सिंह धोनी और गैरी कर्स्टन ने मुझे आश्वस्त किया कि टीम में मेरी जगह रहेगी. उसके बाद से ही मैं आजादी के साथ खेल पा रहा हूं, जिसका असर मेरे प्रदर्शन पर भी पड़ा है."

लक्ष्मण के मुताबिक 1996 से 2000 के बीच वह ओपनर के तौर पर टीम के लिए बढ़िया खेलने की कोशिश करते थे, लेकिन दो पारियों में खराब खेलने के बाद ही लोग कहना शुरू कर देते कि लक्ष्मण अच्छे सलामी बल्लेबाज नहीं है. इसके बाद उन्हें टीम से जल्दी जल्दी बाहर किया जाने लगा. लेकिन अब लक्ष्मण खुद को टीम का अहम हिस्सा समझने लगे हैं.

Indien Cricket Mahendra Singh Dhoni VVS Laxman
तस्वीर: UNI

इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज 21 जुलाई से शुरू हो रही है और पहला टेस्ट लॉर्ड्स में खेला जाएगा. लक्ष्मण का अरमान है कि वह पहले टेस्ट में ही शतक जड़ें और अपनी टीम को जीत दिलाएं, "मैंने अभी तक इंग्लैंड में सेंचुरी नहीं बनाई है. मेरे टीम में शामिल रहते टीम कभी लॉर्ड्स में नहीं जीत पाई." इसीलिए लक्ष्मण लॉर्ड्स में अपने दोनों अरमानों को एक साथ पूरा कर लेना चाहते हैं.

लक्ष्मण अपने करियर को दो हिस्सों में बांट कर देखते हैं. एक हिस्सा 2007 से पहले का है. जबकि करियर का दूसरा हिस्सा 2007 के बाद का है, जबसे वह टीम में अपना स्थान सुनिश्चित समझने लगे हैं. 2007 में वेस्ट इंडीज में वर्ल्ड कप के बाद लक्ष्मण ने 43 टेस्ट मैच खेले हैं और 3268 रन बनाए हैं और उनका रन औसत 57.33 रहा है. इससे पहले 1996 से 2007 तक उन्होंने 80 टेस्ट मैचों में 4878 रन बनाए और रन औसत 42.42 रहा जो खुद ही कहानी बयान करता है.

1996 से 2000 के बीच लक्ष्मण ने 16 टेस्ट मैच खेले और सिर्फ 626 रन बनाए और उनका रन औसत 24.07 रहा. 2004 से 2007 के बीच एक दौर ऐसा भी आया जब 31 टेस्ट में वह सिर्फ 1596 रन ही बना सके. यह वो दौर था जिसमें उन्हें वनडे टीम के लिए जरूरी नहीं समझा गया और जब भी टीम पांच गेंदबाजों के साथ खेलती तो उन्हें ही टीम से बाहर बैठाया जाता.

लक्ष्मण मानते हैं कि संघर्ष के उसी दौर ने उन्हें मजबूत बनाया. लक्ष्मण ने सबक लिया कि व्यक्ति को उन्हीं बातों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिन पर उसका बस चलता है. अब लोग क्या कहते हैं, इसका उसर उन पर नहीं होता. वह मेहनत करते हैं और हर मैच के लिए खुद को तैयार करते हैं. लक्ष्मण के मुताबिक मेहनत के बाद परिणाम अपने आप मिलने लगते हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ईशा भाटिया

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी