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जर्मनी ने सागर में बनाया विशाल विंड फार्म

१७ अप्रैल २०१९

जर्मनी ने बाल्टिक सागर में एक विशाल विंड फार्म बनाया है. इसके 60 टरबाइन 4 लाख घरों की ऊर्जा जिम्मेदारी उठा सकते हैं. जर्मनी अक्षय ऊर्जा की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है और इस परियोजना को काफी महत्व दिया जा रहा है.

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Ostsee Offshore-Windpark Arkona
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Sauer

जर्मन द्वीप रुइगेन और स्वीडन के उत्तरी किनारों के बीच में यह विंड फॉर्म बनाया गया है. पिछले साल महज तीन महीने के समय में इसे खड़ा कर लिया गया. यहां से 385 मेगावाट की बिजली सप्लाई आने लगी है. यह जर्मनी की इयॉन और नॉर्वे की इक्विनॉर कंपनी का संयुक्त उपक्रम है. फ्रांस की ऊर्जा कंपनी एंजी ने यहां की बिजली खरीदने के लिए चार साल का करार किया है. यहां पैदा होने वाली बिजली फ्रांस के बनाए सबस्टेशन के जरिए घरों तक पहुंचाई जाएगी. इसके लिए विंड जेनरेटर तक 150 किलोमीटर लंबी केबल डाली गई है.

Deutschland Windpark "Arkona" vor Rügen in Betrieb genommen
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Wüstneck

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने मंगलवार को इस विंड फार्म का औपचारिक उद्घाटन किया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस परियोजना ने दिखाया है कि "जर्मनी और अत्यधिक विकसित औद्योगिक देश अक्षय ऊर्जा के लिए कैसे योगदान दे रहे हैं." जर्मनी अक्षय ऊर्जा को अपनाने में अगुआ रहा है हालांकि 2011 में मैर्केल ने परमाणु ऊर्जा से मुक्त देश बनने का एलान कर देश को हैरान कर दिया था. जर्मन चांसलर ने यह फैसला फुकुशिमा परमाणु हादसे के तुरंत बाद लिया था. उत्सर्जन मुक्त परमाणु विखंडन प्रक्रिया को अपनाने की बजाय पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा पर ज्यादा भरोसा किया गया.

इसका एक नतीजा यह हुआ कि कोयले से बनने वाली ऊर्जा और दूसरे जीवाश्म ईंधन का उपयोग बढ़ गया. फिलहाल जर्मनी अपनी समस्त ऊर्जा का 38 फीसदी अक्षय ऊर्जा से हासिल करता है. इसे 2030 तक बढ़ाकर 65 फीसदी करने का लक्ष्य रखा गया है. चांसलर का कहना है कि जर्मनी को इस लक्ष्य पर टिके रहना चाहिए हालांकि संघीय सरकार अब तक के लिए घोषित लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकी है. यही वजह है कि पिछले साल जर्मनी ने ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 1990 के स्तर से  2020 तक 40 फीसदी कम करने के लक्ष्य को भी त्याग दिया. चांसलर ने माना है, "2030 तक के लक्ष्य को हासिल करने के लिए काफी मेहनत करनी होगी."

जर्मनी में जमीन पर लगी पवन चक्कियां संकट में हैं. पवन चक्की के लिए सब्सिडी देने और ग्राहकों तक बिजली पहुंचाने का खर्चा काफी ज्यादा है. एक किलोवाट प्रति घंटे की बिजली के लिए करीब 30 यूरोसेंट देने पड़ते हैं. यह कीमत फ्रांस की तुलना में करीब दोगुनी है. जर्मनी में लगी पवन चक्कियां भले ही जूझ रही हों लेकिन जर्मनी सागर में पिछले 10 साल से इन्हें बना रहा है. पहले इनका खर्चा ज्यादा होने की बात कही गई थी. शुरुआत में तूफानों के चलते निर्माण में दिक्कतें भी आई हैं. हालांकि तकनीक बेहतर होने के बाद खर्च कम हो गया.

वर्तमान में जर्मनी अपनी 20 फीसदी पवन ऊर्जा समंदर से हासिल कर रहा है. उत्तरी सागर और बाल्टिक सागर में बने विंड पार्क में 1300 से ज्यादा पवन चक्कियां चल रही हैं जिनकी क्षमता 6.4 गीगावाट बिजली पैदा करने की है. इसके साथ ही यह भी अहम है कि इन पवन चक्कियों से लोगों को कोई शिकायत भी नहीं होती. जमीन पर बने विंडपार्क के पड़ोस में रहने वाले लोगों की बड़ी शिकायतें रहती हैं. किसी को घर के सामने का नजारा नहीं दिखता तो कोई शोर और कोई चिड़ियों के मरने की शिकायत करता है.

एनआर/एमजे (एएफपी)

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