छोटी उम्र में बना पर्यावरण का सिपाही
१३ जनवरी २०१८विश्व पर्यावरण दिवस पर स्कूल में आयोजित एक कार्यक्रम जयचंद की जिंदगी में अहम मोड़ लेकर आया. जयचंद ने स्कूल में पर्यावरण को लेकर जो जाना, उस पर अमल करना चाहा. फिर क्या था जयचंद हरित सिपाही बन गया.
जयचंद ने शुरुआत अपने स्कूल से की, स्कूल परिसर और आसपास पौधे लगाए, आगे बढ़ते हुए उसने सड़क के किनारे वाली जमीन और फिर बंजर जमीन पर पेड़ लगाए, गांव की पगडंडी को भी उसने नई जान दी.
सौ से डेढ़ सौ आबादी वाले भंगाड़ी गांव में जयचंद किसी हीरो से कम नहीं हैं. सिरमौर जिले के भंगाड़ी गांव का जयचंद कहता है, "स्कूल में पर्यावरण को लेकर एक कार्यक्रम ने मेरा मन बदल दिया. मैंने सोचा कि क्यों न खाली जमीन पर छोटे पौधे लगाऊं और क्षेत्र को हरा भरा बनाऊं. पहाड़ के लोग पर्यावरण को लेकर सचेत रहते हैं.
जलवायु परिवर्तन का असर अब पहाड़ों पर भी साफ नजर आता है. अगर हम अपने पर्यावरण के बारे में नहीं सोचेंगे तो और कौन सोचेगा. मौसम तेजी से बदल रहा है और प्रदूषण से इंसानों की मौत हो रही है. हमें अब जागना होगा और आगे बढ़कर पर्यावरण की रक्षा करनी होगी, इसीलिए मैंने आबादी के लिए स्वच्छ वातावरण के निर्माण के लिए यह कदम उठाया.”
17 साल के जयचंद ने अखरोट, सेब, आड़ू, नाशपाती और देवदार जैसे पेड़ लगाए. जयचंद के मुताबिक, "मैं बारिश के मौसम में ही पेड़ लगाता हूं, क्योंकि उस वक्त जमीन नर्म होती है और पौधा तेजी से बढ़ता है. पौधे लगाने के कुछ दिन बाद मैं दोबारा उसे देखने जाता हूं. अगर पौधे के आसपास घास उग आती है तो मैं उसे हटा देता हूं. इसी तरह से मैं कुछ महीनों बाद दोबारा उसे देखने जाता हूं और पेड़ की कटाई छंटाई करता हूं ताकि वह एक विशाल वृक्ष का रूप ले सके.”
गांव के लिए पेश की मिसाल
जयचंद के पिता श्रीराम लाल पेशे से किसान हैं और इस काम में वह भी जयचंद की मदद करते हैं. श्रीराम लाल कहते हैं, "जयचंद के पेड़ लगाने के काम से गांव के लोग भी प्रभावित होते हैं और जंगल की अहमियत समझते हैं, गांव वाले भी वृक्षारोपण के इस काम की सराहना करते हैं और वे भी क्षेत्र को हरा-भरा बनाने में सहयोग देते हैं.”
पर्यावरण के लिए जयचंद के योगदान को हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी पहचाना और उसे साल 2015 में एनवायरमेंट लीडरशिप अवॉर्ड से सम्मानित किया. जयचंद का लक्ष्य पूरे हिमाचल प्रदेश में इस मुहिम को फैलाना है.
वह कहता है, "मैं जो कर रहा हूं वह किसी लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं. मुझे बहुत गर्व होता है जब मेरे बारे में लोग जानते हैं और मेरी ही तरह पेड़ लगाने के लिए प्रेरित होते हैं, स्कूल के दोस्त भी मेरी सहायता करते हैं. छुट्टी के दिन हम सब मिलकर हरियाली बढ़ाने के लिए समय देते हैं.”
जयचंद कहता है कि अभी तो उन्होंने कुछ एक हजार ही पेड़ लगाए लेकिन इस संख्या कहीं अधिक बढ़ाकर लाखों में करना है.