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जर्मनी में मिलेगा वाजिब मेहनताना

३ जुलाई २०१४

किसी भी इंसान की मेहनत के बदले मिलने वाली पगार की न्यूनतम सीमा तय कर दी गई है. उम्मीद की जा रही है कि इससे समाज में अमीर और गरीब लोगों के बीच की खाई कुछ हद तक पट सकेगी.

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तस्वीर: Getty Images

जर्मनी की चांसलर अंगेला मेर्केल ने निर्णय लिया है कि 2015 से देश में किसी को भी एक घंटे के काम के लिए साढ़े आठ यूरो से कम तनख्वाह नहीं दी जा सकती. जर्मनी में इससे करीब 37 लाख लोगों को फायदा मिलने की उम्मीद है. इस मुद्दे पर सत्ताधारी एसपीडी और सीडीयू पार्टी में दिसंबर से विचार विमर्श चल रहा था. मेर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी के कई कानूनविद् लंबे समय से इसके विरुद्ध रहे. इस मुद्दे पर मतभेद के चलते देश में दो खेमे बन गए. एक पक्ष का मानना है कि इससे श्रम बाजार ज्यादा न्यायोचित बनेगा, वहीं दूसरा पक्ष कई नौकरियां खोने का डर जताता रहा है. कई दूसरे यूरोपीय देशों की तरह ही जर्मनी अब तक कोई न्यूनतम मजदूरी तय करने के खिलाफ रहा था.

अभी भी न्यूनतम वेतन को कई शर्तों के साथ स्वीकृति मिली है. कई श्रम संगठनों का कहना है कि इन शर्तों के कारण कई जरूरतमंद लोग न्यूनतम मजदूरी के दायरे से बाहर रह जाएंगे. अब तक देश में वेतन तय करने से जुड़े फैसले ट्रेड यूनियनों और कर्मचारियों के बीच ही तय होते आए हैं. जर्मनी की एक बड़ी ट्रेड यूनियन 'वेर्डी' के प्रमुख फ्रांक बेसिर्स्के ने बताया, "इतने सारे अपवाद बनाके तो संगठन ने बड़े ही क्रूर तरीके से न्यूनतम मजदूरी को अपंग बना दिया है." यह शर्तें कुछ ऐसी हैं कि कम अवधि के लिए कहीं काम करने वाले इंटर्न, 18 साल से कम उम्र के ट्रेनी या फिर लंबे समय से बेरोजगार लोगों को इस न्यूनतम सीमा से कम पगार दी जा सकेगी. इसके अलावा कई सेक्टरों में इस नियम को लागू करने के पहले कंपनियां दो साल तक का समय ले सकती है.

अगले दो दशक में भारत में करीब 20 करोड़ लोग कामकाज करने की उम्र में होंगे. इतनी बड़ी आबादी को न्यायोचित वेतन मिले इसके लिए भारत में भी श्रम कानूनों में बड़े बदलावों की जरूरत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन कानूनों में बदलाव करने के संकेत दिए हैं जो ब्रिटिश काल से चले आ रहे हैं. भारत के श्रम कानून बेहद जटिल हैं. वर्ल्ड बैंक ने 2014 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत का बाजार दुनिया के कुछ सबसे कम लचीले बाजारों में से एक है. इसकी वजह से मजदूरों और उन्हें काम देने वालों दोनों को समस्या होती है. जर्मनी की तर्ज पर ही भारत में भी श्रमिकों और कामगारों की स्थिति में सुधार के लिए कदम उठाने की सख्त जरूरत है.

आरआर/एएम (रॉयटर्स, एएफपी)