जर्मनी में स्कूल ड्रेस लागू करने पर जोर
१६ जुलाई २०१०पिछले सालों में जर्मन स्कूलों में ब्रैंडेड और महंगे कपड़ों का चलन बढ़ता गया है और बच्चों में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है. जो बच्चे साधन न होने के कारण ऐसे महंगे कपड़े नहीं ख़रीद सकते उन्हें हंसी मजाक का शिकार बनाया जाता है. स्कूलों में बच्चों की मॉबिंग को रोकने के लिए अब राजनीतिक स्तर पर क़दम उठाने की ज़रूरत महसूस की जाने लगी है.
देश की बड़ी पार्टियों सीडीयू और एसपीडी के नेताओं ने स्कूलों में एक जैसा यूनिफॉर्म लागू करने की वकालत की है. सीडीयू की कातारीना राइषे ने, जो जर्मनी की पर्यावरण राज्यमंत्री भी हैं, कहती हैं, "स्कूल ड्रेस साझेपन की भावना दे सकते हैं और अभिभावकों और बच्चों के लिए सामाजिक पीड़ा से मुक्ति साबित हो सकते हैं."
पूर्व कानून मंत्री और एसपीडी नेता ब्रिगिटे सिप्रीस भी स्कूल ड्रेस का समर्थन करती हैं और कहती हैं, "मॉबिंग, बाहरी पहनावा देखकर किसी के बारे में राय कायम करना नई से नई चीज़ें पहनने का दबाव एक जैसे ड्रेस होने से कम होंगे." सिप्रीस का यह भी कहना है कि स्कूल ड्रेस लागू करने से सामाजिक और सांस्कृतिक अंतर भी कम दिखेंगे.
राइषे और सिप्रीस दोनों का कहना है कि स्कूल ड्रेस को लागू करने का फ़ैसला स्कूलों और छात्रों का होना चाहिए. सिप्रीस की राय में स्कूल ड्रेस के बावजूद कुछ अन्य चीज़ों के उपयोग से छात्रों की अलग पहचान बनी रह सकती है जबकि राइषे ने कहा है कि स्कूल ड्रेस को यूनीफॉर्म की शक्ल नहीं देनी चाहिए.
स्कूल ड्रेस के विरोधियों की शिकायत रही है कि इससे व्यक्तिगत पहचान खत्म हो जाएगी और व्यक्तिगत पहचान पर ज़ोर देने के लिए छात्र बाल रंगवाने या अजीब तरह के हेयर कट बनाने जैसी हरकतें करने लगेंगे. इसके विपरीत पूर्व कानून मंत्री सिप्रीस का मानना है कि इससे स्कूल के साथ पहचान कायम होगी और साझा मूल्यों का विकास होगा. इससे गुंडागर्दी और तोड़ फोड़ को रोकने में भी मदद मिलेगी.
बर्लिन, ड्युसेलडॉर्फ़ और पोट्सडम के कुछ स्कूलों में स्कूल ड्रेस को लागू किया गया है लेकिन उसका फ़ैसला छात्रों ने स्वयं लिया. वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार एक जैसे ड्रेस वाले क्लासों का सामाजिक माहौल बेहतर होता है. बेहतर माहौल से बच्चे पढ़ाई पर अधिक ध्यान दे पाते हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ए जमाल