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चुनाव लड़ेंगी सू ची

१० जनवरी २०१२

म्यांमार की विपक्षी पार्टी की नेता आंग सान सू ची ने कहा है की वह संसद के चुनावों में हिस्सा लेंगी. यदि सू ची चुनाव जीत जाती हैं तो पहली बार उन्हें संसद में अपनी आवाज उठाने का मौका मिल सकेगा.

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तस्वीर: AP

पार्टी के प्रवक्ता न्यान विन ने मंगलवार को कहा कि सू ची ने सोमवार को पार्टी की बैठक में इस बात की घोषणा की. उन्होंने बताया कि सू ची यंगून के एक जिले कॉहमु से चुनाव लड़ेंगी. यंगून म्यांमार का सबसे बड़ा शहर है और सू ची का गृह-नगर भी है. इस इलाके में 2008 में नर्गिस तूफान के कारण काफी नुकसान हुआ था.

सकारात्मक सू ची

पिछले हफ्ते तक सू ची चुनाव लड़ने की बात से इंकार करती रहीं. समाचार एजेंसी एपी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वह इस महीने के अंत तक ही बता पाएंगी कि वह चुनाव में खड़ी हो रही हैं या नहीं. सरकार द्वारा किए जा रहे सुधारों को ले कर सू ची बेहद सकारात्मक दिखी. इंटरव्यू के दौरान सू ची ने कहा, "मुझे लगता है कि अब भी कई बाधाएं हैं और कई खतरे हैं जिनका हमें ध्यान रखना है. मुझे इस बात की चिंता है कि सेना में बदलाव के लिए कितना समर्थन है."

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तस्वीर: dapd

नोबेल पुरस्कार विजेता सू ची ने पिछले साल चुनाव में खड़े होने की बात कही थी. नवंबर 2010 में हुए चुनावों के दौरान सू ची को उनके घर में नजर बंद किया हुआ था. इसके चलते उन्हें चुनाव में खड़े होने की अनुमति नहीं मिली. उनकी पार्टी 'नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी' (एनएलडीपी) ने चुनावों का बहिष्कार भी किया. बीस साल तक देश में चले सैन्य शासन के बाद म्यांमार के यह पहले चुनाव थे. हालांकि चुनाव के बाद म्यांमार की सेना जुंटा का देश पर दबदबा खत्म हुआ और पहली बार सरकार का गठन किया गया, लेकिन नई सरकार भी सेना से काफी करीब है.

बेहद कम सीटें

म्यांमार में चुनाव 1 अप्रैल को होंगे. सू ची के चुनाव जीतने की उम्मीद की जा रही है. यदि वह चुनाव जीत जाती हैं तो उन्हें संसद में सरकार के फैसलों में हिस्सा लेने का मौका मिल सकता है. लेकिन सू ची की पार्टी का हिस्सा बेहद छोटा ही होगा. संसद के निचले सदन में 440 में से 110 सीटें सेना के पास हैं. इसी तरह संसद के ऊपरी सदन में 224 में से 56 सीटें भी सेना के पास हैं. बची 498 सीटों में से करीब अस्सी प्रतिशत सीटें सत्तारूढ़ दल के पास हैं.

इस से पहले 1990 में हुए चुनावों में सू ची की पार्टी ने जीत दर्ज कराई, लेकिन उस समय जुंटा ने इसे अस्वीकार कर दिया. पंद्रह साल तक सेना ने सू ची को नजर बंद रखा. हालांकि बीच में कई बार उन्हें रिहा भी किया गया. सू ची कभी सरकार में नहीं रहीं, लेकिन इसके बावजूद वह म्यांमार और लोकतंत्र की लड़ाई की पहचान के रूप में उभर कर आई हैं.

सैन्य शासन के दौरान जिन देशों ने म्यांमार पर प्रतिबंध लगाए थे अब वे संबंध सुधारने में लगे हैं. पिछले साल नवंबर में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलारी क्लिंटन ने म्यांमार का दौरा किया. यह पचास सालों में किसी अमेरिकी विदेश मंत्री का पहला म्यांमार दौरा था.

रिपोर्ट: एपी/ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम