जीत से चूकी मारीन ले पेन
२३ मार्च २०१५मारीन ले पेन को प्रतीकों की अच्छी पहचान है. कोई आश्चर्य नहीं कि मतदान की शाम नेशनल फ्रंट की प्रमुख अपने प्रतिद्वंद्वियों को सीधे संदेश के साथ अपमानित करना चाहती थीं, "नेशनल फ्रंट फ्रांस की सबसे बड़ी पार्टी है." लेकिन उन्हें दांत भींचकर स्वीकार करना पड़ा कि उनकी पार्टी सारकोजी की पार्टी के बाद दूसरे नंबर पर रही. विजेता बनने का जश्न मनाने के बदले उनके सामने एकमात्र विकल्प रहा, सरकार के इस्तीफे की मांग करने का.
पिछले समय में कामयाबी के घोड़े पर सवाल नेशनल फ्रंट के लिए चुनावों में दूसरा स्थान बहुत बड़ी निराशा है. हालांकि शुरू से ही यह तय था कि फ्रांस के पूर्ण बहुमत वाले चुनावी कानून के कारण आखिरकार उग्र दक्षिणपंथी पार्टी को दूसरे दौर के बाद ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी.
सरकार को एक और तमाचा
नेशनल फ्रंट को सफलता के बावजूद निराशा हाथ लगी है तो चुनावों में सक्रिय प्रचार करने वाले प्रधानमंत्री को भारी हार देखनी पड़ी है. मानुएल वाल्स सर्वेक्षण में की गई हार की भविष्यवाणी को रोकने में कामयाब नहीं रहे. हालांकि उसकी संभावना इतनी खराब नहीं थी. हाल ही में राष्ट्रपति ओलांद और प्रधानमंत्री की शार्ली एब्दो आतंकी हमले के बाद की गई कार्रवाई के लिए काफी सराहना हुई थी.
नेशनल फ्रंट को दानव का प्रतीक बनाने के प्रयास में मतदाता प्रधानमंत्री का साथ देने को तैयार नहीं थे. वाल्स ने फ्रांस के लिए परीक्षा की घड़ी की बात की थी. लेकिन मतदाताओं का बड़ा हिस्सा यह मानकर बैठा है कि ले पेन की पार्टी को वोट देकर ही सरकार को मजा चखाया जा सकता है. सिर्फ रोजगार बाजार की खराब हालत के लिए ही नहीं बल्कि पार्टी के अंदर के झगड़े के लिए भी.
ले पेन की संभावनाएं
नेशनल फ्रंट की फैलती संरचना और पार्टी प्रमुख मारी ले पेन की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद प्रधानमंत्री की चेतावनी कि ले पेन राष्ट्रपति बन सकती हैं, डर फैलाने की कोशिश है. नेशनल फ्रंट के प्रसार की सीमाएं हैं. सारे गुस्से के बावजूद राष्ट्रपति भवन में ले पेन आबादी के बहुमत को रास नहीं आएंगी. मतदाताओं का बहुमत गणतंत्र और यूरोपीय पड़ोसियों के मूल्यों के साथ खिलवाड़ नहीं चाहेगा.
लेकिन ले पेन मध्यवर्ग को अपनी राजनीति से मनाने की कोशिश करेंगी. इस चुनाव प्रचार ने भी इसका नजारा दिखाया है. सारकोजी भी अब समाज में समन्वय और यूनिवर्सिटी में स्कार्फ पर रोक लगाने की बात कर रहे हैं. नेशनल फ्रंट के मजबूत होने का 2017 के राष्ट्रपति चुनावों पर असर पड़ेगा. चूंकि दूसरे दौर में ले पेन की जीत संभव नहीं लगती, इसलिए चुनाव का फैसला पहले ही दौर में हो जाएगा. परंपरागत रूप से विभाजित वामपंथियों के लिए यह राजनीतिक मौत जैसा है.