जर्मनी में साइकल और कार की तूतू मैंमैं
२२ अक्टूबर २०११बर्लिन की आबादी है 35 लाख. उनमें से पांच लाख लोग रोजाना साइकल पर इधर उधर आते जाते हैं. एक दशक पहले ऐसे लोग सिर्फ ढाई लाख थे. यानी अब शहर में साइकल वालों का और साइकल के रास्तों का जाल बिछ चुका है. शहर की जानी मानी सड़क उंटर डेन लिंडेन पर साइकलवालों का जमघट देखकर समझ आता है कि कार वाले क्यों नाराज हैं. वे अचानक कहीं से भी आते हैं, और फुटपाथ पर चलने वालों को भौचक करते हुए कहीं से भी निकल जाते हैं. यह सड़क बर्लिन आने वाले टूरिस्टों की सबसे पसंदीदा जगहों में है. इसलिए यहां खासी भीड़ होती है. और फिर यहां साइकल वाले भी घूमते रहते हैं. साथ में बियर बाइक भी होती हैं जिन पर एक दर्जन के लगभग लोग एक साथ बैठकर पैडल मारते हुए बियर पीते इधर से उधर जाते हैं.
साइकलों से हादसे
साइकल वालों से परेशान टैक्सी ड्राइवर ताहमोरेस कहते हैं, "साइकल वाले तो असल में बड़ी परेशानी हैं. वे नियमों का पालन नहीं करते हैं. जिगजैग करते हुए किसी भी रास्ते पर निकल लेते हैं. वे लगातार कम सभ्य होते जा रहे हैं."
जर्मनी की छवि आमतौर पर कारों के चहेते देश की है. लेकिन परिवहन मंत्रालय कहता है कि 90 के दशक की शुरुआत साइकल के लिए पुनर्जागरण जैसी साबित हुई. लेकिन पर्यावरण मंत्रालय के लिए यह रोमांचक कम और फिक्र ज्यादा है क्योंकि दुर्घटना का शिकार होने वाले साइकल चालकों की तादाद बढ़ रही है. पिछले साल शहर में हुए कुल हादसों के एक तिहाई में साइकल वाले शामिल थे. और जर्मन सांख्यिकी संस्थान के मुताबिक इनमें शामिल कुल लोगों के एक चौथाई की जान चली गई.
बर्लिन-ब्रांडेनबुर्ग क्षेत्र के जर्मन ऑटोमोबाइल क्लब की प्रवक्ता क्लाउडिया नोल्टे कहती हैं, "यातायात के लिए संसाधनों की हालत खस्ता है. साइकल वालों की बढ़ती तादाद के लिए नए किस्म की शहरी व्यवस्था की जरूरत होगी." सरकार भी इस जरूरत को समझ रही है. इसलिए 2011 में ही साइकल वालों के लिए नई सुविधाएं बनाने के लिए 8.6 करोड़ यूरो आवंटित किए गए हैं.
आदतें भी तो सुधारें
लेकिन आलोचक सिर्फ सुविधाएं देने से संतुष्ट होने वाले नहीं हैं. उनकी शिकायतें बहुत ज्यादा हैं. उनके मुताबिक साइकल वाले रेड लाइट पर निकल जाते हैं, वन वे में गलत दिशा में साइकल चलाते हैं और पैदल चलने वालों की परवाह किए बगैर फुटपाथ पर चलते जाते हैं.
पर साइकल वालों के पास भी जवाब है. जर्मन साइकलिस्ट असोसिएशन के रोलांड हुन कहते हैं, "आक्रामकता साइकल वालों का ही गुण नहीं है. कार वाले भी बहुत रूखे होते हैं. वे साइकल वालों की ओर ध्यान तक नहीं देते."
इसी साल आई एक किताब में एनेटे जोख ने साइकल वालों की तीखी आलोचना की है. जोख कहती हैं कि साइकल वाले अपनी गलतियों को एक बहाने के पीछे छिपाते हैं कि वे पर्यावरण प्रेमी हैं. बुक फॉर दोज हू हेट बाइक्स में जोख लिखती हैं, "साइकल पर बैठते ही इन्सान शैतान बन जाता है."
जर्मन पत्रिका डेयर श्पीगल ने अपना पहला पन्ना इसी विवाद को समर्पित किया है. क्योंकि साइकल पसंद करने वालों की कमी नहीं है. अपनी पर्यावरण से जुड़ी उपलब्धियों पर गर्व करने वाले दक्षिण पश्चिम जर्मनी के शहर फ्राईबुर्ग में शहर का एक तिहाई आना जाना साइकल पर ही होता है.
रिपोर्टः एएफपी/वी कुमार
संपादनः ए कुमार