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समाज

छोटा सा घर जो समझाता है संविधान क्या है

हृदयेश जोशी
२४ जनवरी २०२०

गुजरात के एक गांव में कुछ कारीगर अपने कुशल हाथों से लकड़ी के टुकड़ों पर चित्र और सूचनाओं से भरे रंगीन कागज चिपका रहे हैं. देखते ही देखते उनका ये प्रयास एक छोटे से घर में तब्दील हो जाता है.

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Martin Macwan indischer Menschenrechtsaktivist
तस्वीर: DW/H. Joshi

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर नानी देवती गांव में बने रहे इन खिलौनेनुमा घरों पर संक्षेप में भारत का संविधान उपलब्ध हैं. इस कलाकृति के पीछे 61 साल के दलित कार्यकर्ता मार्टिन मैकवान की सोच है. वह कहते हैं कि हर कोई संविधान को बचाने की बात कर रहा है लेकिन संविधान असल में क्या कहता है इसके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है.

इन दिनों हिन्दुस्तान में राजनीतिक उबाल है. नए नागरिकता संशोधन कानून और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिज़नशिप (एनआरसी) जैसे मुद्दों को लेकर लोग सड़कों पर हैं. जगह जगह प्रदर्शन हो रहे हैं. 

इस घर के द्वार में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का फलसफा है जो भारत के संविधान की बुनियाद तैयार करता है. खिड़कियों पर मौलिक अधिकार से लेकर संविधान की तमाम धाराओं के बारे में जानकारी लिखी है. घर की छत पर राष्ट्रगान के साथ गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर दिखते हैं तो वहीं नागरिकों के मूल कर्तव्यों के बारे में भी बताया गया है. दीवारों पर सभी धर्मों के नागरिकों की तस्वीरें भी हैं और अधिकृत भाषाओं की लिस्ट भी टंगी है.

मार्टिन महज 100 ग्राम के इस खिलौने को हाथ में लेकर हमारे सामने कुछ मिनटों में ही संविधान का पूरा खाका खींच देते हैं जिसे जानने के लिए कई साल तक भारी भरकम कानूनी पुस्तकों का सहारा लेना पड़ता है. 

Martin Macwan indischer Menschenrechtsaktivist
तस्वीर: DW/H. Joshi

मार्टिन बताते हैं, "हमने इसे घर का रूप दे दिया है कि जैसे पूरे परिवार का एक अपना घर होता है वैसे ही हमारा संविधान पूरे देश का घर है. आज हर कोई नारा लगा रहा है कि संविधान बचाओ. लेकिन इस संविधान में क्या है जिसे बचाना है. असल में संविधान की पुस्तक इतनी भारी भरकम है और कई बार कानूनी शब्दावली से भरी होती है कि लोग उसे पढ़ नहीं पाते लेकिन इस घर को दिखाकर आप किसी बच्चे को भी संविधान सिखा सकते हो.” उन्होंने गणतंत्र दिवस के मौके पर यह प्रयोग किया है.

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इस घर में संविधान की तमाम धाराओं के साथ याद दिलाया गया है कि महिलाओं के सम्मान के साथ छुआछूत जैसी प्रथाओं का विरोध और वैज्ञानिक सोच का विकास करना हमारी जिम्मेदारी है. एक महत्वपूर्ण बात इस घर के बाहर बाबा साहेब अंबेडकर के चित्र के साथ छपी वह टिप्पणी भी है जो संविधान सभा में दिए गए उनके आखिरी भाषण का हिस्सा है.

संविधान कितना भी अच्छा हो, लेकिन उसका अमल करने वाले लोग अच्छे नहीं होंगे तो संविधान खराब साबित होगा और संविधान कितना भी खराब होगा, लेकिन उसका अमल करने वाले लोग अच्छे होंगे तो संविधान अच्छा साबित होगा. 

Martin Macwan indischer Menschenrechtsaktivist
तस्वीर: DW/H. Joshi

डॉ अंबेडकर की यह टिप्पणी हिन्दुस्तान में आज के हालात पर खरी है. शायद इसीलिए नानी देवती गांव में मार्टिन के कारीगर साथियों ने ऐसे सैकड़ों घर बना दिए हैं जिन्हें आसान भाषा में संविधान की सीख देने के लिये देश में जगह-जगह भेजा जा रहा है. मार्टिन कहते हैं कि गुजरात के अलावा मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, उड़ीसा और पंजाब समेत कई राज्यों से संविधान की इस कलाकृति की मांग हो रही है. इसके अलावा उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी यह नमूने भेजे जाएंगे.  

वह कहते हैं, "हम देश की 22 (अधिकृत) भाषाओं और कुछ आदिवासी बोलियों (डायलेक्ट) में भी ये घर तैयार कर रहे हैं. हमने गुजराती भाषा में काम शुरू किया लेकिन देश के हर हिस्से से लोग हमें ये खिलौने भेजने का ऑर्डर दे रहे हैं. अधिक से अधिक लोगों तक संविधान की जानकारी पहुंचाना ज़रूरी है. जो सीख लोग भारी भरकम, उबाऊ और क़ानूनी भाषा-शैली वाली पुस्तक से नहीं  ले सकते उसके लिये यह प्रयोग काफी कारगर रहेगा.”

ऐसा कहते हुए मार्टिन के चेहरे पर संतोष की झलक दिखती है जिसमें उनके साथियों का यह नायाब सम्मिलित प्रयास झलकता है.

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