जर्मनी का नाटो मिशन
नाटो से जुड़ने के समय से ही जर्मनी ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन के कई ऑपरेशनों में हिस्सा लेती रही है. 1990 में जर्मन एकीकरण के बाद से तो जर्मन सेना बुंडेसवेयर को कई बार नाटो की सीमा के बाहर तैनात मिशनों में भी लगाया गया है.
नाटो में जर्मनी की भूमिका
आधिकारिक तौर पर पश्चिमी जर्मनी 1955 में ट्रांस-अटलांटिक सैनिक संधि में शामिल हुआ. लेकिन 1990 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के बाद से ही जर्मन सेना को नाटो के नेतृत्व में "आउट ऑफ एरिया" मिशनों के लिए भेजा गया. नाटो के कई साथी देशों की मदद के लिए जर्मन सेना ने शांति स्थापना से लेकर शक्ति संतुलन बनाने तक के मिशन पूरे किए हैं.
बोसनिया: जर्मनी का पहला नाटो मिशन
सन 1995 में जर्मनी ने नाटो के पहले "आउट ऑफ एरिया" मिशन में हिस्सा लिया. दक्षिण पूर्वी यूरोप के बोसनिया हेर्त्सेगोविना में यूएन शांति मिशन में. बोसनिया युद्ध के इस मिशन में जर्मन सैनिकों को पहली बार नाटो की सीमा के बाहर तैनात किया गया. इस पीस कीपिंग मिशन में नाटो देशों और सहयोगियों के करीब 60,000 सैनिक तैनात थे.
कोसोवो में शांति स्थापना
कोसोवो में नाटो की अगुआई वाले पीस कीपिंग मिशन के शुरु होने के साथ ही करीब 8,500 जर्मन सैनिकों को नये नवेले देश में तैनात किया गया. सन 1999 में नाटो ने यहां सर्बियाई सेना के खिलाफ हवाई हमले करने शुरु किये. सर्बिया की सेना पर यहां के अल्बेनियाई अलगाववादियों और उनके सहयोगियों के साथ बड़े स्तर पर हिंसा करने का आरोप था. आज भी कोसोवो में कुछ 550 जर्मन सैनिक तैनात हैं.
एजियन सी में गश्त
2016 से एजियन सी में जर्मन सेना का एक जहाज यूरोप की ओर से नाटो मिशन की अगुआई कर रहा है. शरणार्थी संकट के चरम पर इस जहाज ने ग्रीस और तुर्की की सीमा वाले जलक्षेत्र में "टोही, निगरानी और अवैध क्रॉसिंग की निगरानी" करना शुरु किया. जर्मनी, ग्रीस और तुर्की ने शरणार्थियों के बड़ी संख्या में आवाजाही को लेकर ट्रांस-अटलांटिक अलायंस से मदद ली है.
लिथुआनिया में जर्मन टैंक
बॉल्टिक देशों में अपनी उपस्थिति बढ़ाते हुए नाटो ने 2017 में अब तक करीब 450 जर्मन सैनिकों को तैनात किया है. जर्मनी, कनाडा, यूके और अमेरिका जैसे कई देशों के बटालियन वहां तैनात हैं. नाटो ने कहा है कि सैनिक सहबंध के पूर्वी छोर पर संयुक्त रक्षा दीवार को मजबूत करने का यह मिशन "अलायंस के सामूहिक रक्षा के सुदृढ़ीकरण का सबसे बड़ा मिशन" होगा.
अफगानिस्तान में एक दशक से भी लंबा
सन 2003 में जर्मन संसद ने नाटो की अगुआई वाली अंतरराष्ट्रीय सेना (ISAF) की मदद के लिए जर्मन सेना को अफगानिस्तान भेजने का निर्णय लिया. जर्मनी ने तीसरी सबसे बड़ी टुकड़ी भेजी और उत्तर में क्षेत्रीय कमांड का नेतृत्व किया. इस मिशन में 50 जर्मन सैनिकों की जान भी चली गयी. करीब एक हजार सैनिक अब भी वहां तैनात हैं. (लुई सैंडर्स IV/आरपी)