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कानून और न्याय

जजों की नियुक्ति में मौजूद "भाई भतीजावाद" के 'सबूत'

ओंकार सिंह जनौटी
१ अगस्त २०१८

भारत सरकार ने पहली बार सुप्रीम कोर्ट को उच्च न्यायपालिका में भाई भतीजावाद के "सबूत" दिए हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र ने जजों की नियुक्ति के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट की लिस्ट पर आपत्ति जाहिर की है.

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Indien Neu Delhi Supreme Court
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/S. Mehta

जजों की नियुक्ति में छुपे "परिवारवाद" और "भाई भतीजावाद" का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने कुछ "सबूत" पेश किए हैं. भारत के प्रमुख अंग्रेजी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है. अखबार के मुताबिक फरवरी 2018 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 33 वकीलों को जज बनाने की सिफारिश की. इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुताबिक, इन 33 वकीलों की पेशेवर दक्षता की कड़ी जांच करने के बाद ही नाम सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को भेजे गए.

लेकिन केंद्र सरकार का कहना है कि इन 33 में से 11 वकीलों के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा व पूर्व जजों से रिश्ते हैं. यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने इस तरह आपत्ति जाहिर की है. सरकार चाहती है कि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम इलाहाबाद उच्च न्यायालय की सिफारिशों की खारिज करे और अच्छे व प्रतिस्पर्धी वकीलों को भी जज बनने का समान मौका मिले.

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टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दो साल पहले भी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 वकीलों को जज बनाने की सिफारिश की थी. तब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने 11 वकीलों का नाम खारिज कर दिया था. उन्होंने सिर्फ 19 वकीलों को जज के तौर पर नियुक्त करने की सिफारिश सरकार को भेजी. 2016 की वह लिस्ट जजों और नेताओं के रिश्तेदारों से भरी हुई थी.

अखबार का दावा है कि उसने 12 मार्च 2018 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा भेजी गई नई लिस्ट में भाई भतीजावाद का खुलासा किया. अखबार के मुताबिक लिस्ट में मौजूदा और पूर्व जजों के कई रिश्तेदारों के नाम हैं. 11 वकील जहां रिश्तेदार निकले, वही एक वरिष्ठ वकील दिल्ली में सक्रिय वरिष्ठ नेता की पत्नी का कानूनी साझेदार निकला.

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अखबार के मुताबिक इलाहाबाद हाई कोर्ट में चल रही इस साठगांठ की जानकारी कई शिकायतों के जरिए अप्रैल में प्रधानमंत्री कार्यालय और कानून मंत्रालय तक पहुंची. इसके बाद सरकार ने गहन जांच शुरू की. अब पता चला है कि 33 की लिस्ट में सिर्फ 11 या 12 नाम ही ऐसे हैं जो देश के सबसे बड़े हाई कोर्ट के जज बनने की काबिलियत रखते हैं.

सूत्रों के हवाले से अखबार ने कहा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा भेजी गई सूची में एससी/एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधिनित्व ना के बराबर है. लिस्ट में अग्रणी जातियों के उम्मीदवारों की भरभार है. छह से ज्यादा वकील तो एक खास समुदाय के हैं. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के सामने ये बातें रखी हैं. 2015 से अब तक इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 83 से ज्यादा सिफारिशें की हैं और इन सभी में ओबीसी/एससी/एसटी, महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों के वकील बहुत ही कम थे.