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जलवायु परिवर्तन के लिए नया नुस्खा

१० अप्रैल २००९

अतलांतिक महासागर में भारत और जर्मनी के कुछ वैज्ञानिकों ने लोहे की बारिश की. मक़सद था, वातावरण में फैले कार्बन-डाई- ऑक्साइड की मात्रा कम करना.

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समुद्र में परीक्षणतस्वीर: Arved Fuchs Expeditionen dpa

धरती के बढ़ते तापमान को लेकर दुनिया भर के देश कई प्रकार के प्रयोग कर रहे हैं. ऐसा ही एक प्रयोग भारतीय वैज्ञानिकों ने किया. ढाई महीने के इस प्रयोग में वैज्ञानिकों को अतलांतिक महासागर में एक जहाज़ पर रहना पड़ा. लोहाफेक्स नाम की इस परियोजना में भारत और जर्मनी के वैज्ञानिक शामिल थे. इस प्रयोग में पानी के एक जहाज़ ने दक्षिण अतलांतिक महासागर में करीब 300 वर्ग किलोमीटर में पिघले हुए लोहे का छिड़काव किया. वैज्ञानिकों का मानना था की इस छिड़काव से विश्वयापी तापक्रम वृद्धि को बस में लाया जा सकेगा. जर्मन जहाज़ पोलार स्टेर्न ने समुद्र में अंदर करीब 6000 किलोग्राम पिघले हुए लोहे का छिड़काव किया.

वैज्ञानिकों का मानना था की इस छिड़काव से छोटे प्लांक़्टॉनिक शैवालों को और फायटो प्लेंक्टन की समुद्री तल पर अच्छी उपज होगी. इन शैवालों की ख़ासियत इनकी कार्बन डाइयाक्साइड को सोखने की क्षमता होती है. और कार्बन डाइयाक्साइड ही वह गैस है जिसे प्रमुख रूप से तापक्रम वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.

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लोहा- कार्बन-डाई-ऑक्साइड को सोखने के लिएतस्वीर: AP

इस वैज्ञानिक अभियान के लिए जर्मन और भारतीय वैज्ञानिकों की टोली 7 जनवरी को केप टाउन से रवाना हुई थी. ढाई महीने चले इस अभियान में सभी वैज्ञानिकों को काफ़ी चुनौतियों से गुज़रना पड़ा. लोहाफेक्स को ना सिर्फ़ खराब मौसम का, बल्कि पर्यावरण संबंधी गुटों की इस परीक्षण से संबंधित सवालों का भी सामना करना पड़ा.पिछले कुछ साल में ऐसी परियोजनाओं ने लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है. ऐसी योजनाओं को भू-इंजिनियरिंग का दर्जा दिया गया है. इन योजनाओं की बढ़ती माँग का एक कारण ग्रीनहाउस गैसों के बढते स्तर को लेकर है.

इस वैज्ञानिक अभियान में भारत की राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्था और जर्मनी की एल्फ़्रेड वेगेनेर संस्था शामिल थे. जर्मन वैज्ञानिकों का मानना है की उन्हें इस सहकारी परियोजना से समुद्री पारितांत्र की कार्यप्रणाली के बारे में काफ़ी कुछ साखने के मिला है. लेकिन कई लोग सोचते है की उन्हें इस प्रयोग से आशानुकूल परिणाम नहीं मिला.

रिपोर्ट-एजंसियां/पुखराज चौधरी

संपादन- आभा मोंढे