टच नहीं इशारे से चलेगा फोन
२९ नवम्बर २०१३आज से कुछ साल पहले यही बात किसी काल्पनिक दुनिया की कहानी जैसी लग सकती थी. लेकिन तकनीक की बढ़ रही रफ्तार को ध्यान में रखते हुए आज इस पर विश्वास करना मुश्किल नहीं. बहुत जल्द बाजार में ऐसी तकनीक होगी जिसकी मदद से सिर्फ उंगली के इशारों से एसएमएस और ईमेल लिखे जा सकेंगे.
इस तकनीक को 'एयरराइटिंग' नाम दिया गया है. इसे विकसित करने वाले क्रिस्टोफ अमा जर्मनी के कार्ल्सरूहे इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कंप्यूटर साइंस में पीएचडी कर रहे हैं. क्रिस्टोफ ने अपने एक हाथ में खास दस्ताना पहना जिसमें मोशन सेंसर लगे हैं. साथ ही इसमें वायरलेस ब्लूटूथ ट्रांसमीटर और माइक्रो कंट्रोलर भी हैं. इसकी मदद से हवा में अंगुली के इशारों से लिखे गए शब्द और वाक्य कंप्यूटर में टेक्स्ट के रूप में भेजे जा सकते हैं. हालांकि अभी यह सिर्फ प्रायोगिक दौर में है.
ब्लैक बोर्ड जैसा ढांचा
टेस्ट के दौरान तकनीक की जानकारी देते हुए क्रिस्टोफ कुछ नियम बताते हैं, "ध्यान रखना होगा कि संदेश केवल अंग्रेजी में ही लिखे जाएं, केवल बड़े अक्षरों का ही इस्तेमाल हो और कलाई को बहुत ज्यादा ऊपर नीचे ना घुमाया जाए." इसके बाद उन्होंने सर्किट और लैपटॉप को जोड़ दिया.
लिखते वक्त बस यह सोचना है कि आप किसी एक अदृश्य ब्लैक बोर्ड जैसे ढांचे पर लिख रहे हैं. और फिर टेस्ट के दौरान MANTHAN जैसा कोई भी शब्द लिखिए. ध्यान रहे सारे अक्षर बड़े होने चाहिए.
लेकिन ऐसा लिखने पर कंप्यूटर ने सिग्नल नहीं लिया. इसका मतलब है कि जो शब्द चुना गया वह कंप्यूटर के लिए अंग्रेजी भाषा में नया था. अभी तक उसमें जो जानकारी फीड की गई है, उसमें यह शब्द शामिल नहीं, इसलिए वह इसे पहचान नहीं पाया.
क्रिस्टोफ ने बताया, "अभी तक इसमें निर्धारित 8,200 शब्दों वाली शब्दावली ही फीड की गई है. इसमें आमतौर पर प्रचलित अंग्रेजी शब्द शामिल हैं." कई और ऐसे अनसुने शब्द डालने पर सिस्टम समझ नहीं पाता और गड़बड़ा जाता है.
जादू नहीं विज्ञान है
किसी साइंस फिक्शन फिल्म की याद दिलाती यह तकनीक जादू सी लगती है, लेकिन इसमें जादू जैसा कुछ नहीं. हर बात के पीछे वैज्ञानिक तर्क है. यह क्रिस्टोफ की पांच साल की मेहनत का कमाल है. पैटर्न रेकग्निशन ऐल्गॉरिदम हवा में बनाई गई आकृति को समझने में कंप्यूटर की मदद कर रहा है. हर अक्षर का सांख्यिकीय मॉडल बनाने के लिए उन्होंने एयर राइटिंग का डाटा 23 लोगों की मदद से रिकॉर्ड किया. क्रिस्टोफ ने बताया, "उन्हें हवा में अक्षर, शब्द और वाक्य लिखने थे. फिर हमने उनकी मदद से रिकॉर्ड किए डाटा के प्रति सिस्टम को परखा."
एयर राइटिंग सिस्टम में फिलहाल औसतन 11 फीसदी गलती की संभावना है. यानि सिस्टम करीब हर दस शब्दों पर एक शब्द गलत लिखता है. लेकिन किसी एक यूजर के इस्तेमाल करने पर कुछ दिनों में यह उसके लिखने के तरीके के अनुसार खुद को ढाल लेता है, फिर गलती का औसत तीन फीसदी ही रह जाता है.
क्रिस्टोफ ने बताया, "ऐसा इसलिए है क्योंकि हर किसी का लिखने का अपना एक अलग तरीका होता है. अगर वे सारे बड़े आक्षरों में लिखें तो भी. यानि एक फोन को अगर एक ही यूजर के अनुसार ढाला जाए तो ज्यादा बेहतर होगा."
कैसे करें इस्तेमाल
एयर राइटिंग सिस्टम को हर बार लिखने से पहले ऑन या ऑफ करने की भी जरूरत नहीं. यह खुद ही अक्षरों जैसे पैटर्न को समझने में सक्षम है. स्क्रीन के सामने भले ही कलाई की सैकड़ों तरह की गतियां हो रही हों, लेकिन यह तभी काम करता है जब इसके सामने अक्षरों जैसी कोई आकृति बनती है.
इशारों पर काम करने वाली तकनीक की रिसर्च में इस बात का खास ख्याल रखा जा रहा है कि किसी एक तरह के इशारे का मतलब किसी एक संदेश से ही हो. जैसे कि स्मार्टफोन को खोलना या अनलॉक करना. इसके लिए स्क्रीन पर दाईं से बाईं तरफ इशारे या टच की जरूरत है. इस बात की भी हद तय होनी चाहिए कि तकनीक के इस्तेमाल के लिए कितने तरह के इशारे लोग याद रखना चाहेंगे.
अक्षरों पर आधारित इस तकनीक की खास बात यह है कि लोग अंग्रेजी के वर्ण A B C D इत्यादि पहले से जानते हैं, उन्हें यह याद कराने की जरूरत नहीं. अब सवाल बस इतना है कि फोन को नियंत्रण में रखने के लिए संकेतों की जानकारी इसमें कैसे फीड की जाए.
कार्ल्सरूहे इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की ही प्रोफेसर तान्या शुल्त्स भी एयर राइटिंग विकसित कर रही टीम की सदस्य हैं. वह मानती हैं कि एयर राइटिंग को गूगल ग्लासेस जैसी तकनीक के साथ जोड़ा जा सकता है.
बाजार में आने से पहले अभी इसमें आगे और भी काफी काम बाकी है. तान्या और क्रिस्टोफ को 2013 का गूगल रिसर्च अवॉर्ड भी मिला है ताकि वे एयर राइटिंग पर अपनी रिसर्च आगे बढ़ा सकें.
रिपोर्टः केट हेयरसाइन/ एसएफ
संपादन: ईशा भाटिया